बुधवार, 14 अप्रैल 2010

पॉल स्ट्रीट के अलबेले/जाँबाज

फेरेंस मोलनार
(अनुवाद-प्रमोद कुमार)

भूमिका - मात्यास सारकोजी

मैं इस बार की गर्मियों में इटली के एक छोटे से कस्बे में दोपहर के भोजन के लिए रुका। बुजुर्ग वेटर को बातचीत के दौरान पता चला कि मै हंगेरियन हूँ। ओ, तो इसका मतलब है कि तुम “द पॉल स्ट्रीट बॉयज़” के देश के हो। मैंने इसे किशोरावस्था मे पढ़ा था, “मुझे इसका प्रत्येक अध्याय याद है।“ जब मैंने उसे बताया कि मैं उसके लेखक का पोता हूँ, तब वह वापस रसोई में गया और मेरा खाना दुगुना कर दिया।

वास्तव में यह पुस्तक अपनी ही तरह की पुरानी अनूठी (क्लासिक) पुस्तक है। अब तक यह 14 भाषाओं में अनूदित हो चुकी है। अंग्रेजी भाषी देशों, खासतौर पर अमरीका में बसे हंगारी समुदाय के सदस्यों ने मुझे ढेरों पत्र यह लिखॉकर पूछा कि मोलनार की यह पुस्तक इतने दिनों से प्रकशित क्यों नहीं हुई। यह पुरानी पुस्तकों का खजाना बेचने वाली दुकानों पर भी नहीं मिलती। इन सभी लोगों की इच्छा थी कि वे अपने बच्चों को अपनी बचपन की मनपसंद कहानी पढ़ने को दें। इससे उनको अपने परदादाओं के समय और काल की गंध मिलेगी।

शायद प्रकाशकों को लगा होगा कि 1907 में छपा यह उपन्यास जिसका अनुवाद 1927 के आसपास हुआ था आज के कंप्यूटरी किशोरों को रास नहीं आएगा। यह सच भी है क्योंकि जब मैं कुछ सदाबहार पुराने अनूठे उपन्यासों को पढ़ता हूँ तो कम से कम मुझे लगता है कि उनका जादू अब मुझ पर नहीं चलता। पर इसके साथ ऐसा नहीं है। पॉल स्ट्रीट के अलबेले अब भी एक जमीन के टुकड़े के लिए युद्ध करने वाले किशोरों के दो गुटों की कहानी है जो उतनी ही सनसनीखेज है। टूटी-फूटी इमारत वाली जमीन का टुकड़ा, लकड़ी का अस्थाई गोदाम तो है पर साथ ही उनका साहसी कारनामों से भरा प्यारा खेल का मैदान भी है और है उनकी स्वतंत्रता का प्यारा सा प्रतीक।

पॉल स्ट्रीट कोई काल्पनिक स्थान नहीं है, यह अब भी बुदापैश्त में है, और तो और इसका नाम भी वही है। इसकी खास बात यह है कि 1907 से अब तक इसमें कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ है। आजकल बच्चे नाविकों की पोषाक या नाविकों के कपड़े अब बिल्कुल भी नहीं पहनते। पर जब पास के स्कूल से बच्चों के झुंड निकलते है तो मैं उनमें आसानी से मोलनार के चरित्रो को देख सकता हूँ। गैंग का लीडर आकर्षक बोका, सबसे एक सिर (बालिश्त) लंबा, चतुर पर धोखेबाज गैरैब और इनके साथ होता है छोटा सा लड़का जो कहानी के नायक एर्नो नैमैचैक जैसा लगता है। इसने “अंकगणित के अंक 1 के समान न तो वस्तुओं (परिस्थितियों) को गुणा किया और न ही भाग किया”। इतना महत्वहीन होने के कारण एक परिस्थितियों का आदर्श पुतला बनकर रह गया। परिस्थितियों का पुतला था पर अपनी नैतिक ताकत के बल पर सबके लिए एक आदर्श बना।
जब फेरेंस मोलनार ने पॉल स्ट्रीट के जाँबाज़ लिखा था तब हंगरी में कूपर की इंडियन युद्ध कथाएँ बहुत लोकप्रिय थीं। इस किताब में उनकी नैतिकता को भी स्थान मिला है। इसमे सच्ची मित्रता, वफादारी, आदर्शवाद और स्वतंत्रता प्रेम के उदाहरण हैं। इन गुणों की आज भी आवश्यकता है।

मोलनार हमेशा अपने आप को अति भावुक होने से बचा जाते हैं। उनमें मार्क ट्वैन की हाज़िर जवाबी है। किसी भी अच्छे लेखक में विकृत और कारुणिक भावों मे सामंजस्य स्थापित करने की समझ होती है।

