शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

मुर्गा

अनुवाद- असग़र वजाहत
नाट्य रूपांतरण- साश ओर्शोल्या

दृश्य १

(ज़मींदार अपने खेतों के सामने खड़े मज़दूरों को निर्देश दे रहा है)

ज़मींदार - ठीक से काम करो...। जल्दी हाथ चलाओ...। क्या हाथों में जान नहीं है? तुम सब पक्के आलसी हो!

(किसान आता है)

किसान - (झुककर हाथ जोड़ता है) बंदगी सरकार।

ज़मींदार - तू आ गया रामदीन। मैं तुझसे बहुत नाराज़ हूँ।

किसान - क्या गलती हो गई मालिक?

ज़मीदार - तेरे पास एक मुर्गा है न?

किसान - जी मालिक।

ज़मीदार- आज सुबह मैं गहरी नींद सो रहा था तो उसने इतनी ज़ोर से कुकड़ू कूँ की कि मैं जाग गया। मेरी नींद खराब हो गयी।अब मैं तेरे मुर्गे को सज़ा दूंगा।

किसान - मुर्गे को सज़ा?

ज़मीदार- हाँ, और नहीं तो क्या? मेरी नींद खराब करना मामूली जुर्म है क्या? जा, अपने मुर्गे को काट डाल! उसे अच्छी तरह साफ़ कर। फिर बढ़िया घी और अच्छे मसालों में उसे पका। और मेरे पास ले आ। उसे खाकर जब सोऊंगा तब मेरी नींद पूरी होगी। समझा?

किसान - जी मालिक

ज़मीदार- और उसके साथ पीने के लिए बढ़िया शर्बत बनाकर लाना। समझा? जा!

किसान - ठीक है मालिक।

(किसान चला जाता है)

ज़मीदार- (मज़दूरों से) तुम लोग फिर सुस्त पड़ गए। गाली नहीं खाते हो तो काम ही नहीं करते। मैं तुम्हारी चमड़ी अलग कर दूंगा। जल्दी हाथ चलाओ!

(ज़मींदार का नौकर रामू तेज़ी से आ रहा आता है)

ज़मीदार- क्यों बे तूने आने में इतनी देर कैसे कर दी?

रामू - देर कहाँ कर दी? मैं तो भागता हुआ आ रहा हूँ।

ज़मीदार- झूठ बोलता है कमीने। चल, मुर्गा बन जा। तेरी यही सज़ा है।

(रामू मुर्गा बन जाता है। ज़मींदार उसकी पीठ पर बैठ जाता है)

रामू - मेरा दम निकला जा रहा है मालिक...।

ज़मीदार- चुप रह।

(किसान हाथ में एक थैला लिए आ रहा है)

ज़मीदार- ले आया?

किसान - जी मालिक।

ज़मीदार- ला दे।

(उठकर थैला ले लेता है)

ज़मीदार- (स्वगत कथन) वाह, खुशबू तो बढ़िया आ रही है। खाने में मज़ा आ जाएगा। और शर्बत की बोतल भी है। मैं खाने को रामू के हाथ घर भिजवा देता हूँ और रात में खाऊँगा। मुर्गे की टाँगें चबाऊंगा। (चटकारा लेता है)। ओहो, लेकिन एक डर है। रामू बदमाश है। उसे यह न पता चलना चाहिए की थैले में क्या है। नहीं तो रास्ते में एक टांग चटकर जाएगा।

(किसान से) ठीक है तुम जाओ। (रामू से) देख, यह थैला घर ले जा और ज़मींदारनी को दे देना। रास्ते में इसे खोलकर मत देखना। इसमें ज़िंदा मुर्गा है। वह भाग जाएगा। और बोतल में ज़हर है। उसे तो हाथ भी न लगाना। नहीं तो तू मर जाएगा।ले जा।

(रामू थैला लेकर चल देता है)

दृश्य २

(रामू थैला लिए चला जा रहा है)

रामू - (स्वगत कथन) वह मुर्गा मियाँ वाह! ज़रा मुर्गे की आवाज़ तो सुनूं। (थैले को कान के पास लाता है) आवाज़ तो नहीं आ रही पर खुशबू बहुत आ रही है। (बैठ जाता है, थैला खोलता है) वह, यही है ज़िंदा मुर्गा। (खाता है) और यह ज़हर (बोतल खोलकर पीता है) बड़ा अच्छा ज़हर है।मज़ा आ गया। (मुँह पोंछता हुआ) चलो अब चादर तानकर सोया जाए। (मंच के एक कोने में सो जाता है)

दृश्य ३

(ज़मींदार अपने घर पर पत्नी के साथ)

ज़मीदार- लाओ मुर्गा और शर्बत लाओ! मैं बहुत भूखा हूँ।

ज़मींदारनी - पागल तो नहीं हो गए हो? या दिन में सपने देखने लगे हो? कैसा मुर्गा और कैसा शर्बत?

ज़मीदार- क्यों क्या रामू नहीं लाया?

ज़मींदारनी - रामू तो यहाँ आया ही नहीं

ज़मीदार- मैं जाता हूँ हरामज़ादे को पकड़कर लता हूँ। न जाने कहाँ मर गया...।

दृश्य ४

(रामू सो रहा है। ज़मींदार उसे लात मारकर उठाता है। रामू घबराकर उठ जाता है।)

ज़मीदार- उल्लू के पट्ठे! मुर्गा और ज़हर कहाँ गया? बता नहीं तो मार डालूँगा!

रामू - राम कसम मालिक, मुर्गा तो रस्ते में कुकुड़ू कूँ कुकुड़ू कूँ बोलता रहा और फिर थैले से निकलकर भाग गया। मैं उसके पीछे दौड़ा। मुर्गा भागता रहा। मैं उसके पीछे दौड़ता रहा। पर वह जंगल में गायब हो गया। तब मैंने सोचा कि आप मुझे बहुत मारेंगे तो मैंने सोचा मैं मर ही क्यों न जाऊं? मैंने वह ज़हर पी लिया जो बोतल में था।

ज़मीदार- बदमाश तो यहाँ क्यों लेटा था?

रामू - ज़हर पीकर मरने का इंतज़ार कर रहा था मालिक।

2 टिप्‍पणियां:

  1. सदा सर्वदा का मजेदार नाटक है यह

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  2. नाटक का मंचन सांस्कृतिक केन्द्र भारतीय दूतावास बुदापैश्त हंगरी में ऐल्ते विश्वविद्यालय के छात्रों ने किया जिसे देखना एक सुखद अनुभव था.

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