ओर्शोया सास--
ओर्शोया सास:- महामहिम जी, आप हंगरी आने से पहले हमारे देश के, लोगों के, संस्कृति के बारे में क्या सोचते थे? यहाँ आने के बाद के अनुभवों का इसपर क्या प्रभाव पड़ा?
महामहिम जी:- राजदूत के रूप में हंगरी आने से पहले भी मैं दो बार यहाँ आ चुका हूँ। पहली बार मैं उन्नीस सौ पचासी में आया था और दूसरी बार उन्नीस सौ अठानवे में आया था। तो मुझे यहाँ के लोगों का, यहाँ की संस्कृति का कुछ आइडिया था। पूरी तरह से नहीं लेकिन कुछ आइडिया था। मुझे यह भी पता था कि हंगरी पूर्वी और पश्चिमी देशों के बीच में एक ब्रिज, पुल के रूप में है। यहाँ के लोग भारतीय सभ्यता और संस्कृति को काफी पसंद करते हैं।
ओर्शोया सास:- महामहिम जी आपने एक इंटरव्यू में कहा है कि आपको यहाँ बिताये हर मिनट से आनंद की अनुभूति होती है, इसका क्या कारण और मतलब है?
महामहिम जी:- आनंद की अनुभूति इसलिए होती है कि यह देश बहुत सुन्दर है, यहाँ के लोग अच्छे हैं, उनका व्यवहार बहुत अच्छा है। वे भारतीय सभ्यता, संस्कृति और लोगों को बहुत पसंद करते हैं। अगर आप पश्चिमी योरोप के देशों से हंगरी की तुलना करें, तो यहाँ के लोगों में मानवीयता की भावना ज़्यादा है, इनसे संपर्क करना ज़्यादा आसान है। मनुष्यों के बीच में जो इंटरएक्शन होता है, हंगरी में वह बड़ा सरल है। यहाँ के लोगों को आप मित्र भी बना सकते हैं, जबकि पश्चिमी योरोप के देशों में यह थोड़ा मुश्किल काम है।
ओर्शोया सास:- महामहिम जी जब हंगरी और भारत के संबंधों की चर्चा चलती है तो हम हमेशा बहुत पुराने, भाईचारा पूर्ण सांस्कृतिक संबंधों के बारे में सुनते हैं। आजकल राजनैतिक, वित्तीय और शैक्षिक संबंध भी गहराते जा रहे हैं। इन संबंधों में से कौन-कौन से संबंध दूर तक जाने की संभावना है?
महामहिम जी:- भारत के संबंध हंगरी के साथ बहुत पुराने हैं। अगर आप हमारे संबंधों का इतिहास देखें, तो दोनों देशों के बीच में पंद्रहवीं, सोलहवीं सदी में भी संपर्क व संबंध रहे हैं। अठारहवीं-उन्नीसवीं सदी में काफी संपर्क रहे हैं। अगर आप बड़े व्यक्तियों की बात करें, तो रबिन्द्रनाथ टैगोर का हंगरी से बहुत गहरा संबंध रहा है। उसी तरह से चोमा कोरोशी, जो हंगरी के भारतविद थे, उनका बहुत गहरा संबंध है हिन्दुस्तान के साथ। एलिज़ाबेथ शश-ब्रुन्नैर और उनकी बेटी एलिजाबेथ ब्रुन्नैर दोनों का भी हिंदुस्तान से बहुत गहरा संपर्क रहा है, वे दोनों वहीँ गुज़री हैं, उनकी कब्रें भी वही हैं। इसी तरह से चोमा कोरोशी की कब्र भी वहीँ पर है। इसी कड़ी में अमृता शेरगिल का नाम भी आता है, जिनका हंगरी से बहुत गहरा संबंध है, उनकी माता हंगेरियन थी और पिता भारतीय थे। वे भी एक बहुत बड़ी पेंटर रही हैं। अगर ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो हमारे संबंध काफी गहरे रहे हैं। रबिन्द्रनाथ टैगोर का तो बहुत गहरा संबंध है। आप जानती ही हैं, वे उन्नीस सौ छब्बीस में बलातोनफुरेद में रहे थे। जब हंगरी में कम्युनिस्ट शासन था, उस समय भी हिंदुस्तान के साथ हंगरी का बहुत गहरा संबंध था। हमारे यहाँ उस समय रूपी ट्रेड का समझौता था। उसके तहत हंगरी के साथ काफी व्यापार होता था। हमारे यहाँ पच्चीस से ज़्यादा संयुक्त उद्यम (जोइंट वेंचर्स) थे। उन्नीस सौ नब्बे के बाद, जब से हंगरी प्रजातांत्रिक (डेमोक्रटिक) सिस्टम में आया है, उसके बाद भी हमारे संबंध काफी गहरे होते चले जा रहे हैं। हमने विभिन्न क्षेत्रों में समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। हमारा जो व्यापार है, वो पिछले वर्षों में काफी बढ़ा है। मैं यह नहीं कहता कि बहुत अच्छा है, लेकिन फिर भी दोनों देशों के बीच में छह सौ मिलियन डालर का व्यापार है । इसके अलावा आर्थिक संबंधों में काफी जोइंट वेंचर्स हैं दोनों देशों के बीच में। कुछ हंगरी में हैं, कुछ इण्डिया में भी हैं। संस्कृति और कला की क्षेत्र में तो वैसे भी बहुत गहरे संबंध हैं।
इन्डियन डांस ग्रुप्स, संगीतकार और यहाँ आते रहते हैं और अपनी पर्फोर्मेंस देते रहते हैं। इन्डोलॉजिस्ट व अन्य विषयों के विशेषज्ञ भी आते हैं । हंगरी में हिन्दुस्तानी नृत्य और संगीत की क्लासिज़ चलती हैं। हंगरी के नागरिकों का किसी न किसी रूप में हिंदुस्तान के साथ संबंध है। काफी लोग जो हिंदुस्तान घूमने के लिए जाते हैं, वे भी बड़ी अच्छी यादें लेकर वापस आते हैं। वे यहाँ के अन्य नागरिकों से बातचीत करते हैं। और इसकी वजह से हंगरी में योग बहुत प्रसिद्ध है। बुदापैश्त में २०० से ज़्यादा योग सेण्टर हैं। यहाँ ६-७ हिन्दुस्तानी संगीत और नाच-गाने के शिक्षक हैं, जो स्वयं भी हिन्दुस्तानी म्यूज़िक और हिन्दुस्तानी डांसिज़ परफोर्म करते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में अगर आप देखें तो यहाँ इंडोलोजी में काफी लोगों की रुचि है। ऐल्ते यूनिवर्सिटी में हिंदी और संस्कृत की पढ़ाई जाती हैं। आयुर्वेद में भी यहाँ के लोगों की काफी गहन रूप से रुचि है। इस साल आयुर्वेद की यहाँ एक बड़ी कान्रेंर्स हुई थी। हम चाहते हैं कि अगले साल भी यहाँ एक बड़ी कान्रेंेकस करें। यहाँ दो तीन आयुर्वेदिक केंद्र भी हैं। तो समुचित रूप से देखें तो हमारे संबंध ऐतिहासिक हैं, और अभी भी वे आगे की तरफ बढ़ते चले जा रहे हैं।
ओर्शोया सास:- महामहिम जी आप अब क़रीब ३ महीने से रह रहे हैं हंगरी में, आपने अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का उद्घाटन भी किया है और हंगरी में पर्यटन भी किया है। इनके आधार पर आप क्या सोचते हैं-
यहाँ के लोगों की भारतीय संस्कृति की कल्पना कैसी है?
क्या इसमें कुछ बदलने या जोड़ने की ज़रूरत है?
महामहिम जी:- जैसे मैंने अभी आपको बताया, कि भारतीय संस्कृति में हंगेरियन लोगों का काफी इंटेरेस्ट है, काफी रुचि है। यहाँ पर हर सप्ताह कम से कम एक या दो भारतीय संगीत या भारतीय नाच-गाने के प्रोग्राम होते हैं। और सिर्फ बुदापैश्त में ही नहीं बल्कि अलग-अलग शहरों में होते हैं। यह तो एक बहुत ही अच्छी प्रवृत्ति है। हम इससे बड़े खुश हैं। और हमें देखकर कभी-कभी ऐसा लगता है कि हम हिंदुस्तान में ही हैं।
ओर्शोया सास:- महामहिम जी दूतावास के पास जो नया भवन, सांस्कृतिक केंद्र बन रहा है, उसमें किस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करने की योजना है?
