मंगलवार, 3 अगस्त 2010

एक कहानी कविता की शक्ति की


इश्त्वान ओर्केन्य (अनु. मारिया नेज्यैशी)

रिंग रोड पर एक टेलिफ़ोन-बूथ खड़ा था। इसका दरवाज़ा बहुत बार खुलता और बंद होता था। लोग अपनी छोटी-बड़ी बातें करते थे, हाउसिंग बोर्ड को फ़ोन करते, मुलाकातें तय करते, अपने दोस्तों से उधार माँगते, प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे से ईर्ष्या करते हुए सताया करते थे। एक बार एक बुढ़िया फ़ोन पर रिसीवर रखते ही सिर टिकाकर रो दी। पर इस तरह की घटनाएँ कभी-कभी ही होती थीं।

गर्मियों की धूप से लबालब दोपहर में एक कवि फोन बूथ में घुसा। उसने किसी संपादक को फोन किया और कहा, "अंतिम चार पंक्तियाँ तैयार हैं।"

फिर उसने एक मटमैले पर्चे से चार पंक्तियाँ सुनाईं।

उफ कितनी निराशाजनक संपादक ने कहा इनको दुबारा लिखो, पर कुछ मस्ती मिलाकर।

कवि ने व्यर्थ में वाद-विवाद किया। थोड़ी देर बाद रिसीवर रखकर चला गया। कुछ समय तक कोई नहीं आया। कुछ समय तक बूथ में सन्नाटा छाया रहा। इसके बाद बड़े-बड़े फूलोंवाला गर्मियों का फ्रॉक पहने हुए एक विशाल स्तनोंवाली भीमाकाय अधेड़ औरत प्रकट हुई। उसने बूथ का दरवाजा खोलना चाहा।

दरवाजा मुश्किल से खुल पा रहा था। पहले तो उसने खुलना ही नहीं चाहा, पर अचानक महिला को बहुत जोर से झटका देकर सड़क पर धकेलते हुए खुला और बंद हो गया। अगली कोशिश का उत्तर दरवाजे ने ऐसे दिया जैसे कि लात मार रहा हो। वह स्त्री पीछे की ओर डगमगाती हुई पोस्ट बॉक्स से जा टकराई।

बस का इंतजार करनेवाले मुसाफिर चारों ओर जमा हो गए। उनमें से एक कठोर स्वभाव का आदमी हाथ में एक अटैची लिए आगे बढ़ा। उसने भी बूथ का दरवाजा खोलने की कोशिश की, पर उसे इतना जोरदार धक्का लगा कि वह पथरीले रास्ते पर चारों खाने चित्त हो गया। धीरे-धीरे वहाँ लोग और अधिक और अधिक इकट्ठे होते जा रहे थे। वे बूथ, डाक व्यवस्था और बड़े फूलोंवाली औरत पर टिप्पणियाँ कर रहे थे। कुछ लोग सर्वज्ञ लोगों का विचार था कि दरवाजे में हाई वोल्टेज़ करंट है। कुछ दूसरों के अनुसार बड़े फूलोंवाली महिला और उसका साथी बूथ के सिक्के लूटना चाहते थे, पर समय पर पकड़ लिए गए थे। बूथ कुछ समय तक मौन रहकर उनकी तर्कहीन अटकलें सुनता रहा, फिर मुड़ा और शांत कदमों से राकोत्सि सड़क पर चलने लगा। कोने पर लालबत्ती जल रही थी, इसलिए बूथ खड़ा होकर इंतजार करने लगा।

लोग बूथ के पिछवाड़ा देखते रहे, पर कुछ नहीं बोले। हमारे यहाँ लोगों को किसी बात पर भी आश्चर्य नहीं होता, होता है तो सिर्फ स्वाभाविक बातों पर। बस आ गई, मुसाफिरों को लेकर चली गई। इस धूप से लबालब गर्मियों की दोपहर में आनंदमग्न बूथ राकोत्सि सड़क पर धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा।

