मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

मई

शागी पेतैर--


मई का महीना है। यह माह, जिसमें मेरी पैदाइश हुई, और जिससे इसी तरह मेरा दिल का रिश्ता बना रहता है, हंगरी में हवाऔं का मौसम है। भारत में यह तो पहले से हो चुका है, मई बिना हद की गरमी का समय होता है, है ही। आने से पहले मेरे एक दोस्त ने शांदोर मारई की एक रचना: बारामासा दी थी। हर महीने में एक-एक छेद पढ़कर मैं इसमें प्रकट की गई भावनाओं से सहमत होता जा रहा था, यूरोप का वातावरण के प्रसंग सर्वोच्‍च गद्य के रूप में मारइ बदलते मौसम के प्रति अपने - सब के ऐहसासों को सहज ढंग से सामने ले आते हैं।
फिर मई तक पहुँचकर ऐसा लगा, कि इस जीवन्त माह को, जाने कैसे, गलत नज़रिए से देखते हैं। उनके कहने का तातपर्य है, कि मई द्विमुखी है, जिसकी खुशी और ताज़गी के पीछे कुछ उलटा, बेठीक, धमकी लगानेवाला छिपा है। चूँकि पिछले दो हफ़्तों में गैरसाफ़ उस्तारा इस्तेमाल करके चेहरा चोट ही चोट बनने का दर्द भुगतना था, आखिर में फिर भी काबुल करता हूँ, कि हाँ, मई में कुछ कठिनाइयाँ भी सामने आ सकती हैं।
इस के कारण मन करता है, कि उपरोक्त निबंधमाला का आयुक्त भाग हिंदी में प्रस्तुत करूँ।
       
मई का एक राग है, जिसे अक्षरों में लेना गीतों के अंतर्राष्ट्रीय रचइता असफल कोशिश करते जा रहे हैं। उन्होंने इस वजह से जाने क्या प्रयास नहीं किया है, किंतु अभी तक महज ताल-राग से भरा अंगीत-संगीत हुआ नरगिस और कम परस्पर प्यार की लक्षणा सहित। मई का असली राग इससे गहरा है, द्रवित कहीं से नहीं होती। भूकंप का कुछ साथ लिए जाती है। व मृत्यु की सरसराहट का कुछ भी।भीषण महीमा है। चतुर वृद्ध पसंद नहीं करते, स्वाद, प्रकाश और गंध इसका सावधानी से लेते हैं, हो सके, तो इसके आगे से छिप जाते हैं, या कहीं यात्रा करते भाग जाते हैं।
मेज़ आश्चर्यजनक कैसे भरपूर हो जाती है: साग व मुर्गे-मुर्गी से। पर लोगों का दिल सख्त और हैरान है। मई के त्यौहार काफ़िर और तेज़ हैं। सब कुछ शोर मचाता है, कुछ कहना चाहता है। हवा जल्द कुलबुलाते, कसैले गंधों से पूरी हो जाती है, अमानव रोशनी से, किसी प्राचीनकाल के त्यौहार की निर्मम, जगमग चमक से। मई का आत्मघातक होता है, जैसे कि मई की नरगिस, मई की तली मुर्गी। इस आक्रमण से इंसान सभ्यता की दीवारों का शरण जाता है। मई में किताब लिखते नहीं बनती। पढ़ना भी मुश्किल है। हर जो जीतता है, इन किरणों और गंधों को व्यक्तिगत, चेतन के प्रति अत्याचार समझता है। मई की धुप निर्मम है, तथा अगस्त की रोषित धूप की अपेक्षा अधिक भयानक, जो तलवार हिलाती नोचती-काटती है चारों तगफ, उन्मत्त, मानो कोई लाल आँखों वाला पूर्वी योधा हो। मई ज़हर और सुनहले टीके लेकर नष्ट करती है, जैसे एक हससिन, रोका नहीं जा सकता। मई का लक़वा भी है। प्रकृति भावुक नहीं होती।
इस माह का आम बात प्रेम है: ठीक-ठीक, जैसे बिलकुल बेकार और बिलकुल उच्‍च उपन्यासों में, प्रेम एवं निधन। प्राकृतिक घटनाएँ में भद्दापन और उत्कृष्टता एकसाथ देखे जा सकते हैं। यह महीना है, जिसमें अधिकांश लोग हैरान, मानो दायित्व से प्यार के पीछे पड़ जाते हैं, जैसे सर्दियों के दौरान बूट, गर्मियों में स्विमिंग पूल का पास खरीदते हैं। मई के प्यार का कोई भरोसा नहीं। अधिकतर वह व्यक्ति के लिए नहीं होता, बल्कि प्रधान लोकमत की तानाशाही के सामने घुटने टेकता है, मई के सामने। मई के प्यार की भेंट सितम्बर में सप्रणाम, साथ-साथ चौंककर करते हैं। यह कैसे…?’ ’ध्यान नहीं रखा था…?’ मई में हर महिला थोड़ी मात्रा में टिटानिया है। किसी दिन जादू खत्म, जागती हुई तिथि-पत्र देख लेती है, आराध्य गधा-खोपड़ा ताकती रहती, अचंभा में आती है।
एक निश्चित मई याद आती है, सागर के बीच, बिना फलों और हरियाली के, अफ्रिका और यूरोप के अंतर, जब जो भी इस वहमी और काफ़िर महीने का जमीम पर जन को चिंतित कर देता है, समुद्र की ओर से मेरे तरफ आ रहा था, किरणों की प्रतिबिंबा से, गरम हवा से। मई बिना फूलों के भी निर्मम है। मेरे बचपन के मई के सवेरे याद आते हैं, घर के गिरजे में पूजा करते हुए मरयम की वेदी के आगे, कमलों और गुलाबों से घिरे। कभी-कभर इन सवेरों की लय सुनाई देती है। किसी मई की शाम याद है, जब करीब मर गया एक औरत के लिए। ऐसा आजकल मुझसे नहीं घट सकता। चुस्त हूँ, सावधान। चेहरा मई की रूढ़, किंवित धूप को दिखाता हूँ, और आँखें मूँदे सोचता हूँ: ’अफ़सोस…’

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