इस्तवान ओर्लेन्य-- (अनुवाद विराग काटालीन)--
चौदह साल वह फाटक के पास वाले दफ्तर में एक छोटी सी खिड़की की दूसरी ओर बैठता है। उससे केवल दो प्रश्न किए जाते हैः-
मॉन्टेक्स का दफ्तर कहाँ है?
वह जबाव देता हैः-
पहली मंजिल, बाईँ ओर।
रुग्यंता नामक कूड़ा –करकट रिसायक्लिंग कंपनी कहाँ है?
जिसका जबाव वह देता हैः-
दूसरी मंजिल दाईँ ओर, दूसरा दरवाजा।
चौदह साल के दौरान वह कभी नहीं भूला है, सब लोगों को जरूरी सूचना मिली है। सिर्फ एक बार ऐसा हुआ कि उसकी खिड़की पर एक महिला ने खड़ी होकर आम प्रश्नों में से एक कियाः-
कृपया बताइए, मॉन्टेक्स कहाँ है?
पर इस बार उसने दूर से देखकर कहाः विषैले।
हम सब शून्य से आए हैं और उसी सड़ेले शून्य में वापस चले जाएँगे।
महिला ने शिकायत की। शिकायत की जाँच हुई। चर्चा-परिचर्चा हुई। इसके बाद जाँच खत्म हुई।
हाँ, निस्संदेह रूप से कोई बड़ी बात बिल्कुल नहीं है।
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