मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

कहाँ हैं वेद की रात्री देवी?

वेरोनिका सूच--



वेद हिन्दू परम्परा का पवित्र स्रोत मने जाते हैं| वैदिक साहित्य में देवियों की संख्या कम है, जो वैज्ञानिक ऐसे समझाते हैं, की वेद के युग में धर्म ओर समाज में पुरुषों का अधिकार था| लोग हमेशा घूमते रहते थे, एक के बाद दूसरे ग्राम और देश से झगड़ा करते थे, वैदिक समाज के लिए औरतों, बच्छों और ग्रामीण जीवन की तुलना में सैन्य कार्य ज़्यादा महत्त्वपूर्ण था| इसलिए जो देवियाँ वेद में सामने आती हैं, उनकी भूमिका देखबाल करने वाले माता की नहीं है| वे सैनिकों और ब्राह्मणों को अधिक कामयाब और सुखद कार्य करती हैं| आर्य समाज का जीवनधारा बदल जाने के बाद, जब आर्य लोग स्थायी गाँव में रहने लगे, धर्म में भी देवियों, खासकर माता-देवियों की भूमिका ज़्यादा महत्त्व की होने लगी थी|
आम तौर पर कहा जा सकता है, कि देवियों की परम्परा बाद के ब्राह्मनिक और हिन्दू धर्म में बिना रुकावत चली जा रही थी, लेकिन उनमे से दो-एक हमेशा के लिए गायब हो गयी थी| ऐसी अदृश्य देवियाँ निरृति, पुरंधि, अरण्यानी और रात्री हैं| हम रात्री देवी से बाद के धार्मिक विकास में आसानी से नहीं मिल सकते हैं, लेकिन उनका व्यक्तित्व से मैकडोनेल का वैदिक रीडर पढकर अच्छी तरह परिचित हो सकते हैं| रात्री देवी ने मेरे ध्यान को इसलिए आकर्षित किया, क्योंकि वे अन्य बहुदैविक धर्मों में भी प्रस्तुत हैं, और उनका अभाव हिन्दू देवसमूह में वैक्यूम है| रात्री का स्तुति ऋग्वेद में पढ़ा जा सकता है| वे न सिर्फ रात की देवी, बल्कि खुद रात हैं, क्योंकि उनका वर्णन प्राकृतिक घटना और व्यक्ति के रूप में एक साथ किया गया है| वे सूर्य की बेटी और उशस (उषा देवी) की बहन हैं| यद्यपि रात्री आकर्षक,मनोहारी युवती हैं, उनिका व्यक्तित्व संदिग्द है| रात के सब से गहरे घंटों में आश्वासन मग्वाकर रात्री की आराधना किया जाता है| वे पूरी रत अपने सितारा-आँखों से विश्व को ध्यान से देखती रहती हैं, और आदमी को रात की खतराओं, जैसे वृकों और चोरों से सुरक्षित करती हैं| देवी रात में खुद प्रकाश का स्रोत हैं, प्राणियों को शांत स्वप्नों का देखबाल करती हैं, और सुबह होते ही नींद से भारी हुई दुनिया के लिए ताज़ा ओस देती हैं|
मगर रात, शान्ति ओर खतरा का भी समय है| इसलिए रात्री देवी रात के सब खत्राओं ओर दुष्ट प्राणियों का भी आलय हैं| वे एक बार थके लोगों की मदद करती हैं,दूसरी बार उनको नुक्सान पहुंचाती हैं| वे कभी-कभी रात जैसे बंजर और भयानक हैं|
रात्री देवी का महत्त्वपूर्ण कार्य है, कि वे अपने बहन, उशस के साथ समय का धागा बनाती हैं| रात और दिन का अनंत परिवर्तन विश्व की दृढ़ प्रणाली को प्रकट करता है| दोनों देवियों का कर्तव्य -प्रकाश और अंधकार, सक्रियता और निष्क्रियता का परिवर्तन- सृष्टि की नियमितता से भी सम्बंधित है| ऐसे रात्री और उषा की भूमिका और मिज़ाज पुरानी यूनानी देवताओं की से बराबर हैं| यूनानी मोइरै या रोमन पार्कै किस्मत की देवियाँ हैं| लेकिन जब तक वे समय का धागा बनाती एक-एक प्राणी के किस्मत पर प्रभाव डालते हैं, रात्री और उशस पूरे विश्व के समय का वस्त्र बुनती हैं| मतलब यह है, कि पुरानी यूनान और रोम में वक्त का प्रतीक देने के लिए धागा का इस्तेमाल किया जाता था, पुरानी भारत में समय के लिए वस्त्र प्रतीकात्मक था| पुरानी यूनानी धर्म में रात की देवी का नाम नूक्सथा(लैटिन: नोक्स) उषा की बराबर यूनानी देवी एओस (लैटिन में औरोरा) थी| यूनानी देवियाँ बहन के बजाय माँ और बेटी थी| मैंने उनका ज़िक्र इसलिए किया,क्योंकि उनकी प्रतिमाओं की विशेषताएं भारतीय मूर्तिकला का विश्लेषण करके बड़े महत्त्व की हो सकते हैं|
