शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

आगरा, जैसा मुझे लगा

दिनेश बिशोफ--

हाँ! आगरा वही जगह, जहाँ कितने छात्र–छात्राएँ गये थे। हाँ, मैं भी गया। आगरा। जब यह शब्द सुनते हैं लोग, क्या समझते हैं? कुछ लोग ताजमहल समझते हैं । जो लोग भारत के बारे में कुछ जानते हैं वे समझते है कि वह भारत की सबसे गंदी जगहों में से एक है, क्योंकि वे उत्तर प्रदेश और बिहार को गंदा समझते हैं। जो छात्र-छात्राएँ वहाँ गए, हाँ, वे संस्थान समझते हैं। और मेरा विचार?
यह कि आगरा गंदा है यह कोई गुप्त बात नहीं है। पर मुझे कोई बताएगा कि दुनिया में ऐसी कोई जगह है जहाँ जरा सी भी बुरी बात नहीं है। हर जगह में कुछ अच्छी बातें भी हैं और कुछ बुरी बातें भी। आगरा में कई अच्छी बातें हैं और कई बुरी। हाँ रास्ते तो बहुत ही गंदे है। लोग वहाँ जाते, जब उनको कुछ नहीं चाहिए, एक आईस क्रीम का कागज, एक प्लास्टिक गिलास, एक समाचार पत्र, तो तुरंत वहीं फेंकते है। कोई कचरे का डिब्बा कहीं नहीं है। इन कचरों को इकट्ठा करते हैं कहीं। जब बहुत ज्यादा इकट्ठा हो जाता है, जैसे कोई कचरे का टीला, तो उसे जला देते हैं। तब उसका गंदा धुआँ उड़ने लगता है। रोज कहीं न कहीं कुछ कचरा जलता है। जिससे सारा आगरा धुएँ से ढका होता है। इस धुएँ से साँस लेने में परेशानी होती है। आगरावासी लोग भी कभी-कभी अपनी नाक के आगे कुछ कपड़ा लगाते हैं, चाहे पैदल, स्कूटर से या रिक्शे से जाते हैं। जब विदेशी विद्यार्थी आते हैं, सबसे पहले उन्हें खाँसी आती है। कुछ लोग कमजोर हो जाते हैं, कुछ लोग बीमार। हालाँकि एक चीज है जिसका नाम मुलेठी है, वह खाँसी को भी खत्म करती है और नाक को भी साफ करती है, लेकिन कम लोग जानते हैं। इन समस्याओँ के अलावा लोगों की समस्याएँ भी होती हैं। भारतीय लोग विदेशियों को गौर से देखते हैं, गोरी महिलाओं को और भी गौर से, कभी-कभी उनके पीछेवाली पर मारते हैं, जिससे गोरियाँ नाराज हो जाती हैं। सब रिक्शावाले गोरों को देखकर दौड़ने लगते हैं और “यैस सर। ताजमहल। यैस। ओन्ली वान हांद्रद रुपये। यैस” ऐसे-ऐसे चिल्लाते हैं। इन लोगों से पीछा छुड़ाना बहुत मुश्किल होता है। जब सात-आठ महीनों तक यह सुनते हैं हम और हमेशा गलत पैसा माँगते हैं तो हाँ दिमाग इनसे थक जाता है, खराब हो जाता है।
और आदि-आदि, बहुत समय तक कह सकूँ आगरा की बुरी बातों को, लेकन अभी वहीं लिखूँगा, जो मेरी दृष्टि में अच्छी बातें लगती हैं। कहाँ से शुरु करूँ? संस्थान तो गंदा है, लेकिन उसके बिल्कुल सामने एक लोहार रहता है। उसका चेहरा। उसकी मूँछ। उसका कोई घर नहीं है। रास्ते में रहता है। उसकी पत्नी का चेहरा। आँखें। जैसे वे एक साथ लोहा मारते हैं। कितनी मुश्किल से कितना कम पैसा कमाते हैं। और ऐसे जीवन गुजारते हैं। आगे जाकर महेश जी का ढाबा है। वहाँ की चाय। उसका बेटा प्रसन्न, हम सोच सकते हैं कि वे गरीब लोग हैं तो निर्बुद्धि हैं। लेकिन यह सच नहीं है। हाँ, ये बहुत सरल जीवन जीते हैं। इनके पास न मोबिल फोन, न कंप्यूटर, न गाड़ी। लेकिन इनसे बात करके पता लगता है कि ये निर्बुद्धि नहीं हैं। पैसे के पीछे हमारी तरह से नहीं दौड़ते। वहाँ बैठते हम देखते हैं जब औरतें घड़ा लेकर आती हैं पानी लेने के लिए। कितनी चतुराई से रखती हैं अपने सिर पर उस भारी घड़े को। संस्थान के पीछे एक छोटा सा मंदिर है। वह जितना छोटा है उतना ही सुंदर है। अगर हम अंदर, आगरा में जाते हैं तो कितना ‘जूस बार’ मिलता हैं।
वहाँ का मैंगो जूस गरमियों में कितना अच्छा लगता है। भगवान के पास बेलगिरी का जूस मिलता है। कुछ आगे बहुत स्वादिष्ट पनीर दोसा और चॉकलैट शैक मिलता है।
रास्ते में बहुत जानवर होते हैं। बकरी, गधा, भैंस। मुझे सबसे प्यारे हैं भैंस और ऊँट। दोनों बहुत धीरे-धीरे चलते हैँ। जब किसी चौराहे को पार करते हैं तो सारी गाड़ियाँ रुक जाती हैँ। वे ऐसे जाते हैं जैसे कि उन्हें मालूम है कि जब तक वे चलते हैं, तब तक सारे रास्ते रुक जाते हैं। इसलिए कोई चिंता नहीं करके बिल्कुल धीरे जाते हैँ। मुझे लगता है कि ऊँट थोड़ा सा मुस्कराता भी है। हाँ! जो आगरा में जाता है इसे जरूर देख ले! ऊँट मुस्काराता है, इस बात पर।
आगरा के दूसरे कोने में रहते थे मेरे बाँसुरी गुरु। क्या बताऊँ? जब वे बाँसुरी बजाते हैं, उसके लिए कोई शब्द नहीं। उनकी बाँसुरी की मधुर आवाज। उनकी पत्नी। पत्नी का खाना। उनका बेटा और दो बिटियाँ। इन लोगों से मिलना।
और आखिर में संस्थान। यह, कि संस्थान में कुछ अध्यापक बेकार हैं? शायद। लेकिन कुछ अध्यापक इतने अच्छे हैं कि उसके बारे में बता नहीं सकता। एक अध्यापक तो इतने अच्छे हैं कि उनसे हम कुछ भी पूछ सकते हैं, वे उत्तर देते हैं। अगर कविताओं के बारे में पूछते हैं तो तुरंत याद से उन्हें सुनाते हैं और गाकर सुनाते हैं, और सुंदर से। इतने सुंदर से कि साहित्य में मुझे भी रुचि आयी।
कुल मिलाकर यह नहीं कह सकता कि आगरा अच्छा है, लेकिन यह भी नहीं कह सकता, कि बुरा है। आगरा बस आगरा है, और मैं खुश हूँ कि वहाँ जा सका था।

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