शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

यानिकोव्सकी एव: अगर मैं बड़ा होता …,

अनुवाद- फेहैर ओलिविया



सब बच्चे जानते हैं, छोटे से छोटा भी,

कि शरारती होना अच्छा होने से

ज्यादा मजेदार होता है।



हमेशा शिष्ट व्यवहार करना भयानक रूप से उबाऊ,

साथ-साथ थकाऊ भी होता है



अगर तुम लम्बे समय तक एक कुर्सी पर स्थिर बैठे रहते हो

तो तुम्हारे पैर सुन्न हो जाएँगे।

अगर तुम चाकू और कांटे से खाना खाने की कोशिश करते हो तो मांस तुम्हारी थाली से बाहर उड़ जाएगा।

अगर तुम अपने हाथों को धो कर पूरी तरह से साफ़ कर पाते हो,

तुम्हारे तैयार होने से पहले ही, दूसरे लोग मेज़ पर बैठ चुके होंगे।





बड़े हमेशा ऐसा ही कहते हैं कि:



अच्छे बनो!

यह भी कि

बुरे मत बनो!

और यह भी कि आज्ञाकारी बनो!

और यह भी कि

ठीक से व्यवहार करो!





उनका यह कहना तो आसान है, क्योंकि बड़े व्यर्थ ही कहते हैं कि:

खुश रहो, जब तक तुम एक बच्चे हो!

सब बच्चे जानते हैं, छोटे से छोटा भी, कि

बड़ा होना ज़्यादा बेहतर है!

कोई भी बड़ा वे कपड़े पहनता है, जो उसके दिमाग में आते हैं,

अगर वह दमकल गाड़ी का सायरन सुनता है, वह आराम से खिड़की से बाहर निकल झाँक सकता है,

कोई बात नहीं कितना भी पसीने से लथपथ हो, वह हमेशा पानी पी सकता है,

वह उतने हलके स्वर में अभिवादन कर सकता है जितना चुपचाप वह चाहता है,

और उसको सोने जाना नहीं पड़ता है जब टीवी सब से मनोरंजक होता है।



लेकिन यह इतना ही नहीं है!



बड़ा हमेशा वही करता है जो उसका जी चाहता है, पर बच्चे को वह करना पड़ता है जो बड़े का जी चाहता है।

बड़े हमेशा बच्चों से जोर से कहते हैं:



अपना स्वेटर पहनो!

अपने हाथ धोओ!

अपने नाखून मत चबाओ!

अपने पैरों के आगे देखो!

अपने खिलौने सही जगह रखो!



और अगर बच्चा कहना नहीं मानता, तो नतीजा होता है कि:



मुझे कितनी बार तुम्हें हाथ धोने के लिए कहना चाहिए? मेज़ पर ऐसे ही नहीं बैठ सकते!

मुझे कितनी बार तुम्हें स्वेटर पहनने के लिए कहना चाहिए? क्या तुम चाहते हो सर्दी लग जाए?

मुझे कितनी बार तुम्हें आगे देखने के लिए कहना चाहिए? ऐसे तुम नाक के बल गिर जाओगे!

मुझे कितनी बार तुम्हें नाखून न चबाने के लिए कहना चाहिए? यह देखने में भी बुरा है!

मुझे कितनी बार तुम्हें खिलौने सही जगह पर रखने के लिए कहना चाहिए? क्या मैं हमेशा तुम्हारे खिलौने ठीक जगह रखूँ?



और अगर बच्चा फिर भी नहीं मानता, तो नतीजा होता है कि:





बताओ, मेरे प्यारे बेटे और कितनी बार मुझे कहना होगा कि:



अपना स्वेटर पहनो!

अपने हाथ धोओ!

अपने नाखून मत चबाओ!

अपने पैरों के आगे देखो!

अपने खिलौने सही जगह पर रखो!



कितनी बार कहना होगा? कितनी बार ? कितनी बार ? कितनी बार ?





और बड़े ऐसा इतनी बार दोहराते हैं कि







अंत में बच्चा मान ही जाता है,



और अपने हाथ धोता है,

और अपना स्वेटर पहनता है,

और अपने आगे देखता है,

और अपने नाखून नहीं चबाता,

और अपने खिलौने सही जगह पर रखता है,

और तो, अंत में बड़े खुश हो जाते है।



बड़े ऐसे भी होते हैं,

जो इतने खुश होते हैं कि वे मुस्कुराते हैं और कहते हैं कि:

देखो, मेरे बेटे, तुम अच्छा भी बन सकते हो!

लेकिन ऐसे बड़े भी होते हैं,

जो तब भी सिर्फ अपना सिर हिलाते हैं जब वे अंततः खुश हो जाते हैं, और कहते हैं कि:

बताओ, मेरे बेटे, क्या तुम तुरंत ही आज्ञापालन नहीं कर सकते थे?



