मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

वृन्दावनलाल वर्मा का जीवन

अत्तिला सबो--
वृन्दावनलाल वर्मा जी हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ ऐतिहासिक उपन्यासकार हैं। वे झाँसी ज़िला के मऊद्रानी ग्राम में नौ जनवरी १८८८ (अठारह सौ अठासी) को पैद हुए थे तथा १९६९ (उन्नीस सौ उन्हत्तर) में मर गये थे। वर्मा जी में ऐतिहासिक उपन्यास लिखने की कुछ जन्मजात प्रतिभा थी। उनके दादा झाँसी की महारानी लक्ष्मीभाई के दीवान थे जो एक राष्ट्रीय विद्रोह में मारे गये थे। बी० ए० करने के बाद वर्मा जी झाँसी में ही वकालत करने लगे थे। बचपन से ही उन्हें लिखने की बड़ी उत्कट इच्छा थी। सोलह-सत्रह वर्ष की अवस्था में ही न्होंने कई नाटक लिखे। १९१० (उन्नीस सौ दस) से उनकी कहानियाँ सरस्वती में छपने लगीं। वे अध्ययन-शील, संगीत-प्रेमी, शिकार और यात्रा-प्रेमी के शौक़ीन थे। वर्मा जी ने वास्तविक घटनास्थलों पर जाकर वृत्त-संग्रह करके तैयार किया था। उन्होंने कहानियाँ, नाटक और उपन्यास भी लिखे लेकिन सबसे अधिक उन्होंने उपन्यास के क्षेत्र में काम किया था। वर्मा जी ने दो दर्जन उपन्यास लिखे हैं जैसे – संगम, कभी न कभी, झाँसी की रानी लक्ष्मीभाबाई, सत्रह सौ उन्तीस’ (1729), सोना, अमर बेल, प्रेम की भेंट। उन्होंने अपने जीवन-काल में हिन्दी को अनेक ग्रंथ दिये – ऐतिहासिक उपन्यास, सामाजिक उपन्यास, कहानी-संग्रह, ऐतिहासिक और सामाजिक नाटक आदि।

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