महामहिम जी:- सांस्कृतिक केंद्र में हम कई तरह के आयोजन करेंगे। नाच-गाने के अलावा हम यह भी चाहते हैं कि भारतीय सभ्यता, संस्कृति से जुड़े विषयों पर कॉन्रेहमसेज़ हों। हम चाहते हैं कि कुछ प्रदर्शनियाँ की जाएँ, किताबों की, चित्रों की। हम यह भी चाहते हैं कि यहाँ हिन्दुस्तान शिल्पकला, इतिहास सभ्यता आदि जैसे विषयों पर भाषण हों। ताकि हंगेरियन लोगों को कुछ अधिक जानकारी मिल सके। इसके अलावा हम चाहेंगे कि हंगरी के सांस्कृतिक संस्थानों के साथ संयुक्त रूप से कार्यक्रम भी बनाएं। इससे यह होगा, कि दोनों देशों के लोग एक दूसरे से मिल-जुलकर कार्यक्रम बनाएंगे। जिससे आपस में उनकी समझ और ज़्यादा बढ़ेगी।
ओर्शोया सास:- महामहिम जी अगले साल विश्वप्रसिद्ध लेखक रवीन्द्रनाथ ठाकुर के जन्म की एक सौ पचासवीं वर्षगाँठ मनाई जानेवाली है। क्या इस अवसर पर कुछ विशेष कार्यक्रम भी होंगे, बुदापैश्त में और बालातोंफुरेद में?
महामहिम जी:- हम अभी एक बहुत बड़ी कॉन्रे रस और एक्सहिबिशन करने की योजना बना रहे हैं, मई २०११ में। इसमें हम योरोप के विभिन्न हिस्सों से भारतविद्याविदों को बुलाएंगे। ये लोग रवीन्द्रनाथ ठाकुर, उनकी रचनाओं और उनके दर्शन के बारे में अपने अनुभव लोगों को बताएंगे और चर्चा करेंगे। यह एक विश्व कॉन्रेहैस होगी। एक विश्व कोंफेरेंस पेरिस में भी भारतीय सरकार की तरफ से होगी। इसके अलावा रवीन्द्रनाथ ठाकुर से सम्बंधित जितनी भी पेंटिंग्स हैं और उनका संगीत है, उसकी प्रदर्शनी इस कॉन्रेबतस के दौरान यहाँ की जाएगी। बालातोंफुरेद में हम सांस्कृतिक प्रोग्राम करने की योजना बना रहे हैं। इसके साथ हम यह भी सोच रहे हैं, कि अमृता शेरगिल की पेंटिंगस का आयोजन भी बालातोंफुरेद में किया जाए। यह अभी पक्का नहीं है, लेकिन इसपर विचार चल रहा है।
ओर्शोया सास:- महामहिम जी आप राजदूत होने के साथ-साथ कवि व लेखक भी हैं। आपके हिंदी भाषा के बारे में विचार क्या हैं? भारतीय लोगों की अंग्रेज़ी बोलने की इच्छा के आगे हिंदी हार तो नहीं जाएगी?
महामहिम जी:- नहीं, हिंदी की हार कभी नहीं होगी, लेकिन यह एक सच्चाई है कि हिंदी जो है, उसकी शुद्धता थोड़ी कम होती चली जा रही है। भारतीय लोग, जिनमें मैं भी शामिल हूँ, कई बार शुद्ध हिंदी के कई शब्दों का प्रयोग नहीं कर पाते हैं। क्योंकि अंग्रेज़ी के शब्द हिंदी के साथ इतने मिल-जुल गए हैं कि जब आप बोलते हैं तो हिंदी के साथ-साथ कुछ अंग्रेज़ी के शब्दों का प्रयोग कर लेते हैं। मैं यह नहीं कहता कि नयी भाषा है, लेकिन यह एक नया विकास है, जो हिंदी भाषा में हो रहा है। कुछ लोग इसको हिंग्लिश बोलते हैं कि जिसमें हिंदी और इंग्लिश का एक समन्वय होकर एक नयी भाषा खुद सामने आ रही है। लेकिन मैं नहीं मानता कि यह नयी भाषा है, लेकिन सच्चाई यह है कि अंग्रेज़ी के शब्द हिंदी में मिल-जुल गए हैं, और जो लोग भारत में हिंदी बोलते हैं वे बिलकुल शुद्ध हिंदी नहीं बोल पाते हैं। वे अंग्रेज़ी के बहुत शब्द उसके साथ जोड़कर फिर बातचीत करते हैं।
ओर्शोया सास:- महामहिम जी विदेशों में कई विश्वविद्यालय में हिंदी भाषा सिखाई जाती है। हम भी भाग्यशाली हैं कि हमारे पास मारियाजी हैं जिनको कुछ साल पहले दिल्ली में ग्रियर्सन हिंदी सेवी पुरस्कार मिला है हिंदी भाषा का प्रचार करने के लिए। क्या विदेशों में हिंदी सीखने के इस जोश का भारत में भी कुछ प्रभाव पड़ सकता है हिंदी की भूमिका को आगे बढ़ाने में?
महामहिम जी:- नहीं, ऐसा है कि हिंदी की शुद्धता बहुत ज़रूरी है। मैं इस चीज़ में पूरा विशवास करता हूँ। और मैं यह भी चाहता हूँ कि हिंदी को और ज़्यादा प्रोत्साहन दिया जाए। लेकिन जबसे ग्लोबलाइज़ेशन विश्व में चालू हुआ है तब से अंग्रेज़ी का प्रभुत्व हिंदुस्तान में ही नहीं लेकिन संसार के और भी देशों में बढ़ता चला जा रहा है। मैं फ़्रांस में था। एक समय था जब फ़्रांस में अंग्रेज़ी बहुत कम बोली जाती थी बहुत कम समझी जाती थी। आज वहाँ का प्रत्येक नवयुवक फ्रेंच के साथ-साथ अंग्रेज़ी बोलता है। यह हंगरी में भी ऐसा ही होता चला जा रहा है। जितने भी नवयुवक हंगरी में हैं, हंगेरियन के साथ उनकी दूसरी भाषा अंग्रेज़ी है। इसी तरह से हिंदुस्तान में भी अंग्रेज़ी दूसरी भाषा है। हिंदी के साथ-साथ अंग्रेज़ी दूसरी भाषा है, लेकिन जो विकास हिंदी में अंग्रेज़ी के शब्दों के समन्वय का हो रहा है, वह और देशों में नहीं हो रहा है। ऐसा नहीं है कि अंग्रेज़ी और फ्रेंच मिक्स हो रही हैं, ऐसा नहीं होता। या हंगेरियन और अंग्रेज़ी मिश्रित हो रही हैं, ऐसा नहीं होता। लेकिन हिंदुस्तान में अंग्रेज़ी और हिंदी का मिश्रण होना चालू हो गया है। वह एक अच्छी चीज़ नहीं है। और हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम इससे दूर हटें, हिंदी की शुद्धता बरकरार रखें और साथ में अंग्रेज़ी की शुद्धता भी बरकरार रखें। लेकिन हिंदुस्तान में इतनी बड़ी जनसँख्या है कि इन सब लोगों को नियंत्रित करना और उनको ठीक ढंग से आगे पहुँचाना इतना आसन भी नहीं है। लेकिन मैं आशा करता हूँ कि हिंदी की शुद्धता बढ़कर ही रहेगी। पहले भी हिंदी में अगर आप देखें तो उर्दू का मिश्रण हुआ है, पर्शियन शब्दों का मिश्रण हुआ है, टर्किश शब्दों का मिश्रण भी हुआ है, अरेबिक शब्दों का मिश्रण भी हुआ है। तो हिंदी जो है वह सबको अपने अन्दर समाहित कर लेती है। तो मैं समझता हूँ कि कुछ अंग्रेज़ी के शब्दों को भी हिंदी अपने आप में समाहित कर लेगी।
ओर्शोया सास:- आपको क्या लगता है, आजकल जो बड़ा आर्थिक विकास दिखता है भारत में उसका भी प्रभाव हो सकता है हिंदी भाषा पर?
महामहिम जी:- बिलकुल होगा। जो हो रहा है सचमुच अभी। जब देश की आर्थिक व्यवस्था सुधरती चली जा रही है, तो विदेशी लोग बड़ी संख्या में हिंदुस्तान जा रहे हैं। वे अपने कारोवार के साथ जा रहे हैं, इंडस्ट्रीज लगा रहे हैं। और हर देश के लोग हिंदुस्तान में अपना ऑफिस खोलना चाहते हैं। तो उनके लिए ज़रूरी है कि वे भी थोड़ी हिंदी सीखें। और इसी की वजह से विदेशों में हिंदी का प्रचार और प्रसार हो रहा है, और होगा। अगले १० साल में हिंदी और ज़्यादा विकसित होगी विदेशों में।
ओर्शोया सास:- महामहिम जी प्रमोद जी द्वारा संपादित भित्ति-पत्रिका ‘प्रयास’ अब इन्टरनेट पर भी पढ़ी जा सकती है। ऐल्ते विश्वविद्यालय का हिंदी को आगे बढ़ाने का यह प्रयास आपको कैसा लग रहा है?
महामहिम जी:- यह पत्रिका बहुत अच्छा एक निर्देश है। एक अच्छा कदम है। इस कदम से हिंदी का हंगरी में और ज़्यादा विकास होगा। जो छात्र-छात्राएं हिंदी पढ़ रहे हैं, उनको हिंदी समझने और उनकी हिंदी को सुधारने का एक अच्छा अवसर मिलेगा। तो इसके लिए प्रमोदजी को धन्यवाद देता हूँ, उनको बधाई देता हूँ कि यह नया कदम उठा रहे हैं।
ओर्शोया सास:- महामहिम जी हमारा यह दूसरा प्रोग्राम भी चल रहा है काफी सालों से जो भारतीय दूतावास और ऐल्ते विश्वविद्यालय साथ-साथ चलाते हैं। क्या इसको आगे बढ़ाने या बदलने की कुछ योजनाएं हैं?
महामहिम जी:- बिलकुल, मैं यह चाहता हूँ कि एक तो हिंदी की जो छात्रवृत्ति मिलती है हिंदी आगे पढ़ने के लिए, वह अभी सिर्फ २ छात्रवृत्तियां दी जाती हैं कई वर्षों से। मैं अभी कोशिश कर रहा हूँ, कि अगले साल ४ छात्रवृत्ति दें और उसके अगले साल ६। तो छात्रवृत्तियों की जो संख्या है वह बढ़े। इससे यहाँ जो हिंदी सीखनेवाले छात्र-छात्राएं हैं वे हिंदुस्तान में जाकर और अच्छी हिंदी सीख सकें। दूसरा, मैं यह चाहता हूँ कि जो बहुत अच्छे विद्यार्थी हैं यहाँ पर उनको पुरस्कार दिया जाए। अच्छा पुरस्कार दिया जाए। जिससे कि उनको प्रोत्साहन मिले हिंदी आगे। हम पिछले साल के पुरस्कारों के बारे में निर्णय ले चुके हैं। पुरस्कृत होनेवाले छात्रों में ३ विश्वविद्यालय के छात्र और ३ दूसरी कक्षाओं के छात्र हैं। मैं चाहता हूँ कि सितम्बर-अक्तूबर में एक छोटी सा कार्यक्रम किया जाए, जिसमें हम इन सब लोगों को पुरस्कृत करें। हो सकता है कि यह सांस्कृतिक केंद्र के उद्घाटन के समय हो। और इस संबंध मैं और भी निर्णय धीरे-धीरे लूँगा इससे कि हिंदी का प्रचार और प्रसार बढ़े। भारत में हिंदी प्रचार का जो ऑफिस है, उससे मैं बात करूँगा, और चाहूँगा कि कुछ ऐसे कदम उठाए जाएँ कि विद्यार्थियों को प्रोत्साहन मिले।
ओर्शोया सास:- महामहिम जी हंगरी के इन्डॉलोजिस्टों लोगों को एक साथ इकठ्ठा करने की कोई योजना है?
महामहिम जी:- बिलकुल, मैंने मारियाजी कहा है कि मैं हंगरी के इन्डॉलोजिस्टों का एक छोटा सा सम्मेलन करना चाहता हूँ। उसमें हम आपस में सब चीज़ों को विस्तार से सोचें-समझेंगे, और यह कोशिश करेंगे कि इंडोलोजी को और ज़्यादा लोगों के नज़दीक कैसे ले जायें। यह तब संभव होगा जब हम आपस में बैठकर विचार करेंगे। एक दूसरे के विचारों को सुनेंगे, समझेंगे और उसके बाद आगे बढ़ने के लिए एक योजना ऐसी तैयार करेंगे जिससे कि इंडोलोजी हंगरी के लोगों में और ज़्यादा लोकप्रिय हो।
ओर्शोया सास:- अंत में आप भारत प्रेमी हंगरीवासियों को और यहाँ रहने वाले भारतीय लोगों को क्या सन्देश देना चाहेंगे?
महामहिम जी:- मेरा संदेश सबके लिए यही है कि हिंदुस्तान व हंगरी के लोग आपस में मिलजुलकर आगे बढ़ें, एक-दूसरे को अच्छी तरह से समझें, एक दूसरे से सीखें। इससे हंगरी की और हमारे देश की भी समृद्धि बढ़ेगी, दोनों देशों की सभ्यता और संस्कृति में और ज़्यादा मेलजोल होगा और हम लोगों के संबंध और ज़्यादा नज़दीकी बन जाएँगे। इससे दोनों देशों को और दोनों देशों की जनता बहुत फायदा होगा।
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