शनिवार, 1 मई 2010

जैनेन्द्र की कहानी में आदर्श पत्नी

लोकताश बोरी

जैनेन्द्र की कहानियाँ बीसवीं शताब्दी के शुरू की, भारत की स्वतंत्रता से पहले का विवरण देती हैं। इस समय भारत मुक्त होने के लिए दो मुख्य रास्ते थे। एक समाधान गाँधी जी का शांतिमय अहिंसात्मक प्रतिरोध था, इस आदोलन के द्वारा लंबे समय के बाद सफलता प्राप्त की जाती है। दूसरा हल सशस्त्र क्रांति था, यह उपाय अतिवादी लोगों के लिए था, जो भारत की स्वतंत्रता जल्दी से चाहते थे। भारतीय समाज की स्थिति भी अलग थी, धार्मिक और सामाजिक नियम अधिक कठोर थे। स्त्रियों की हालत परिवार तथा समाज में ही बहुत खराब थी। इसलिए स्त्रियों को शिक्षा में भाग लेना मुश्किल था और परिवार में पति का आज्ञापालन आवश्यक था। जैनेन्द्र की यह कहानी ऐसे ही वातावरण का वाकया है।

कहानी की मुख्य पात्र सुनन्दा, एक पत्नी है। हम सुनन्दा के एक सामान्य दिन पर नज़र डाल सकते हैं:-दिन के बड़े भाग में वह अकेली एक छोटे मकान में अपने पति का इंतज़ार करती रहती है। इसलिए वह बहुत कम चलती है, लेकिन ज़्यादा सोच रही है। लेखक इन चिंताओं की सहायता से पत्नी के अनुभव और पत्नी की स्थिति का चित्रण करते हैं। पत्नी के विचारों के केन्द्रीय स्थान में उसका अपना पति कालिन्दीचरण है- कालिन्दीचरण की तंदुरुस्ती, कालिन्दीचरण का राजनैतिक लक्ष्य, कालिन्दीचरण का कठिन भाग्य, आदि। बल्कि पति की चिंताओं में उसकी अपनी पत्नी नहीं, सिर्फ़ भारत की स्वतंत्रता से संबंधित बातें निकलती हैं। सुनन्दा के विचार पति के अलावा उसके अजन्मे बच्चे के आस-पास चक्कर खाते हैं। उसके जीवन में यह बच्चा आमूल परिवर्तन कर सका होता, क्योंकि ऐसे बच्चे के पालने में उसने जीवन का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य पाया होता। पति और पत्नी के बीच सच्चा संपर्क नहीं है। पत्नी कहानी के बड़े हिस्से में चुपचाप रहती है, लेकिन वह चाहती है, कि पति उसे अपने विचारों में भाग लेने दे। पति सिर्फ़ अपने मित्रों से बातचीत करते हैं, पत्नी को सिर्फ़ खाने के बारे में बताते हैं।

जैनेन्द्र इस कहानी में एक पारंपरिक पत्नी का चित्रण करते हैं। पत्नी के मन में अपने पति का प्राथमिक स्थान है। सुनन्दा सिर्फ़ विचारों में और छोटी-मोटी करतूत से शोर करती है, लेकिन ये विद्रोह गंभीर नहीं हैं। लेखक पत्नी पर विचार नहीं करते हैं, वे उसकी स्थिति का प्रदर्शन करते हैं। इस कहानी की पढ़नेवाले लोग बेहतर पत्नी से सहानुभूति प्रकट करते हैं। जैनेन्द्र अपने पात्रों की चिंताओं से चरित्र-चित्रण करते हैं। आम तौर पर लेखक अपने पात्रों का चरित्र-चित्रण प्रश्नोत्तर और उनके कार्यों से करते हैं।

मेरे खयाल से यह कहानी दूसरी कहानियों से अलग और विशेष है क्योंकि इस कृति में मन के विचार तथा मानसिक गुण-वर्णन सबसे महत्त्वपूर्ण है। इस तरह की कहानियाँ साहित्य की एक नयी शैली में शामिल होती हैं।

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