--अत्तिला सबो
महाकवि कालिदास संस्कृत साहित्य के सबसे बड़े कवि और नाटककार हैं। उन्होंने तीन नाटक तथा चार काव्यग्रंथ लिखे हैं। नाटकों में- ‘मालविकाग्निमित्र’, ‘अभिज्ञान शाकुंतल’, और ‘विक्रमोर्वशीयम्। उनकी कविताओं के नाम ‘रघुवंश’, ‘कुमारसंभव’, ‘ऋतुसंहार’ तथा ‘मेघदूत’।
उनकी भाषा सरल और सरस है। कालिदास बहुत बुद्धिमान और ज्ञानी आदमी थे। हम उनके जीवन बारे में बहुत कम जानते हैं। शायद वे चौथी या पाँचवी शताब्दी में जीते थे। उनके जीवन के बारे में कई अलग-अलग कहानियाँ हैं। उनमें से एक कहानी के अनुसार कालिदास उज्जयिनी में रहते थे। वे बहुत सुंदर युवक थे लेकिन बड़े मूर्ख और अनपढ़ थे। उज्जयिनी के राजा की एक बहुत रूपवान और विद्वान बेटी थी जिसका नाम विद्योत्तमा था। राजकुमारी को अपनी विद्या पर बड़ा गर्व था। उसने कहा कि मैं उसी आदमी के साथ विवाह करूँगी जो मुझे शास्त्रार्थ में पराजित कर देगा। उसके घोषणा करने के बाद, इधर-उधर के पंडित विद्योत्तमा से शास्त्रार्थ करने के लिए आए। लेकिन कोई भी विद्योत्तमा को पराजित नहीं कर सका। एक दिन पंडितों ने कालिदास को एक ऐसी डाल पर बैठे देखा जिसे वह काट रहा था। इसलिए पंडितों ने सोचा यह बड़ा मूर्ख है। उसके बाद वे कालिदास को सुंदर वस्त्र पहनाकर विद्योतमा के पास ले गए। उन्होंने राजकुमारी से कहा कि कालिदास उनके गुरु हैं। वे बोल नहीं सकते क्योंकि उन्होंने मौन-व्रत धारण कर रखा है। शास्त्रार्थ में कालिदास ने संकेतों में बताया और पंडितों ने विद्योत्तमा से संकेतों के मतलब कहे। इसलिए विद्योत्तमा ने कालिदास को बहुत बुद्धिमान सोचा और दोनों का विवाह हो गया। पर एक दिन विद्योत्तमा पता लगा कि उसका पति बड़ा मूर्ख है। उसने अपने पति को महल से बाहर निकाल दिया। कालिदास काली के मंदिर में गया, वहाँ काली की मदद के कारण उन्होंने अपनी पढ़ाई आरंभ की। इनके नाम का अर्थ भी काली का सेवक है।
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