रविवार, 25 जुलाई 2010

हंगरी में भारत के पूर्व राजदूत, महामहिम रंजित राय के साथ साक्षात्कार



साक्षात्कारकर्ता : रोबर्त वालोसी एवं सुच वैरोनिका

इस वर्ष का वसंत न सिर्फ प्रकृति, बल्कि बुदापैश्त के भारतीय राजदूत महोदय के जीवन में भी परिवर्तन लाने वाला था। भारत के पूर्व राजदूत, महामहिम रंजित राय ने हंगरी से विदा ली और उनकी जगह वर्तमान राजदूत, महामहिम गौरी शंकर गुप्त ने कार्यभार ग्रहण कर लिया। हमारी जिज्ञासा थी, कि राजदूत महोदय कौनसे अनुभवों और कौनसी यादों को अपने साथ (भारत) ले जाएँगे। इसकी जानकारी लेने के लिए ऐल्ते की भित्ति-पत्रिका "प्रयास" ने राजदूत के साथ मुलाक़ात करने का निर्णय लिया। पत्रिका के संपादक व हमारे हिन्दी प्राध्यापक, प्रमोद कुमार शर्मा जी ने मुलाकात की तिथि व समय का इंतज़ाम किया। मैं और रोबर्त दिनांक १८ मार्च को ११:३० को सूरज की धूप में लिपटे राजदूतावास में पहुँचे। दूतावास में प्रवेश करते समय हम दोनों बहुत चिंतित थे, कारण यह हमारी दूतावास की पहली यात्रा थी। वहाँ क्या होगा? कैसे होंगे राजदूत जी? क्या हमारी हिन्दी इतनी अच्छी हो गई है कि हम उनकी बातें समझ सकेंगे? एक दूसरे से बात करके हमारा उत्साह बढ़ने लगा पर धीरे-धीरे एक तरह का डर हमारे मन में घर करने लगा। लेकिन महामहिम राजदूत महोदय से हाथ हिलाते ही हमारी सारे परेशानियाँ पूरी तरह से उड़ गयीं। महामहिम रंजित राय जी ने एक आम व्यक्ति की तरह हमारा स्वागत किया। हमें ऐसा लगा कि हम किसी राजदूत महोदय से नहीं बल्कि अपने किसी अच्छे परिचित या दोस्त से बातचीत की ! हमारी बातचीत कुछ इस प्रकार हुई :

वैरोनिका : जब आपको पता चला था कि आप हंगरी जाएँगे, तो आपके मन में हंगरी के बारे में सबसे पहले क्या विचार आया था?

महामहिम जी : बहुत ख़ुशी हुई इससे, क्योंकि सन २००३ में मैं घूमने के लिए हंगरी आया था, तीन-चार दिन तक रहा, बुदापैश्त, बालाटन गया था और अनेक लोगों से मुलाकात हुई। उस वक्त मुझे आप का देश बहुत अच्छा लगा, लेकिन उस वक्त मुझे पता नहीं था, कि मैं एक बार फिर से वापस जाऊँगा। तो बहुत खुशी हुई सुनके कि मुझे हंगरी में पोस्ट किया गया हैं।

रोबर्त : हंगरी में किस चीज ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया ?

महामहिम जी : मुझे यहाँ सबसे अच्छा यह लगा कि हंगरी के लोगों में हिंदुस्तान के प्रति बहुत अच्छा भाव है। लगता है कि यहाँ भारतीय संस्कृति बहुत लोकप्रिय है। लोग हिन्दुस्तान के बारे में कुछ न कुछ जानते हैं, हिन्दुस्तानी सभ्यता और मशहूर व्यक्तियों के बारे में जैसे, महात्मा गांधी इंदिरा गांधी और रबीन्द्रनाथ ठाकुर। यहाँ के लोगों की नृत्यकला में भी विशेष रूचि है। कहीं न कहीं सब लोग हिन्दुस्तान को एक बहुत अच्छी नज़र से, बहुत अच्छी दिशा से देखते हैं। यह इसलिए भी बहुत अहम् बात है, क्योंकि देशों में संबन्ध भी इतने अच्छे है, जितने लोगों के बीच में। जिस तरह की दिशा से लोग दूसरे देश को देखते हैं, सी तरह वे उस देश के लोगों के बारे में सोचते हैं उसके आधार पर दोनों देशों, दोनों देशों के सरकारों में संबन्ध बनते हैं।

रोबर्त : आप हंगरी से पहले जिन देशों में थे, क्या वहाँ भी ऐसी स्थिति थी ?

