शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

कविताएँ

जीवन कितना सुंदर
इव मुद्रा
सर्द सोता, घना जंगल, बर्फ ढँकी चोटियाँ- कितनी चमकदार
करो कल्पना,
दिख जाएगा तुरंत प्रकाश,
खोलो आत्मा के द्वार,
रोचक है सारा जहाँ।
धरती के कण-कण में छिपा रहस्य
रहे हैं लोग अब तक जहाँ।
दुर्भाग्य-सौभाग्य
सुखी थे हमारे पूर्वज,
ज्ञात है कुछ के बारे में हमें,
पर रह गए हैं लाखों नामहीन, अज्ञात।
गहरी गुफाएँ, भयानक जंगल,
नदी और सागर गूँजते हैं,
सागर किनारे खड़ा अकेला दीपघर।
सूरज की गर्मी में या
बर्फ के सर्द पहाड़ों के बीच,
बुद्धि और परिश्रम से निकलता है रास्ता।
हर जन्म होता है नई शुरुआत,



जगती हैं नई आशाएँ,
उगते हैं नए विश्वास
खोजते हैं सब सौभाग्य।
सृजन का तप,
आने वाले कल के सुंदर होने का विश्वास,
जल रहा दीप निरंतर।
जीवन है सुंदर, सब कुछ ही है जीवन,
न हो धन-धान्य, न मिले प्रतिष्ठा,
न हो कुछ भी पास तुम्हारे,
पर जीवन,
यही तो सच्चा खज़ाना है।
मनोभाव, काम और इच्छा,
ये ही करते सार्थक तेरा जीवन।
धरती अपने गर्भ में रखती अपने रहस्य,
करती है इंतजार,
जानो-पहचानो इसके असीम रहस्य को।
जीवन है सुंदर,
जीवन है सब कुछ।
जब तक रहेगा अस्तित्व मानव का,
यह अटूट शृंखला,
जोड़ती है मन से मन को,
दो यह ज्ञान विश्व को तुम,
जीवन है सुंदर,
जीवन है सब कुछ।
कहेंगे लोग तुम्हें
क्या है पास तुम्हारे?
पर जानते हो तुम
संसार का सबसे अनमोल खज़ाना
जीवन।
(एक हंगारी गीत “अज़ इलेत शेप” का हिंदी अनुवाद, सहयोग-प्रमोद कुमार)
वर्षा का गीत
वसिल मिंतशेव

अब शीतकाल में
पेड़ों की टहनियों पर
तेरी बांहों में
तेरा नाम हिम में लिख रहा हूँ,
वसंत आयेगा तत्काल
हिम पिघलेगी,
व्योम में उड़ेगी,
ग्रीष्म ऋतु जब आएगी
वर्षा, तेरा ही नाम गाएगी।

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