लौरा लुकाच
मेरा बचपन काफ़ी उदास था, कम से कम मुझे उसकी याद ऐसे तो आती है । उस समय में हंगेरी अलग देश था क्योंकि आज के देश से कम रंग-बिरंगा और ज़्यादा उबाऊ देश था । लोग अपने आपको आज़ाद नहीं समझते थे और वे अधिकतर ग़रीब थे । दुकानों में ख़रीदने के लिऐ कम माल थे और पश्चिमी देशों की यात्रा करना बहुत मुश्किल था ।
मैं अपने परिवार के साथ – जैसे मेरे पिताजी, माताजी और दादी जी – बुदापैश्त में रहती थी लेकिन गरमियों की छुट्टियाँ नानी जी के पास गाँव में बिताती थी । वहाँ मुझे दोस्त या सहेलियाँ नहीं थीं, इसलिए मैं अकेली थी । जब मैं ज़्यादा बड़ी थी, मैं कई किताबें पढ़ती थी और अकसर साइकिल चलाती थी ।
मेरे पिताजी लेखक, पत्रकार और अनुवादक थे । जीवन सरल नहीं था, हम भी काफ़ी ग़रीब थे लेकिन हमें खाना हमेशा मिलता था । कभी-कभी मेरे जूते और कपड़े छोटे लगते थे ।
अच्छी चीज़ें भी थीं जैसे सस्ती किताबें और दूसरी संस्कृति की आसानी से लाने के लिए वस्तु ।
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