शनिवार, 1 मई 2010

करवा चौथ

लोकताश बोरि--

करवा चौथ एक विशेष व्रत है इस विधान में सिर्फ महिलाएँ ही भाग लेती हैँ। व्रत हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है, भक्त लोगों को कामना को जीतने में, मन की शक्ति बढ़ाने में और आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद करता है। फिर भी व्रत स्वास्थ्य के लिए अधिक लाभदायक है। आमतौर पर सभी दिन व्रत के दिन हैं, सब देवताओं के लिए एक दिन है जैसे सोमवार शिव और पार्वती का दिन है, मंगल वार हनुमान का दिन है तथा रविवार सूर्य का दिन है। भक्त जन सब मास में एकादशी और पूर्णिमा का व्रत रखते हैं।

व्रत के दिन वे भगवान के भिन्न रूपों की पूजा करते हैं। सामान्यतः प्रत्येक व्रत के साथ एक कथा जुड़ी होती है जिसमें व्रत की विधि व्रत का फल और व्रत का इतिहास होता है।

करवा चौथ के साथ एक कथा जुड़ी है इस कथा में एक कुशल मंगल महाराज और महारानी हैं। एक दिन महाराज की खाल में अनगिनत सूइयाँ निकल आईँ। महारानी ने दो सूइयों के अतिरिक्त सारी सूइयाँ निकालीं। सूइयों को निकालते समय एक साधू आ गया। इसलिए रानी ने दासी को बताया कि ये दो सूइयाँ निकालो। जब महाराज स्वस्थ हो गए तो उन्होंने सोचा कि उनका इलाज दासी का कार्य था। दासी महारानी हो गयी और महारानी दासी। साधू ने महारानी को सुझाव दिया, यदि महारानी दिनभर खाना न खाए और पानी न पिए तो वह एक बार फिर महारानी हो पाएगी।

करवा चौथ की विधि बहुत लंबी और मुश्किल है। महिलाएँ सूर्य निकलने से पहले कुछ फल और मिठाई खाती (उत्तर प्रदेश आदि में नहीं) हैं। इसके बाद वे शाम को पूजा करती हैं और परिवार की बड़ी महिला को उपहार देती हैं। वे चाँद को देखने के बाद व्रत खोलती हैं।

इस दिन वे नयी साड़ी और बहुत आभूषण पहनती हैं। इस व्रत को वे पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं।

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