(अनुवाद-रॉबर्ट वालोत्सी व विराग कातालिन)
मई के एक सुनहरे दिन, दोपहर के बाद राजा मात्याश अपनी सुन्दर रानी बैआत्रिक्स और कुछ मित्रों के साथ टहलने के लिए महल से निकले। वे लोग चमकीली सीढ़ियों से बुदा की घाटी की ओर धीरे-धीरे नीचे उतर रहे थे। अचानक राजा मात्याश ने आकाश पर नज़र डाली। वे दरबार के ज्योतिषी की तरफ़ मुड़े और उससे पूछा-
- भाई, क्या आज वर्षा होगी?
चाँदी जैसी सफ़ेद दाढ़ीवाले बूढ़े ज्योतिषी ने चश्मा अपनी नाक पर टिकाया और आकाश में इधर-उधर देखने लगा।
- वर्षा नहीं होगी, महाराज। हम बिना किसी परेशानी के घूम सकते हैं।
सुन्दर हर-भरे खेतों में पहुँचते ही राजा मात्याश ने एक गधे का रेंकना सुना। उसीके पास एक चरवाहा अपनी भेड़ें चरा रहा था। राजा ने उससे पूछा-
- बताओ चरवाहे, तुम्हारा गधा क्यों रेंक रहा है?
- महाराज, जब मेरा गधा इसी तरह रेंकता है तो बहुत अधिक वर्षा होती है।
राजा ने ज्योतिषी से कहाः
- लम्बी दाढ़ीवाले ज्योतिषी, क्या तुम ये बात सुन रहे हो?
- जी महाराज, मैं सुन रहा हूँ। मगर फिर भी मैं कहता हूँ कि आज वर्षा नहीं होगी।
इस पर गधा और भी ज़ोर से रेंकने लगा। चरवाहे ने विनम्रता से याचना की-
- महाराज, वापस चले जाइए! आज का मौसम बहुत डाँवाडोल है। आज मूसलाधार वर्षा होगी।
पर राजा और उनके साथियों ने इस बात की परवाह नहीं की और आगे बढ़ गए। आधे घंटे बाद ऐसी बौछार आयी जिसने उन लोगों के कीमती कपड़े तर-बतर कर दिए। ज्योतिषी के चश्मे से भी पानी की धार गिरने लगी। तब तीसरी बार राजा मात्याश ज्योतिषी की ओर मुड़े और उसकी आँखों में झाँककर हँसते कहाः
- भाई, स्वीकार करो कि वह गधा एक ज्योतिषी है, क्योंकि तुम उस से पूछोगे तो वह स्वीकार करेगा कि ज्योतिषी एक गधा है।
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