रीता ज्वारा
एक बार गर्मियों के दिन में खेत में साही से मिला। ख़रगोश ने साही को गुस्सा दिला दिया। वह उससे कहता है :
- साही तुम, इन मोटे पैरों से चलने की हिम्मत कैसे करते हो ? कैसे चल पाते हो ?
साही क्रोधित होकर ख़रगोश से बोली :
- मैं इन मोटे पैरों से तुम से भी तेज़ दौड़ सकती हूँ।
ख़रगोश कहता है :
- मैं ऐसा नहीं सोचता।
- अरे, अगर तुम नहीं सोचते हो तो हम दाँव लगाएँ !
उन्होंने जल्दी से दाँव लगाया। जब दाँव तैयार हो गया तो ख़रगोश साही से पूछता है :
- हम कब दौड़ेंगे ?
साही कहती है :
- कल सुबह, जब आठ बजे वाली रेलगाड़ी चलती है :
ख़रगोश कहता है :
- अभी क्यों नहीं ?
- क्योंकि मुझे खाना खाने के लिए घर जाना है। कल सुबह आठ बजे हम दोनों इसी स्थान पर होंगे।
साही घर चली गयी। घर पर उसकी पत्नी खाने के साथ इंतज़ार कर रही थी। खाने के बाद उसने पत्नी से कहा जो हो सो हो गया।
- मैंने ख़रगोश से दाँव लगाया कि मैं उससे जल्दी से दौड़ सकता हूँ।
उसकी पत्नी ने कहा :
- तुम पागल हो। तुम कैसे बेहतर दौड़ सकते हो ?
- हम कुछ करेंगे !
दूसरा दिन उन्होंने सुबह का खाना खाया, उसके बाद वे खेत पर गये। लेकिन वे वहाँ नहीं गये जहाँ उन्हें ख़रगोश से मिलना था पर खेत के दूसरा किनारे पर गये। वहाँ साही ने अपनी पत्नी को एक झाड़ी में छिपाया। उसने कहा :
- जब तुम ख़रगोश को देख लो तब तुम ज़ोर से चीख़ना : „मैं अभी आयी !”
उसके बाद साही खेत को दूसरा छोर पर गया। वहाँ ख़रगोश से मिला।
- नमस्ते, ख़रगोश यार !
- नमस्ते, साही यार !
- क्या तुम आ गये ?
- मैं आ गया।
- क्या हम दौड़ेंगे ?
- हाँ।
- कैसे और कहाँ ?
साही ने कहा :
- मैं इस सड़क पर दौड़ती हूँ, तुम उस पर। इससे हम एक दूसरे को दौड़ने में रुकावट नहीं डाल सकेंगे।
- ठीक है।
ख़रगोश एक सड़क पर, साही दूसरी सड़क पर ख़ड़े थे। तो साही ने ख़रगोश से कहा :
- मैं गिनता हूँ। जब मैं तीन कहता हूँ तो हम रवाना होंगे। एक, दो, तीन !
तब वे दोनों रवाना हुए पर साही सिर्फ़ कूदा और एक झाड़ी में छिप गया लेकिन मादा साही खेत के दूसरे घोर पर थी। जब ख़रगोश वहाँ पहुँचा तो वह चीख़ दी :
- मैं अभी आयी !
तब ख़रगोश ने कहा :
- यह ठीक नहीं था, दूसरी बार दौड़ें !
तो उन्होंने वापस दौड़ने लगे पर वह साही भी कूदा और छिप गयी । ख़रगोश वैसे तेज़ से दौड़ा, उससे पहले ऐसे कभी नहीं। जब वह खेत के घोर पहुँचा, दूसरे साही ने चीख़ा :
- मैं अभी आया !
- यह ठीक नहीं है, दूसरी बार दौड़ें !
वे एक बार फिर दौड़े। साही छिप गया, ख़रगोश वैसे दौड़ा जैसे सका। जब वह खेत के दूसरा घोर पहुँचा, दूसरी साही ने भी चीख़ा :
- मैं अभी आयी !
- ठीक नहीं – ख़रगोश कह रहा है – हम एक और बार दौड़ते हैं, चौथी बार।
लेकिन इस बड़ी दौड़ में ख़रगोश के पैर काँपना लगे। वह खेत के मध्य में गिर गया, दौड़ नहीं पाया। दोनों साही ख़रगोश की हँसी उड़ाये क्योंकि वे जीत गये। वे घर गये और आज भी रहते हैं अगर वे नहीं मर गये।
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