महामहिम जी : मैंने हंगरी से पहले केवल चार-पांच देशों में सरकारी काम किया। युगांडा का हाल बिलकुल अलग हैं, क्योंकि वह अंग्रेज़ कॉलोनी थी, वहां बहुत भारतीय लोग रहते हैं, इसलिए उसकी हंगरी से तुलना नहीं की जा सकती। लेकिन ऑस्ट्रिया में स्थिति हंगरी के समान है। वहाँ विश्वविद्यालय में बहुत मशहूर प्रोफेसर्स काम करते हैं और इन्डोलॉजी का नाम बहुत अच्छा है। मैं इन देशों के युनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका में भी था। न्यूयोर्क भी अलग है, क्योंकि वह हंगरी के मुकाबले बहुत एक इंटरनेशनल सिटी है। हर जगह की अपनी विशेषताएँ हैं, और मुझे सारी पोस्टिंग्स बहुत अच्छी लगी थीं।

रोबर्त : अभी आप कहाँ जाएँगे ?

महामहिम जी : हंगरी के बाद मैं वियतनाम जा रहा हूँ, हनोई।

वैरोनिका : यह किस का निश्चय था?

महामहिम जी : यह सरकार का निश्चय होता है, लेकिन हम से भी पूछा जाता है मैंने कहा कि मेरी भी रुचि है।

वैरोनिका : भारत और हंगरी के संबंध और मजबूत करने के लिए भारत सरकार किस तरह के कदम उठा रही है?

महामहिम जी : देखिए जैसा कि मैंने कहा है, सब से अहम् चीज़ यह होती है, कि लोगों के बीच संबंध अच्छा होने चाहिए। उसके बाद सरकार और व्यापारिक कम्पनियों के बीच में होने वाले संबंध अलग तरह के होते हैं। हंगरी के साथ उनका संबंध पिछले कुछ सालों से बढ़ रहा है। भारत की अर्थ व्यवस्था में बहुत परिवर्तन आये हैं। आधुनिक काल में हमारी प्रगति का रफ़्तार तेज़ है, हर साल जीडीपी बढ़ता है, - % है अभी हमारी कंपनियाँ पूरे विश्व में फैल रही हैं, पिछले कुछ सालों से हंगेरियन कंपनियाँ में भी बहुत रूचि हुई है। बहुत अहम् बात है, कि हंगरी ईयू का सदस्य बन गया है, क्योंकि हंगरी के साथ हमारे जो रिश्ते थे, और मजबूत हो गए। हमारे लिए बहुत अच्छी बात है, कि हंगरी के ज़रिये हमारा ईयू से भी अच्छा संबंध बनाया जा सकता है। हंगरी और ईयू से जो रिश्ते हैं, वे तो हैं ही, लेकिन उन्हें और मजबूत करने के लिए दोनों देशों को कदम उठाने हैं। हंगरी के विदेशमंत्री भारत गए, भारत के वाणिज्यमंत्री हंगरी आए, हुन्गेक्स्पो - अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य मेले में कई भारतीय कंपनियाँ आईं। कई कंपनियों ने इन्वेस्ट किया, जैसे तिसवश्वारि में या टांसइलेक्ट्रो के साथ। इससे भी स्पष्ट है, कि भारत की हंगरी में काफी रुचि है।

शिक्षा के लिए भी बहुत अहम् है कि विश्वविद्यालयों और रिसर्च इंस्टीट्यूटों में परस्पर संबंध बढ़ें। पिछले साल ऐल्ते के रेक्टर (उपकुलपति) दिल्ली गए, जहाँ विश्वविद्यालयों के बीच होने वाले संबंधों और एडुकेशनल सेक्टर की ओर से अहम् प्रश्न उठाए गए। हंगरी में शिक्षा बहुत अच्छी है, और मुझे पता चला कि हंगरी की यूनिवर्सिटियाँ चाहती हैं कि भारतीय छात्र यहाँ आये। यह भी दोनों देशों के संबंध ओर मजबूत रखेगा। सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत महत्त्व की बात है, कि बुदापैश्त में भारतीय सांस्कृतिक केंद्र बन रहा है, उसकी भी अहम् भूमिका रहेगी।

रोबर्त :और आप क्या सोचते हैं, इस संबंध का भविष्य कैसा होगा?

