शनिवार, 1 मई 2010

सूर्य की अर्चना

हेगेदुश मिकलोश--

हिंदु भक्तजनों के जीवन में सूर्य देव (सूरज देवता) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मुख्य रूप से वे जीवन में आते हुए परम प्रकाश हैं। इनके तरह–तरह के रूप वैदिक काल में भी दिखाई देते हैं। ऋग्वेद में सूर्य से संबंधित देवताओं के भिन्न-भिन्न स्तुति –भजन लिखे गए हैं। इनमें से सबसे मशहूर आदित्य वाले हैं। आदित्य, अदिति देवी से उत्पन्न हुए देवता हैं। इनकी संख्या संहिता और ब्राह्मण वाले पाठों के अनुसार आठ या बारह है। इनमें से हम बहुत प्रसिद्ध वैदिक देवताओं- जैसे मित्र और वरुण आदि को देख सकते हैं। सूर्य भी अदिति का बेटा है, जो ऋग्वेद में नाम से सवितृ (सविता) के रूप में निकलते हैं। ऋगवेद के (10,17) सूर्य देवता के परिवार के बारे में कुछ जानकारियाँ दिखाता है- सूरज का यम वैवस्वत के पिता के रूप में वर्णन किया गया है, जिसे सातवाँ मनु कहा जाता है। हम लोग उनके बेटों में से दो अश्विन (सारथी) को देखते हैं, और मृत्यु के देवता यम और उनकी बहन, यमी की भी सूर्य से उत्पत्ति की जाती है।

वैदिक परंपरागत देवता त्रय के अनुसार सूर्य आकाश में रहते हैं, अग्नि पृथ्वी में तथा इंद्र अंतरिक्ष में वसन करते हैं। सूर्य के लक्षण के बारे में ऋगवेद (1,35) का एक बहुत उल्लेखनीय पद यह है-हिरण्येन सविता रथना देवो याति भुवनानि पश्यनइसका मतलब यह है कि सूरज का देवता सोने वाले रथ पर पहुँचाया जाता है, जो लौकिक जीवन को देखते हैं और उनकी देखभाल करते हैं। सूर्य मंदिरों में देवता का वर्णन प्रायः ऐसा ही है कि वे एक सात घोड़ों वाले (या सात सिर वाले घोड़े वाले) रथ पर चलते हैं, जो अरुण (उदय) द्वारा चलाया जाता है। अरुण सूर्य का मुख्य सारथी है, इसलिए इनको रविसारथी भी कहते हैं। मूर्तियों में सामान्य रूप से पैर के बिना है। सूर्य का वर्णन मंदिरों के गर्भगृहों में दो या चार हाथवाली मूर्तियों के रूप में किया जाता है। एक ओर उनके हाथों में एक-एक कमल दिखाई देता है, दूसरी ओर उनके चार हाथों में एक कमल, एक चक्र, एक शंख और एक हाथ अभय मुद्रा में है।

सूर्य नव ग्रहों में से सबसे महत्वपूर्ण व ग्रहों का नेता है। इस दर्शन के अनुसार ज्योतिशास्त्र की तरह-तरह की कृतियों में सूर्य का माहात्म्य विस्तार से लिखा गया है। आम तौर से रविवार को सूर्य की पूजा की जाती है, क्योंकि यह दिन देवता का निजी दिन है। इसलिए रविवार या भानुवार भी कहलाता है। सूरज की अर्चना महाकाव्यों और पुराणों में भी देख सकते हैं। रामायण में सूर्य किष्किंधा कांड के वानर राज, सुग्रीव का पिता है, जिन्होंने रावण को पराजित करने के लिए राम और लक्ष्मण की मदद की। राम सूर्यवंश के राजाओं में सबसे प्रसिद्ध वीर हैं। महाभारत में सूर्य कर्ण का पिता है, जो उनकी माता कुंति से दैवी उद्गम से कारण दूर हो जाता है, लेकिन कहानी के क्रम में कर्ण को लड़ाई करने में सूर्य से पैतृक सहायता मिलती है।

भारतीय वंशों में सबसे प्रसिद्ध सूर्य और चंद्रवंश हैं, सूर्यवंश के राजाओं का सिलसिला कालिदास के रघुवंश में भी दिखाई देता है। सूर्यवंश मगध का विकास होने से पहले सबसे बड़ा और मंगल कुटुंब था, जिसकी राजधानी अयोध्या, वैवस्वत मनु (अर्थात् सूर्य के बेटे) द्वारा संस्थापित की गई है।

सूर्य की उपासना हिंदु भक्तजनों के जीवन-भर का सजीव, महत्वपूर्ण धार्मिक उपचार है। इस देवता की ध्यान और पूजा करने की भिन्न-भिन्न धार्मिक और सामाजिक विधियों की चर्चा की गई है। सबसे मशहूर गायत्री या सावित्री मंत्र के रूप में है, जो ऋगवेद (3,62) में सूर्य की स्तुति के रूप में दिखाई देता है। यह मंत्र सब दिन सूर्योदय और सूर्यास्त में गाया जाता है।

हिंदु समाज ने सूर्य की अर्चना संस्कारों के सिलसिले में बनाई थी, सबसे पहले सूर्यदर्शन के अनुसार चार महीनेवाले बच्चे को घर से बाहर पहली बार सूर्य के दर्शन करने के लिए ले जाया जाता है। इस विधि का दूसरा नाम आदित्यदर्शन भी है। गायत्री मंत्र का बड़ा महत्व उपनयन संस्कार में भी है। सूर्य की अर्चना करने के बाद, गायत्री मंत्र का उच्चारण करके और अंत में यज्ञोपवीत पाने के बाद हिंदु लोग अपनी दूसरी उत्पत्ति और वेद पढ़ने के लिए उपनयन प्राप्त करते हैं।

भारत की सब दिशाओं में तरह-तरह के सुंदर मंदिर बने हुए हैं। इनमें से स्थापत्य कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण मंदिर कोणार्क (उड़ीसा), मोधेर (गुजरात) में हैं। कोणार्क में मंदिर की इमारत सूर्य का सज्जित रथ है, जो बारह खूबसूरत पहियों पर गुजरता है। नवग्रहों की अर्चना के लिए असम वाले गुवाहाटी में, दक्षिण में कुंभकोणम के आसपास भिन्न मंदिर बनाए गए हैं।

हम लोग देखते हैं कि सूर्य की अर्चना ऋगवेद के काल से आज तक भी हिंदु समाज में एक अटूट सजीव परंपरा है।

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