वेद के समय समाप्त होने के बाद रात्री देवी भी गायब हुई, इसलिए हम उनकी कोई मूत्रियाँ भी नहीं जानते हैं| नूक्स देवी की यूनानी या रोमन आकार ढीले कपड़े में पहनी युवा औरत है, जिन का दुपट्टा सर से ऊपर हवा द्वारा लहराया जाता है| यह सर के ऊपर फैलायी शाल यूनानी और रोमन देवालय के अलग-अलग सदस्यों की मूर्तियों पर भी दिखाई देती है| रात और चन्द्रमा देवियों के अलावा वायु देवता भी ऐसी शाल पहने हैं| ऐसे वायु देव का सुन्दर नमूना अफ़गानिस्तान में हड्डानामक एक जगह पर दिखाई देता है| रात वाले आकाश के देवताओं की लहराती हुई शाल, रेशम मार्ग से होकर प्राचीन रोम से चीन तक गयी| चीन की किज़िलगुफाओं में भित्तिचित्रोन पर इसके भी अच्छे प्रमाण हैं| किज़िल की हवा देवी उन वायु देवियों के सामान है, जो अफ़गानिस्तान के बामियान शहर में स्थापित बुद्ध की अतिविशाल मूर्ति के दीवारों पर चित्रित हैं| बामियान की हवा देवियाँ सूर्य देव के दोनों और उड़ते हुए, दुपट्टे लहराकर चित्रित हैं| चीन के दुन्हुअंग नगर की गुफाओं में शाल लहराते हुए सूर्य और चंद्रमा देव आपस में लड़ते चित्रित हैं|
वायु देवता की बाद की प्रतिमाओं पर यह उड़ती हुई शाल बहुत बार दिखाई देती हैं| लेकिन हम नहीं जानती, कि यह भारतीय कला का सृजन या मध्य-एशिया के कला का असर है, जैसे सूर्य देव का अश्वारोही जूते, और उनके रथ में जुड़े हुए सात घोड़े. सात अश्व यूनानी हेलिओस (लैटिन: सोल) देव के रथ के समान हैं| भारत में सूर्य आम तौर से दायीं और बायीं ओर उषा तथा प्रत्युषा देवियों द्वारा नियुक्त हैं| ये देवियाँ बाण मारने वाली हैं, उनके तीर सूरज की किरणों का प्रतीक हैं| सूर्य देव के आगे स्थित छोटा आदमी अरुण है, जो रथ का चालक है| अरुण सुबह सवेरे का देव है, उस समय का, जब आकाश की लाली सब से सुन्दर है| सूर्य की दोनों पत्नियां हैं, जिन के नाम महाश्वेता और राज्ञी हैं| उत्तर भारत और बंगलादेश की मूर्तियों पर बहुत बार पांचवी छोटी देवी, सूर्य देव के जूते के बीच में खाड़ी होती है|वह निष्प्रभा बुलाई जाती है, जिसका मतलब अंधकार है| यद्यपि निष्प्रभा देवी की ऐसी विशेष गुण नहीं हैं, जो यूनानी नूक्स और सैलैने (लैटिन: लुना, चन्द्रमा)देवियों से समान हैं, मेरे ख़याल से हो सकता है, कि वह शायद सूर्य देव की बेटी, रात्री देवी हैं|
यूनानी या रोमन और भारतीय सौर परम्पराओं का एक ही मूल है| बाद में गंधार देश से होकर रोमन प्रतिमा‍ विज्ञान की विशेषताओं ने और ज़ोरोअस्त्रियन सौर परम्परा ने भारतीय मूर्तिकला पर असर डाला| यूनानी हेलिओस का सूर्य देव का मुकाबला किया जा सकता है, जब तक यूनानी नूक्स और सैलैने एशिआई चन्द्र और वायु देवताओं से सम्बंधित हैं| रात्री देवी वेद का अतिमहत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व नहीं थीं, इसलिए हम सोच सकती हैं, कि वे औरों के साथ ब्राह्मणों के धर्म बदल जाने के बाद हमेशा के लिए गायब हो गयी| हिन्दू पुराण और विभिन्न समकालीन परम्पराओं की तुलना करके हम आश्चर्य से देखेंगे, कि जब तक लगभग हर एक बहुदैविक धर्म में रात या चन्द्र की देवताओं की अहम् भूमिका है, बाद की हिन्दू धर्म में पूरी रात के लिए कोई उत्तरदायी देवता नहीं मिलता| मेरी राय में यह शायद ऐसे है, लेकिन वास्तव में रात्री देवी हमेशा के लिए गायब नहीं हुई थी| वे अभी तक अपने बाप, सूर्य देव शक शैली के जूते के बीच, निष्प्रभा देवी के रूप में परिरक्षित हैं|


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