मुझे नहीं पता ऐसा क्यों होता है कि बड़े सचमुच सिर्फ तभी खुश होते हैं जब बच्चा ठीक से व्यवहार करता है।

इसमें क्या खुशी है?



मैं एक बहुत ही अलग बड़ा होता और मैं सब कुछ करके खुश हुआ करता।

सबसे पहले यह सराहता, कि मैं वह कर सकता हूँ जो मैं करना चाहता हूँ।



अगर मैं बड़ा होता, तो

मैं कुर्सी पर कभी नहीं बैठता, लेकिन मैं हमेशा घुटनों पर बैठता

मैं अपने सफ़ेद दस्तानों वाले हाथों से लोहे के पूरे बाड़े पर प्यार से हाथ फिराता,

मैं दांत साफ करने के गिलास में खजूर फल के बीज अंकुरित करता,

मैं हर भोजन से पहले चॉकलेट की एक-एक बड़ी पट्टी खाता,

और मैं शायद अपने हाथों से मक्खियाँ पकड़ता।

स्वाभाविक रूप से, सिर्फ अगर मैं इससे पहले मक्खियाँ पकड़ना सीख गया होता।



अगर मैं बड़ा होता, तो

मैं हमेशा खेलों के जूते पहनता,

मैं सूप के बाद हमेशा दो गिलास पानी पीता,

मैं सड़कों पर उल्टा चलता,

मैं सभी भटकी बिल्लियों को दुलार करता,

और शायद, इतनी जोर से सीटी बजाता ताकि सभी मुझ पर नज़र रखें और मुझसे डर जाएँ,

स्वाभाविक रूप से, सिर्फ अगर मैं इससे पहले दो उंगलियों से सीटी बजाना सीख गया होता।



अगर मैं बड़ा होता, तो

मैं हमेशा कुर्सी पर अपने पैर हिलाता, जब में एक अतिथि होता,

मैं अपनी नाक कभी साफ नहीं करता, लेकिन मैं सिर्फ सूँघता रहता,

मैं अपने गंदे पैर दरवाजे के पहले कभी नहीं साफ करता,

मैं घर में एक असली जिराफ रखता, जो मेरे बिस्तर के सामने सोता,

और मैं शायद सब परिवारों के घरों के फाटकों की घंटी दबाता,

स्वाभाविक रूप से, सिर्फ अगर मुझे कुत्तों से डर लगना खत्म हो चुका होता।



अगर मैं बड़ा होता, तो मैं शादी करता, मैं उस लड़की से शादी करता,

जो हालांकि मेंढक देखकर चिल्लाती लेकिन उस से "घृणित" और "चीं" नहीं कहती,

जो साबुन के ऐसे बुलबुले उड़ा सकती, जो कभी नहीं फटते,

जो डर तो जाती लेकिन नाराज़ नहीं होती, जब मैं उसके कान के पास एक कागज़ के बेग का पटाका बजाता,

और जो मेरी पतंग की डोर अच्छी तरह से बाँध सकती।



मैं और वह लड़की, जिससे मैं शादी करता,

हम फर्श पर अपने हाथों-पैरों पर रेंगते, जितना हमें अच्छा लगता है,

और इस बीच हम कागज़ की तुरही इतनी जोर बजाते, जितनी जोर से हम बजा सकते।

हम दोनों बड़े होते, इस प्रकार कोई भी हमें फटकार नहीं सकता, कि

"यह बंद करो, क्योंकि मैं पागल हुआ जा रहा हूँ"।



अगर मैं बड़ा होता, तो मैं शादी करता, मैं एक ऐसे घर में रहता

जहाँ मैं कमरे में गेंद खेल सकता,

जहाँ मैं गमलों में बलूत के पौधे लगा सकता,

जहाँ मैं स्नानघर में ज़र्द मछली रख सकता,

मुझे कभी कुछ भी कचरे में नहीं फेंकना पड़ता, क्योंकि सब चीज़ों को, जिन्हें मैं घर लाता, जगह मिलती,

जैसे एक गिरा होर्सचेस्टनट,

या एक जंग लगी लोहे की कील,

या एक गाँठों वाली रस्सी,

या एक फेंका हुआ ट्राम का टिकेट,

या एक छोटा, बीमार साही।



उस घर में, जहाँ हम रहते, हमारे पड़ोसी सिर्फ ऐसे ही आदमी और औरतें होते,

जो हमें अपनी कनारी छूने देते,

जो हमें ताज़ा पकाए केक के किनारे खिलाते,

जो हमें दुकान से कुछ खरीदने के लिए भेजते, और हम को रंग-बिरंगे कागज़ देते,

और जो मुस्कराकर हमें प्रोत्साहित करते, यदि हम उनकी खिड़की के नीचे फुटबॉल खेलते।



अगर मैं बड़ा होता, शादी करता, मेरे बहुत बच्चे होते,

क्योंकि मुझे वे खेल खेलना पसंद है, जिनमें बहुत बच्चों की ज़रूरत होती है।

मैं उन बहुत बच्चों का पिता होता, और वह लड़की, जिससे मैं शादी करता, उनकी माता होती।



मैं और वह लड़की, जिससे मैं शादी करता, और हमारे बच्चे पूरे दिन सिर्फ खेल खेलते रहते!

"पकड़म-पकड़ाई", "आइस पाईस", "आँख-मिचौनी" जैसे खेल खेलते।

जब हमारे और अधिक बच्चे होते तो

हम दौड़, लंबी छलांग, टॉस और रोलर की प्रतियोगिताएँ भी आयोजित करते।



मैं हमेशा जीतता और तो बच्चे अपने पिता पर गर्व कर सकते।



हमारे बच्चे कभी गुप्तचरी नहीं करते,

कभी नहीं लड़ते,

कभी नहीं रोते,

और वे हमारे खिलौने कभी नहीं ले लेते,

क्योंकि मुझे गुप्तचरी करने वाले, लड़ने वाले और रोने वाले बच्चे पसंद नहीं हैं,

जो हमेशा अन्य लोगों के खिलौने ले लेना चाहते हैं।



हमारे बच्चे इतना बुरे तरह से व्यवहार कर सकते, जितना मैं और यह लड़की,

जिससे मैं शादी करता,

लेकिन इससे अधिक नहीं क्योंकि यह निष्पक्ष नहीं होता।



हम सब कुर्सी पर अपने पैर हिलाते जब हम अतिथि होते,

हम भोजन से पहले एक दूसरे को चॉकलेट की बड़ी पट्टियाँ देते,

हम सब सड़कों पर पीछे की ओर चलते,

और हम सब भटकी बिल्लियों को दुलार सकते,

स्वाभाविक रूप से, सिर्फ लाइन में, बारी-बारी से ।



वसंत में, सब बच्चों को समान रूप से गुब्बारे मिलते,

लेकिन मेरा थोड़ा अधिक बड़ा होता,

क्योंकि मैं उनके पिता होता।

गर्मियों में, मैं सब बच्चे के लिए समान रूप से बड़ी आइसक्रीम खरीदता,

मैं तो सिर्फ खुद के लिए थोड़ी अधिक खरीदता,

क्योंकि मैं उनके पिता होता।

पतझड़ में सब बच्चे बारिश की गड्ढों में छपाक कर सकते,

लेकिन मैं तो सब से गहरे में चलता,

क्योंकि मैं उनके पिता होता।

सर्दियों में सब बच्चे हिम पहाड़ियों पर चढ़ सकते,

लेकिन मैं तो सब से ऊँची पर चढ़ता,

क्योंकि मैं उनके पिता होता।



यह ऐसे ही निष्पक्ष है, क्योंकि

अगर उन्हें सब से बड़ा गुब्बारा मिलता,

अगर उन्हें अधिक आइसक्रीम मिलती,

अगर वे सब से गहरे बारिश के गड्ढे में चल सकते,

तो मेरे लिए बड़ा होने में क्या खुशी होती?



काश मैं बड़ा होता!!!

लेकिन मैं अभी छोटा हूँ,

और मुझे बड़ा होने के लिए

बहुत ज्यादा बढ़ना चाहिए।



और जब तक मैं बहुत ज्यादा नहीं बढ़ता,

मुझे आज्ञाकारी होना पड़ेगा,

मुझे अपने हाथ धोना पड़ेंगे,

मुझे अपना स्वेटर पहनना पड़ेगा,

मुझे अपने पैरों के आगे देखना पड़ेगा,

मुझे अपने नाखून नहीं चबाने होंगे,

मुझे अपने खिलौने सही जगह पर रखने पड़ेंगे।

दूसरी चीजों के बारे में बात न की जाए,

क्योंकि इनके अलावा भी बहुत अधिक हैं।



अगर मैं बड़ा होता तो

मैं गंदे हाथ लिए मेज़ पर बैठता

और मैं हमेशा छोटी बाज़ू की टीशर्ट पहनता,

और मैं अपने पैरों के आगे नहीं देखता, बल्कि मैं नाक के बल गिरता,

और मैं अपने हर नाख़ून को हर तरह से चबाता,

और मैं अपने खिलौने बिखेरे रखता।

दूसरी चीजों के बारे में बात न की जाए,

क्योंकि इनके अलावा भी बहुत अधिक हैं।



क्या अच्छा होता अगर मैं बड़ा होता!

मैं सिर्फ एक बात नहीं समझता ।

मेरी माता जी और मेरे पिता जी भी और बड़े होते।

फिर भी वे क्यों अपने हाथ धोते हैं?

फिर भी वे क्यों अपना स्वेटर पहनते हैं?

फिर भी वे क्यों अपने पैरों के आगे देखते हैं?

फिर भी वे क्यों अपने नाखून नहीं चबाते?

फिर भी वे क्यों अपनी चीज़ें उनकी अपनी जगह पर नहीं रखते?



मैं एक बार उन से यह पूछूँगा!

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