रीता ज्वारा
बहुत समय पहले ब्राह्मण की पत्नी ने रकाबी, परात और दूध वाला बर्तन टोकरी में रखा था। उसने उन्हें नहर में धोने के लिए नौकरानी को भेजा। नौकरानी ने धोते समय देखा कि तभी एक केकड़ा पानी से बाहर आ रहा है। उसने तब तक कभी भी केकड़ा नहीं देखा था, इसलिए वह उसको लगातार ताक रही थी, उससे थोड़ा सा भी डरती है। लेकिन वहाँ घुड़सवार सैनिक घोड़े पर जाता है।
- नौकरानी उससे पूछता है :
- अरे, सैनिक जी, वह वहाँ क्या है ?
- मेरी छोटी बहन यह एक केकड़ा है – सैनिक ने उत्तर दिया।
इस के कारण सेविका साहसी हो गयी, वह केकड़ा के पास गयी, देखने लगी और बोली :
- वह चढ़ाई है।
- वह केकड़ा है। - सैनिक ने फिर से बताया है।
- वह चढ़ाई है। - सेविका का उत्साह बढ़ गया।
- वह केकड़ा है। - सैनिक तीसरी बार कहता है।
- अरे सैनिक जी, क्यों बता रहे हैं जब मैं ठीक से देख सकती हूँ कि यह एक चढ़ाई है। - सेविका कहती है।
- लेकिन आप क्यों बता रही हैं, जब मैं ठीक से देख रहा हूँ कि यह एक केकड़ा है। - सेविका पूछता है।
- अरे, मैं अंधी और पागल नहीं हूँ, मैं ठीक से देख रही हूँ कि यह चढ़ाई है।
- अरे, मैं अंधा और पागल नहीं हूँ, मैं ठीक से देख रही हूँ कि यह केकड़ा है।
नौकरानी को गुस्सा आ जाता है और अपने सारे बर्तन ज़मीन में ऐसे मारती है कि उनके दुकड़े दुकड़े हो गये। वह गुस्से में भरकर कहती है :
- ईश्वर, मैं मर जाऊँ अगर यह चढ़ाई नहीं है।
सैनिक अपने घोड़ से नीचे कूदता है, अपनी तलवार निकालता है। घोड़े की गरदन काटकर कहता है :
- ईश्वर, मुझको अनुमति देना कि घातक मेरी गर्दन को काट देना है अगर यह केकड़ा नहीं है।
सैनिक पैदल चला गया और सेविका भी बर्तनों के बिना घर चली गयी। ब्राह्मण की पत्नी ने उससे पूछा :
- बर्तन कहाँ हैं ?
सेविका सुनाती है उसके और सौनीक के बीच में क्या हुआ था।
- क्या तुमने इसी कारण मेरी हानी की ?
- मैंने उसे अच्छी तरह से देखा था कि वह एक चड़ाई है। इसलिए इस बात को छोड़ नहीं पायी। फिर भी वह बुरे सैनिक हमेशा उसे केकड़ा बता रहा था।
ब्राह्मण की पत्नी चूल्हा को गरम कर रही थी पर उसने वैसे गुस्सा किया कि अपना नया कोट चूल्हा में डाला। उसने कहा :
- आग मुझे ऐसे जलाना अगर तुम दोनों पागल नहीं थे !
- यहाँ क्या जल रहा है ? – बाहर आकर ब्राह्मण ने पूछ रहा है। जब उसने मालूम कर लिया कि केकड़े और चड़ाई के बीच में क्या हुआ तो उसने अपने चोगे क्रोधी से काट दिया। उस समय में उसने कहा :
- घातक मुझको ऐसे काट देना है अगर तुम तीनों पागल नहीं थे !
गड़रिया अपने भेड़े के साथ वहाँ चल रहा था। जब उसने भी मालूम कर लिया कि क्या हुआ, दंड से भेड़े को मार डाला। उसने कहा :
- ईश्वर मुझको मार डालना अगर तुम चारों पागल नहीं थे !
गाँव का मुखिया एक सन्दूक लेकर आ रहा था। उसने भी गुस्सा किया और सन्दूक को फेंक दिया। हर महँगा चादर ज़मीन पर फैले।
- ईश्वर मुझको अभी मार डालना अगर तुम पागल नहीं थे !
ब्राह्मण का सेवक भी आ गया। चादर ज़मीन पर देखकर हाथ पर हाथ मारने के बाद पूछता है : क्या हुआ ? जान लेकर उसने चादर लिया और उनको काट दिया।
- शैतान मुझको काट ऐसा देना अगर तुम पागल नहीं थे !
इसके बाद सारे गाँव ने मालूम कर लिया। लोग ब्राह्मण का घर जलाकर कहते है :
- - आग हम सब को जलाना अगर तुम पागल नहीं थे !
sundar prayaas . natak mey aapki ruchi dekh kar achchha lagaa.
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