वह विंडो शॉपिंग करता रहा। फूलों की दुकान के सामने कुछ देर खड़ा रहा। कुछ लोगों ने उसे किताबों की दुकान में घुसते हुए देखा, पर हो सकता है उन्हें दृष्टिभ्रम हुआ हो। उसने गली के मयखाने में उसने थोड़ी सी रम गटकी। फिर दूना नदी के किनारे पर चलता रहा और मार्गरीट द्वीप पर पहुँच गया। पुरानी ईसाई मोनेस्ट्री के खंडहरों के पास उसने एक दूसरा बूथ देखा। पहले वह कुछ आगे बढ़ा, फिर वापस लौटा, इसके बाद सड़क पारकर दूसरी ओर चला गया। उसने बड़े धैर्य के साथ पर सभ्य ढंग से दूसरे बूथ से नैन-मटक्का करना शुरु किया।

बाद में अंधेरा होने पर बूथ गुलाब के फूलों की क्यारी में उतर गया।

खंडहरों के पास क्या हुआ यह जानना असंभव ही है क्योंकि वहाँ की प्रकाश व्यवस्था ठीक नहीं है। पर दूसरे दिन सुबह-सुबह सैर करनेवालों ने देखा कि खंडहरों के पासवाला बूथ रक्ताभ गुलाबों से भरा हुआ था। उस पूरे दिन बूथ गलत नंबर मिलाता रहा। पहले वाले बूथ का उस समय वहाँ कोई नामो-निशान भी न था।

दिन निकलते ही बूथ द्वीप छोड़कर बुदा की ओर निकला, गैल्लेर्त पहाड़ी पर चढ़ा, वहाँ से पहाडियों और घाटियों से गुज़रकर हार्मशहतार पहाड़ी की चोटी पर चढ़ा, फिर वहाँ से उतरकर राजमार्ग पर चलने लगा। इसके बाद वह कभी भी बुदापैश्त में दिखाई नहीं दिया।

*

शहर के बाहर ठंडी घाटी के अंतिम मकानों को पार करने के बाद नज्यकोवाचि गाँव से बहुत पहले एक जंगली फूलों से भरा एक मैदान है। वह इतना छोटा है कि कोई भी बच्चा बिना हाँफे उसका चक्कर लगा सकता है। यह मैदान लंबे-लंबे पेड़ों के बीच में किसी पहाड़ी झील की तरह छिपकर जीवन बिता रहा है। यह इतना छोटा है कि इसमें कोई घास काटनेवाला भी नहीं आता परिणाम यह होता है कि गर्मियों के दौरान घास-फूस, खर-पतवार और फूल कमर तक लंबे हो जाते हैं। इसी ही स्थान पर टेलीफोन बूथ बस गया।

संयोग से रविवार को यहाँ आने वाले घुमक्कड़ लोग इस बूथ को देखकर खुशी के सागर में सराबोर हो जाते हैं। उनका मन मज़ाक करने की सोचने लगता कि उस वक्त कुंभकर्ण की नींद में सोए किसी व्यक्ति को जगाया जाए। या उन्हें सूझता कि वह अपने घर फोन करें कि घर भूली चाबी को पायदान के नीचे रख दिया जाए। वे नरम ज़मीन पर तिरछे खड़े बूथ में घुसकर चोगा, रिसीवर उठाते हैं। इतने में ही दरवाजे में से लंबे जंगली फूल घुसकर उनकी ओर झुक जाते हैं।

पर फोन में डायल टोन नहीं होती। बदले में कविता की चार पंक्तियाँ सुनाई पड़ती हैं धीमी, ऐसी धीमी जैसे कोई वायलिन पर बहुत ही धीमी धुन बजा रहा हो...। टेलीफोन डाले सिक्कों को वापस नहीं लौटाता, पर अब तक कोई शिकायत नहीं की है।

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