इस भित्ति पत्रिका का नाम ‘प्रयास’ रखने का कारण यह है कि यह हंगरी के भारत व हिंदी प्रेमियों के साथ-साथ ऐल्ते विश्वविद्यालय में भारतविद्या के वर्तमान व भूतपूर्व छात्रों का हिंदी में साहित्य सृजन की शुरुआत करने का प्रयास ही है।
जबसे मैंने यहाँ अध्यापन कार्य शुरु किया था तबसे ही मेरे मन में यह भाव था कि विभाग की एक पत्रिका होनी चाहिए जिसमें विभाग के सभी छात्र किसी न किसी रूप में कुछ लिखकर सहयोग करें। शुरुआत उन छात्रों से की गई जिन्होंने हिंदी सीखना प्रारंभ ही किया था। उनसे जो सहयोग मिला उससे समझ में यह आया कि अगर यह कार्य किसी तरह से शुरु हो गया तो रुकने का नाम नहीं लेगा। नींव बनी बड़े ही टूटे-फूटे अनगढ़ पत्थरों की। खुशी इस बात की है कि जब उन अनगढ़ पत्थरों को तराशा गया तो पता चला कि वे तो छिपे हुए रत्न हैं। मेरा विश्वास है कि इन रत्नों का धुँधलापन समय के साथ धीरे-धीरे चमक में बदल जाएगा। ये ही इस भित्ति पत्रिका की जान हैं और विश्वास है कि ये ही इस पत्रिका का भविष्य भी हैं। हीरे रूपी ये छात्र हंगरी के हिंदी अध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ हिंदी में साहित्य सृजन कर उसे विश्व हिंदी साहित्य का अंग बनाने में अवश्य ही कामयाब होंगे।
इस पत्रिका में मौलिक कविताएँ हैं, तो अनूदित कविताएँ भी हैं। कविताओं में बचपन की महक है तो अकेलेपन का दर्द भी है, इतना ही नहीं मुंबई में घटी घटना की झलक भी है। एक ग़ज़ल भी है। कहानियाँ ज्यादातर अनूदित हैं। इस अंक में कोई मौलिक कहानी नहीं पाई है, भविष्य में मौलिक कहानियाँ भी आ सकती हैं। सहयोग सिर्फ ऐल्ते और पेच विश्वविद्यालयों के वर्तमान छात्रों से ही नहीं पुराने छात्रों से, व दूतावास द्वारा चलाई जानेवाली कक्षा के छात्रों व अध्यापकों से भी मिला।
(दाहिनी ओर पत्रिका को भेजे गए दो शुभकामना संदेश प्रकाशित किए गए हैं। ऊपर के चित्र में हंगरी में भारतीय राजदूत रंजीत राय का शुभकामना संदेश है और नीचे के चित्र में एल्ते विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग की अध्यक्ष डॉ.मारिया नेज़्यैशी का। )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें