मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010

कैरैपैश


गाँव के क्षेत्र को बहुत अच्छे प्राकृतिक दहेज हैं। इस्लिए यह देहात पुराने काले से बसा हुआ था। गाँव का नाम पुराने हंगेरियन कैरैप जहाज़, नाव शब्द से संबंध रखता है। शायद छोटे जहाज़ बनाने वाले यहाँ रहते थे।

पहली बार कैरैपैश के नाम का चर्चा ११४८ में एक दस्तावेज में की। १५४४ में गाँव ओत्तोमान अधिकृत के नीचे गया था। १५९६ में ततार के समय में पूरा निवासी भाग गया या मर गया। देहात लम्बे अरसे तक न बसा हुआ था फिर १६९० के वर्ष में गर्मनी और हंगेरियन आधिवासियों से बसा हुआ था। १७०३ में राकोज़ि अनाधिनता के युद्ध के समय में निवासी फिर से भाग गया था। १७११ में पुराने गर्मनी और हंगेरियन परिवार के अलावा गाँव नये गर्मनी, हंगेरियन और स्लोवाकिअन परिवार से फिर से बसा हुआ था। १७५० में कैरैपैश देश के रक्त चक्कर में गया था क्योंकि किरायी की गाड़ी का रास्ते पर था जो गाड़ियों से भीड़-भाड़ था। रेलमार्ग की बनावट तक पैश्त और गोदोल्लो के बीच में कैरैपैष किरायी की गाड़ी का पहला अड्डा था। १९७८ में कैरैपैश और किश्तर्च कैरैपैश्तर्च के रूप में एक किया था। फिर सोलह साल के बाद उन्होंने अलग-अलग किया।

मलोम और सिलश नदी के पास पत्थर, तांबा, लौह के समय से और रौमन तथा कौम के प्रवासन के समय से खोज पाये थे। चोर्स खंदक रौमन समय से उत्पन्न है। संत इश्त्वान के समय से चर्च की वेदी के खड़ चर्च पर्वत पर पाये थे। काल्वारिअ पहाड़ पर भूतपूर्व चर्च हुसित लोग ने बनाया था और पहला समाधि क्षेत्र भी यहाँ था। १९११ में अलगाववादी शैली सा चर्च कैरैपैश वालों ने बनवाया था जिसे संत अन्न को अर्पण किया।

१९५० के वर्ष तक गाँव अपना स्लोवाकिअन स्वभाव धरता था। मगर आजकल स्लोवाकिअन परमपरा और तोथ भाषा का इस्तमाल भूल गये। परमपरा की रक्षा के लिए कलारिश परमपरा को रक्षा वाली सभा युद्ध करता है।

जैसे भूत में आजकल भी गाँव अपना शान्ति और पहाड़ी देहात से अधिक नये परिवार का आकर्षित करता है। 

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