महामहिम जी : बहुत बढ़िया ! २००९ में विश्व अर्थ व्यवस्था बिगढ़ी, लेकिन जो घटना घटी, उससे तो लंबा दौर देखना चाहिए इसलिए मेरी राय है, कि हंगरी और हिन्दुस्तान के बीच भविष्य में बहुत बढ़िया संभावनाएँ हैं। उदाहरण के लिए सन २००५ में वाणिज्य १४० मिलियन डॉलर था, जो सन २००८ में ७०० मिलियन डॉलर हो गया, मतलब कि पांच गुना बढ़ा ! इसलिए दोनों देशों को आपस में विचार विमर्श करना होगा, कि भविष्य में कैसे कदम उठाए जाएँ, कैसे दोनों देशों के व्यापार के लोगों को इकट्टा करना होगा

रोबर्त : हंगरी में भारतीय संस्कृति के विस्तार में आप हिन्दी भाषा की भूमिका किस प्रकार देखते हैं?

महामहिम जी : इसकी बहुत अहम भूमिका हैं, क्योंकि हिन्दुस्तान में सबसे अधिक लोग हिन्दी बोलते हैं, और किसी देश की संस्कृति को गहराई से जानने के लिए उसकी भाषा सीखना अनिवार्य हैं। दूसरी ओर अगर हम बिलकुल गहराई से भारतीय संस्कृति और भारत को जाने चाहते हैं, तो हिन्दी के अलावा भारत की अन्य भाषाओं को भी पढ़ना चाहिए क्या आप के विभाग में हिन्दी और संस्कृत के अलावा दूसरी भाषाएँ भी पढ़ाई जाती हैं ?

रोबर्त : नहीं, सिर्फ संस्कृत और हिन्दी और इनके मध्यकालीन रूप, पाली और ब्रज भाषा इसलिए मैं जुलाई से एक पूरा साल केरल में बिताऊँगा, एक दूसरी आधुनिक भाषा सीखने के लिए

महामहिम जी : मलयालम तो बहुत मुश्किल भाषा है।

वैरोनिका : ज़रूर, लेकिन मेरा विश्वास है, कि एक साल के बाद रोबर्त हमारे विभाग में द्रविड़ भाषाओं का नया विशेषज्ञ बनेगा ! ।।मुस्कान

महामहिम जी और रोबर्त : ऐसा होना चाहिए !

वैरोनिका : आजकल हिन्दी पर अंग्रेज़ी भाषा ज्यादा प्रभाव डालती है, क्या आप इस परिवर्तन को बुरी बात मानते हैं?

महामहिम जी : मैं सोचता हूँ, कि यह बुरी बात नहीं है। यह तो ऐसे है, कि भाषा देश के साथ आगे बढ़ती है, उसमें चेंजिज़ होते हैं। भाषा एक जीवंत चीज़ है, उसको एक दृढ फॉर्म में नहीं रखना चाहिए। यह भी एक प्रश्न है, कि आप शुद्ध हिन्दी को क्या मानते हैं ? इसका मतलब है, कि उसमें संस्कृत या उर्दू का ज़्यादा प्रभाव होगा ? मेरे ख़याल से सबसे अधिक लोग जो हिन्दी बोलते हैं, एक तरह का मिश्रण बोलते हैं। यह एक स्वाभाविक प्रगति है, और मुझे ऐसे नहीं लगता कि इसको बदलना होगा। लेकिन आप दोनों बहुत सुन्दर हिन्दी बोलते हैं, बहुत अच्छी बात हैं। आप कैसे प्रैक्टिस कर सकते हैं?

दोनों एक साथ: प्रमोद जी के साथ (ठहाका) और हम बार-बार भारतीय छात्रों से बातचीत करते हैं, लेकिन समस्या यह हे, कि वे बहुत अच्छी हंगेरियन बोलते हैं। (ठहाका)

रोबर्त : दुनिया में एक ऐसा टेंडेसी है, कि इकोनोमी की भाषा अंग्रेज़ी हैं। क्या हिन्दी भी ऐसी बन सकती हैं ?

महामहिम जी : हो सकता हैं, क्योंकि अलग-अलग देशों में हिन्दी बोलने वाले बहुत हैं और हिन्दी विश्व की भाषाओं में उभर रही हैं। इसमें चलचित्र, फिल्म की भी अहम् भूमिका है, जो सारी दुनिया में हिन्दी का प्रचार करती रही हैं।

रोबर्त : ऐल्ते विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के कार्यों के विषय में आपकी राय क्या है ?

