--एवा अरादि
प्रथम विश्व हिंदी सम्सेलन जनवरी 1975 में नागपुर में आयोजित हुआ था। उस समय मैं बोम्बई (मुम्बई) के भारतीय विद्या भवन में पढ़ती थी। मैं सम्मेलन में हिंदी भाषा की प्रेमी के रुप में गई थी और यह प्रेम आज तक मेरे दिल में रहता है। इसलिए मेरे लिए बहुत खुशी की बात थी उस सम्मेलन में भाग लेना।
सम्मेलन का भला प्रबंध महासचिव स्वर्गीय अनंत गोपाल शेवदे जी का काम था। मुझे सम्मेलन का नाराः ,वसुधैव कुटुम्बकम, भी बहुत अच्छा लगता था। पहले विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्देश्य ही था कि हिंदी राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय महत्व पर जोर दिया जाये। उस समय भी भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र था और देश में हिंदी सबसे बड़ी भाषा थी। और यह भाषा न केवल भारत में लेकिन मोरिशस, त्रिनिदाद, गयाना, सुरीनाम, फीजी, अमेरिका और इंग्लैंड में भी बोली जाती है। हिंदी के महत्व को नागपुर के सम्मेलन में सब सदस्यों ने मान लिया।
हम प्रतिदिन विचार गोष्ठियों में हिंदी के बारे में अलग-अलग भाषण सुनते थे। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सबसे भला एक नाटक हुआ था, जो महाकवि दिनकर के काव्य, उर्वशी, पर आधारित था। बाद में मैंने इस काव्य के एक भाग का अनुवाद किया हंगेरियन भाषा में।
सम्मेलन में मैं भारत के विद्वानों से और श्रेष्ठ साहित्यकारों से मिली थी, उदाहरण के लिए जैनेंद्र कुमार, काका कालेलकर, विष्णु प्रभाकर, यशपाल जैन, डॉ. धर्मवीर भारती, कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव, महादेवी वर्मा, और अमृता प्रीतम। और मेरे प्रिय लेखक प्रेमचन्द के बेटेः अमृत राय के साथ भी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें