शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

चूहा-उद-दिन


--क्रिस्तियान

आज सुबेरे एक रोचक मुलाक़ात मेरी याद में आई। कुछ हफ्तों पहले बाज़ार में घूमते घूमते मैंने एक मोटर की ओट में दो छोटे-छोटे चूहे देखे थे। इसीलिए मैंने उनकी ओर ध्यान दिया, क्योंकि सहसा मैंने सुना की ये ही चूहे बातचीत भी करते थे।
- हाँ ज़रूर केला, अंगूर, खीरा, कंदमूल, सेम की फ़ली आदि सब कुछ मिलता है बिना कठिनाई के। लेकिन …
- और कंद भी, और गाजर और शलजम भी!
- हाँ हाँ। पर, सुनिए, बड़े मैदान में मेरा एक दोस्त था जो एक चूहेश्वर देव से अति प्रेरित कवि था, एक अच्छा शायर, जिसका तखल्लुस मतलब कविनाम चूहा-उद-दिन था। उसकी एक कविता सुनिए –
चुहू चुहू चुक्कु छु…
चुहू चुहू चुक्कु छु…
......................
- क्या बक रहे हो?
- बस सुनिए! मेरा दोस्त चूहा-उद-दिन बहुत खाना नहीं खाता था। उसको खाने के स्वाद और महक से देव दुआ और प्रार्थना अच्छी लगती थी।
- आश्चर्य की बात है!
- एक दिन गुफा से निकलकर हवा से उड़ते हुए किसी अखबार के टुकड़े में वह दिन के एक समाचार पढ़ बैठा।
-कुपोषण के बारे में पढ़ा, आरोप और कैद, सरकार की वीरान जगह के बारे में, वगैरह-वगैरह। चूहा-उद-दिन का दिल इतना दहल गया, कि पहले दिन थोड़ा सा ही भोजन खाने के कारण बीमार हो गया।
- हे चूहेश्वर!
- दो दिन बाद एक चुलबुली लड़की ने आकर गुफा में अपनी गेंद खोजी। गेंद के बजाय चूहा निकाल लिया। लड़की को दुबला पतला होने के बावजूद यह चूहा अच्छा लगता था, क्योंकि उसकी त्वचा असाधारण थी।
- काली थी ? सफ़ेद थी?
- नहीं। उसकी त्वचा चाँदी जैसी थी।
- (मुँह खोलकर) अह!
- यह घटना मैंने एक कुएँ से सुनी। और एक दूसरे कुएँ ने मुझे बताया, कि अभी तुम्हारा चाँदी कवि दोस्त एक बड़े घर में रहता है।
- अच्छा!
- एक नन्हे पिंजरे में। और अब कवितायेँ नहीं रचता। इस के अलावा चूहा-उद-दिन के कुछ समाचार नहीं मिले।
- बहुत अफ़सोस की बात है!
- क्यों? उसके पास सब कुछ है, खाना है, न? केला, अंगूर, खीरा, कदमुल, सेम की फ़ली, …
- पर संभव है, की चूहा-उद-दिन की सारी प्रतिभा ख़त्म हो गई हो। उसका जीवन थोड़ा भी सुखी न हो।
- सच कहते हो, ऐसा ही हुआ होगा। मैं अपने शायर दोस्त के एक शब्दों को याद करता हूँ –
वे करते है पान का लिहाज़, वे चाहते है लहसुन और प्याज़ ।
पर शायरी का नज़र-अंदाज़ कौन हल करेगा इसका राज़ ।।

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