महामहिम जी : मेरी राय में ऐल्ते में जो काम किया गया हैं, हिन्दी का प्रचार, इसे सीखने के लिए संभवत सम्मेलन वगैरह बहुत अहम् बात है, क्योंकि भाषा के साथ संस्कृति भी जुड़ी हुई है, भाषा उसकी राजदूत है। बहुत अच्छा काम किया है आपने जिस के लिए हम आपके आभारी हैंहंगेरियन इंडोलोजी योरोप में मशहूर है, और यह भी बड़े महत्त्व की बात है कि अध्यापक, अध्यापिका और छात्र न सिर्फ अच्छे विशेषज्ञ हैं, बल्कि बहुत सक्रिय, एक्टिव भी हैं। हिन्दी और संस्कृत सम्मेलन, हर साल विश्व हिन्दी दिवस आयोजित किया जाता है, और अन्य त्यौहार मनाये जाते हैं इन के अलावा हिन्दी पत्रिका, जो छात्रों से शुरू किया है, भी बहुत अच्छा कदम हैइन सारे बातों से पता चलता है कि हंगरी में भारतीय संस्कृति और भारतीय स्टडीज़ में कितनी रूचि हैं। हम बहुत आभारी हैं इन सारे काम के लिए एक प्रश्न है, कि भविष्य में इस दिशा में और क्या काम किया जा सकेगासब से महत्त्वपूर्ण काम लोगों को इकट्टा करना होगा हमें चाहिए कि विश्वविद्यालय में पुरानी फिलोलोजी की परम्परा आगे चलायें और इससे समानांतर आधुनिक भारतीय स्टडीज़ को भी बढाइए। रेक्टर के साथ भी विचार-विमर्श किया गया है कि इसका क्या मौक़ा मिलेगा इसमें नए सांस्कृतिक केंद्र का बड़ा योगदान होगा हमारी आशा है, कि इसकी मदद से दोनों देशों का अच्छा सम्बन्ध और मजबूत होगा नए राजदूत का कर्तव्य भी यह होगा

वैरोनिका : और हमारे साथ साक्षात्कार करना, यहाँ से जाने के बाद आप यहाँ की क्या चीज मिस करेंगे?

महामहिम जी : मैं मिस करूँगा सभी लोगों को, बुदापैश्त को, इस बढ़िया दृश्य को, जो मेरे दफ्तर की खिड़की से दिखता है, दूना को। आपका बहुत सुंदर देश, और राजधानी है। बुदापैश्त की एक विशेषता डेन्यूब, दूना नदी है, जो शहर के बीचोंबीच बहती है। ऐसे कम नगर हैं, जिन में नदी की इतनी महत्त्वपूर्ण भूमिका है, जिससे शहर एक तरह खुलता है, उसका पूरा वातावरण दूना से प्रभावित है। मैं हंगरी से बहुत अच्छी यादों के साथ विदा लूँगा।

रोबर्त : हम इस साक्षात्कार के लिए आक के आभारी हैं, और हमारी आशा है, कि आप भविष्य में एक बार वापस आएँगे

महामहिम जी : अगर मौक़ा मिलेगा, तो ज़रूर आऊंगा !

(अफ़सोस की बात है महामहिम राजदूत महोदय इतने व्यस्त थे कि हमें उनसे बातचीत करने के लिए सिर्फ आधा घंटा ही मिल पाया। पता ही नहीं चला कि कब बीत गया। शुरूआत तो ऐसी थी कि वैरोनिका के काँपते हाथ से चाय की चम्मच गिरते-गिरते बची, कुछ ही देर में उसकी यह घबराहट लापता हो गयी थी। बाहर जाकर हमने आपस में बात की। महामहिम से हम दोनों की यह मुलाक़ात ज़रूर हमारी यादों में बसी रहेगी और यह तथ्य भी कि राजदूत महोदय हंगरी की एक चीज़ जिसे वह सब से अधिक मिस करेंगे : पोगाचा है!)


9 टिप्‍पणियां:

  1. sundar vichar..khushi ki baat hai,ki videsh mey apne log hindi ke liye kuchh karne ki sochate to hai. karne vale kar bhi rahe hai.

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  2. यह वाकई सहरानीय है कि ELTE विश्वविद्यालय का इन्दोलोग्य विभाग यूरोपे में हिंदी के प्रचार में महतवपूर्ण योगदान कर रहा है. वहां के अध्यापकों तथा विद्यार्थियों की हिंदी के प्रति लगन देखने योग्य है. अगर आप वहां के विद्यार्थियों की हिंदी सुनेंगे तो दंग ही रह जायेंगा और वेरोनिका उन में से एक है :)

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  3. प्रिय प्रमोद ,

    महामहिम राजदूत के साथ छात्रों का साक्षात्कार बहु आयामी और विचारोत्तेजक रहा. अपने छात्रों को इतना सक्षम बनाने पर बधाई !

    आपकी भित्ति पत्रिका वाक़ई अपने उद्देश्य की पूर्ति कर रही है .

    शुभकामनाओं सहित

    वशिनी

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  4. Hamari Shubhkamnayen. Yadi Aap log isi prakar Hindi ke prasar men aage aayenge to wo din door nahin jab poore vishwa men Hindi ki anugoonj hogi. Bahut Achchha lagaa aapka blog. Please help to Hindi.
    Kanhaiya Tripathi
    Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya, Wardha-442001
    MS
    Mo: 09765083470

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  5. Mitron yadi Aap koi mera sahyog chaahen to zaroor likhen ya phone karen.
    Meri kuchh kitaben Hindi men prakashit hain kritiyan.
    Book Published
    1. Satah Se Shikhar Tak Bharat Ke Rashtrapati / Akashdeep Pub., Maharouli New Delhi/2004, Second Edition: 2009, ISBN No. 978-81-87775-29-7
    2. Adivasi Samaj Aur Manvadhikar (Indigenous peoples and Human Rights) / Akademic Pratibha Publishers, New Delhi/2009, ISBN No. 978-938004-20-08
    3. Hind Swaraj : Ahimsak Kranti Ka Dastavez/ Samkaleen Prakashan, New Delhi/ 2010, ISBN No. 978-81-909927-0-1
    Edited Book Published

    4. Hind Swaraj: Shatabdi Vimarsh/ Vani Prakashan, New Delhi/ 2010. ISBN No. 978-93-5000-187-5
    5. Hind Swaraj: A Charter for Human Development from Within {Editor: Kanhaiya Tripathi & Dr. K.N. Patil (Jointly)}/ Academic Excellence, New Delhi/2010. ISBN No. 978-93-80525-04-
    Guest Editor of International Journal
    A Journal of Social Focus (*Special Volume on Women)/ Editor: Alok Yadav. Vol.1, No.2, Jan to June, 2010. ISSN No. 0975-4970.

    Published In Journal
    i. Vahiskrit Samaj Ke Pratirodh/ UP Journal Social Science, Edi. Dr. Rajeev/Vol.1, No.1, 1/2010. ISSN No. 0975-8852
    ii. Gandhi ki Ahimsak Samskriti ka navpath/A journal of Social Focus/ Vol.1, No.1, Jul. to Dec, 2009. Editor : Alok Kr.Yadav/ Vivekanand gramodyog snatkottar mahavidyalaya Viriyapur, Auriyya,UP. ISSN No. 0975-4970
    iii. Sahabhaagita Pranali aur Manavadhikar/ Manvadhikar: Nai dishayen, Editor: J.P.Mina/ Vol. 6, 2009/National Human Rights Commission, New Delhi. ISSN No. 0973-7388


    Aap chahen to laabh le sakate hain.
    Yours
    Kanhaiya Tripathi
    Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya,
    Wardha-442001 (MS)India
    Mo: 09765083470
    09454892925 (R)
    E-mail: kanhaiyatripathi@yahoo.co.in
    kanhaiyatripathi@gmail.com
    hindswaraj2009@gmail.com

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  6. प्रमोदजी आपके प्रयासो की जितनी तारीफ की जाये कम होगी.मै ये मानता हू कि आप और आपके समान काम कर रहे अनिवासी भारतीय ही भारत के वास्तविक राजदूत है, जो अपने प्रयासो से हिन्दी की खुश्बू सात समुन्दर पार फैला रहे है. वैरोनिका और राबर्ट को भी बधाई.

    सुबोध खंडेलवाल,सम्वाददाता, न्यूज़ 24 चेनल, इन्दौर(म.प्र.)

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  8. प्रमोदजी,

    टी.वी पत्रकार होने के साथ साथ मै भारत मे हिन्दी की सबसे पुरानी संस्थाओ मे से एक "श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति" से भी जुडा हुआ हू. समिति इसी साल अपनी स्थापना के सौ साल पूरे करने जा रही है.समिति द्वारा प्रकाशित पत्रिका "वीणा" देश की एकमात्र साहित्यिक पत्रिका है जो पिछले 83 वर्षो से निरंतर प्रकाशित हो रही है.(वीणा और समिति की वेबसाइट अभी परीक्षण की अवस्था मे है.www.hindisahityasamiti.com, www.veenapatrika.com)
    जब कभी आप या आपके विद्यार्थी भारत आये तो इस संस्था मे ज़रूर आये.

    सुबोध, (indore.subodh@gmail.com)

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  9. Now my Address:
    Kanhaiya Tripathi
    President House
    New Delhi-110004 India
    Mo: 08287744597
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    E-mail: kanhaiyatripathi@yahoo.co.in
    kanhaiyatripathi@gmail.com
    hindswaraj2009@gmail.com

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