शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

लोमड़ी ने पकड़ा मछली को, मछली ने पकड़ा लोमड़ी को

अनुवाद- साश ओर्शोल्या
प्रस्तावना

राजा मात्याश सच्चाई को बहुत महान मानते थे। इसीलिए उनका नाम भी प्रजा ने "न्यायसंगत मात्याश" रखा था। पर इसके साथ साथ मात्याश होशियारी, बुद्धिमानी और बहादुरी को भी महत्त्व देते थे। उनके राज्य में जो इमानदारी और बुद्धिमानी से मेहनत करके देश को आगे बढ़ाते थे उनको सम्मान ही मिलता था। जो अपनी बुद्धिमानी और ईमानदारी दिखाकर राजा को खुश करते थे, उनको थोड़ा ईनाम। जैसे इस चालाक मोची को।



१। (मोची बड़ा थैला उठाकर आ रहा है)

पत्नी: अरे जी, क्या ला रहे हैं आप?

मोची: सुनो, क्या हुआ! सुबह जैसे घर से निकला था तो झील के पास पहुँचकर मुझे एक लोमड़ी दिखी। लोमड़ी झील के किनारे मछली पकड़ने की कोशिश कर रही थी। कोशिश करते करते अंत में उसे एक मछली मिली और लोमड़ी ने अपने दाँतों से उसकी पूँछ कसकर पकड़ ली। पर मछली भी गरम मिजाज़ की थी। उसने भी अपना मुंह खोला और लोमड़ी की पूँछ अपने दाँतों में दबा ली। अब कोई भी एक दूसरे को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। तो मैंने दोनों को पकड़ लिया और थैली में डालकर घर लाया हूँ।

पत्नी: आप भी जी! इनको घर लेके भला क्या करोगे? इसके स्थान पर २-४ मछली पकड़के खाना लाये थे।।।

मोची: अरे तुम समझते ही नहीं। जब मैंने ये दोनों ऐसे चिपके हुए देखे तो बहुत हँसी आई। फिर मैंने सोचा मैं इनको बुदा लेकर राजा मात्याश को दिखा दूँग, उनको भी आनंद मिलेगा। देखो।

पत्नी: हा-हा, इनका हाल सचमुच हँसनेवाला है। ठीक सोचा जी, इनको महल में ले जाओ, हमारे राजा को आनंदित करो।



२। (बुदा का महल)



पहरेदार: रुको! तुम यह थैला लेकर कहाँ जा रहे हो इधर?

मोची: मैं राजा मात्याश के पास जा रहा हूँ। कुछ ला रहा हूँ दिखाने के लिए जिससे उनको बड़ा आनंद मिलेगा। देखो!

पहरेदार: हा-हा, तुम तो बहु मज़ाकिया आदमी हो। राजा मात्याश को ऐसे आदमी अच्छे लगते हैं। तुमको इसके लिए ईनाम ज़रूर मिलेगा।

मोची: ऐसा है तो बढ़िया है भाई साहब। फिर मुझे अन्दर जाने दीजिए।

पहरेदार: अरे, इतनी जल्दी नहीं। पहले थोड़ा ताल-मेल करें। अगर तुम वादा करते हो कि जो भी ईनाम मिलेगा तुम्हें उसका आधा हिस्सा मुझे दे दोगे तो मैं आगे जाने दूँगा।

मोची: चलिए, मैं वादा करता हूँ, सिर्फ अन्दर जाने दीजिए। (आगे चलता है)



पहरेदार २: रुको! तुम यह थैला लेकर कहाँ जा रहे हो इधर?

मोची: मैं राजा मात्याश के पास जा रहा हूँ। कुछ ला रहा हूँ दिखाने के लिए जिससे उनको बड़ा आनंद मिलेगा। देखो!

पहरेदार: हा-हा, तुम तो बहु मज़ाकिया आदमी हो। इसके लिए तुमको ईनाम ज़रूर मिलेगा। सुनो, मैं एक बात बताता हूँ। अगर तुम वादा करते हो कि जो भी ईनाम मिलेगा तुम्हें उसका आधा हिस्सा मुझे दे दोगे तो मैं तुम्हें आगे जाने दूंगा।

मोची: अरे, आधा हिस्सा इसके लिए, आधा हिस्सा दूसरे के लिए, तो मेरे लिए क्या रहेगा? चलो, कम से कम राजा मात्याश को तो खुश करूँगा एक बार। (पहरेदार से) ठीक है भाई साहब, मैं वादा करता हूँ। अब जाने दीजिए।



३। (मात्याश के सामने)



राजाः तुम क्या लाये हो मेरे लिए?

मोची (थैला खोलके): लोमड़ी पकड़ी मछली, मछली पकड़ी लोमड़ी, दोनों पकड़ी मोची।

राजाः हा-हा, तुम भी बड़ा मजेदार आदमी हो मोची! हमें बहुत प्रसन्न किया तुमने। इसके लिए हम तुमको सोने के सौ सिक्कों का ईनाम देते हैं।

मोची: राजा जी, आप बहुत दयालु हैं, पर मुझे इसकी जगह कोई दूसरा ईनाम देने की कृपा कीजिए।

राजाः अच्छा? तो बताओ, तुमको सोने की जगह क्या चाहिए?

मोची: राजा जी, मैं १०० सिक्कों की जगह आपसे सौ कोड़े माँग रहा हूँ।

राजाः अजीब प्रार्थना है सच में। पर लग रहा है आपका मज़ाक अभी तक ख़त्म नहीं हुआ। चलो, फिर तुमको तुम्हारा पसंदीदा ईनाम मिल जाएगा। ले जाओ इसे!

(मोची को लेकर सब बाहर जा रहे हैं)



पहरेदार २ (मोची के कान में फुसफुसाकर): अरे मोची! तुम्हारे ईनाम का आधा हिस्सा कहाँ है?

मोची (ज़ोर से): साथ आओ! हिस्सा मिल जाएगा।

पहरेदार १ (मोची के कान में फुसफुसाकर): अरे मोची! तुम्हारे ईनाम का आधा हिस्सा कहाँ है?

मोची (ज़ोर से): साथ आओ! हिस्सा मिल जाएगा।

राजा: ज़रा रुको! अब तो इस चालक मोची का दूसरा मज़ाक भी समझ में आ गया! इन दोनों बेईमान पहरेदारों को आगे ले जाओ! उनको ईमान का अपना-अपना हिस्सा मिल जाएगा, ५०-५० कोड़े। और होशियार मोची को दोगुना मज़ाक के लिए दोगुना ईनाम दिया जाए, सोने के २०० सिक्के! सब को दिखाया जाए कि हमारे राज्य में बेईमानी कि सज़ा और ईमानदारी का सम्मान ज़रूर मिल जाएगा।

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