शनिवार, 1 मई 2010

तीन भिक्षुक और शैतान

वासिल मिंतशेव--

एक शहर में तीन भिक्षुक रहते थे।

वे सब दिन मंदिर के सामने जाते थे और लोगों से दयादान चाहते थे।

सब शाम के अंत में वे थक जाते थे और दयादान तीनों के बीच में बाँट लेते थे।

एक दिन वे फिर मंदिर के तरफ जा रहे थे, ब एक आदमी उनसे मिला।

उसने देखा वे कंगाल थे। उसने प्रश्न किया: क्या आप लोग को पैसा नहीं चाहिए?

तीसरे भिक्षुक ने यह जवाब दिया : आप कौन हैं, गुरु जी ?

आदमी ने तो जवाब दिया : मैं शैतान हूँ।

तब पहले भिक्षुक ने यह कहा : हम लोग आपका पैसा नहीं चाहते।

दूसर भिक्षुक ने कहा : आपका पैसा हमें मार डालेगा, जीत लेगा।

अच्छा है - शैतान ने कहा - तो मैं आपको पैसा न दूँगा ।

पर कहीं, आप लोग ऐसा कुछ चाहते हैं जिस पर आप लोग काम कर सकते हैं ?

पहले भिक्षुक ने जवाब दिया : मैं एक मैदान चाहता हूँ । और कोई बात नहीं है,

अगर यह ऊबड़-खाबड़ है। मैं तो अच्छा काम करूँगा, मैदान भी अच्छा हो जाएगा।

अच्छा, ऐसा ही होगा । उसने पहले भिक्षुक को जमीन दी । वह बहुत परिश्रमी था, उसने तुरन्त अच्छा पैसा कमाया और दूसरे लोगों की जमीन खरीदने लगा एक आदमी अपनी जमीन बेचना नहीं चाहता था, इसलिए एक रात पहले भिक्षुक ने उसको मार डाला । बाद में इसके लिए उसे मृत्युदण्ड मिला।

दूसरे भिक्षुक ने कहा : मैं चाहता हूँ कि मेरी एक दस्तकारी की दुकान हो। मैं दरजी हो जाना चाहता हूँ। अच्छा है, कहा शैतान ने दूसरा भिक्षुक बहुत अच्छा दरजी हो गया। परन्तु राजा ने देखा कि वह इतना अच्छा दरजी है और डर गया कि कहीं वह उसका स्थान न ले ले। इसलिए उसने निर्णय किया और दूसरे भिक्षुक को मरवा दिया।

शैतान ने तीसरे भिक्षुक से पूछा: आप क्यों कुछ नहीं चाहते?

तब तीसरे भिक्षुक ने यह प्रश्न किया : मुझे बताइए, आप कब शैतान हो गये?

- जब मेरे लिए उपयुक्त नहीं था देवदूत होना।

I KNOW NOT WHAT THE FUTURE HOLDS BUT I KNOW WHO HOLDS THE FUTURE

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