पॉल स्ट्रीट बॉयज पहले-पहल किशोरों की एक पत्रिका में शृंखला के तौर पर प्रकाशित हुआ था। इसका प्रत्येक अंक कुछ ही घंटों में बिक जाता था। इस नए संस्करण के लिए यहाँ-वहाँ बासीपन से बचने के लिए बातचीत चलती रहती थी।
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उपन्यास

अध्याय एक
ठीक पौने एक बजे, कई निरर्थक प्रयोगों के बाद, तनाव से भरे क्षणों से मुक्ति मिली। कक्षा के डेस्क पर रखे बुन्सेन बर्नर की रंगहीन लौ के ऊपर अचानक एक हरे रंग की रोशनी निकलने लगी। प्रोफेसर का यह दिखाने का प्रयास सफल हो गया कि कुछ रसायन आग के रंग को बदल सकते हैं। पर उसी समय, उस सफलता के क्षण में, ठीक पौने एक बजे पड़ोस के एक खुले आँगन से गड़-गड़ की आवाज आने लगी। सबका उत्साह और ध्यान तुरंत ही इस आवाज की ओर मुड़ गया। खिड़कियाँ खुली थीं और उनमें से मार्च के महीने जैसी गरमाहट अंदर फैल रही थी। इसके साथ-साथ ताजी बसंती हवा भी अपना संगीत सुना रही थी। यह एक उछलता कूदता मज्यार राग था जो मार्च के महीने में इस गड़-गड़ से पैदा हुआ था। यह पूरी तरह से एक उल्लसित करनेवाली और वियना की गंध लेकर आनेवाली थी कि पूरी की पूरी कक्षा मुस्कराने को ललचाने लगी। कुछ तो इसकी मार से बच नहीं पाए और मुस्कराने लगे।

बुन्सेन बर्नर की हरी लौ अपनी छटा बिखेरती रही। आगे बैठे छात्रों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती रही। पर बाकी सभी ने अपनी आँखों को खिड़की से बाहर पास के छोटे-छोटे आकार की छतों की ओर झाँकने दिया। कहीं दूर एक चर्च की मीनार सोने के सूरज की रोशनी से चमक रही थी। उसकी घड़ी की बड़ी सुई बारह के बहुत पास सरक गई थी। बाहर क्या हो रहा है यह जानने की कोशिश में बच्चों ने ऐसी आवाजें भी सुनी जो इस माहोल से किसी रूप में भी जुड़ी हुई नहीं थीं। घोड़ा गाड़ी चलानेवाले अपने भौंपू बजा रहे थे। कहीं कोई नौकरानी इस गड़-गड़ की आवाज के विपरीत मधुर स्वर में गा रही थी। पूरी कक्षा बेचैन थी। कुछ बच्चे अपने डेस्कों में हिलते-डुलते किताबों को उलट-पलट रहे थे। कुछ सफाई पसंद बालक अपने पैन की निब साफ कर रहे थे। बोका ने अपनी दवात चेरी रंग के चमड़े के खोल में रख ली। यह उसका अपना आविष्कार था, इससे दवात में से स्याही नहीं निकलती थी चाहे उसे जेब में रख लिया जाए। चैले ने अपने इधर-उधर बिखरे पृष्ठों को इकट्ठा किया जो किताबों के स्थान पर उसका साथ देते थे। समझ लीजिए यही चैले के ठाठ थे। उसे अपने सहपाठियों की तरह अपनी बाहों में किताबों की लायब्रेरी ढोने की आदत नहीं थी। वह उन्हीं पन्नों को लाता था जो बहुत जरूरी होते थे। इन्हें भी वह अपनी अंदर-बाहर की अलग-अलग जेबों में ठूँसे रहता था। सबसे पीछे बैठा चोनाकोश ऊबे हुए दरियाई घोड़े की तरह उबासी ले रहा था। वैइज़ ने अपनी जेबें उलट रखी थीं। उनमें से पैस्ट्री का चूरा गिर रहा था। वह कक्षा में पढ़ाई के दौरान सारा समय 10 बजे से 1 बजे तक पैस्ट्री खाता रहा था। गैरैब ने डेस्क के नीचे अपने इधर-उधर घिसे और हाथ ऊपर उठने के लिए घुमाए। बरोबास ने अपने घुटनों पर बेशर्म तरीके से किताबों पर एक तैलवाला कपड़ा लपैटा। इसके बाद उसने एक फीते से बंडल को इतनी जोर से बाँधा कि डेस्क चरमराने लगा। उसका चेहरा लाल हो गया।

दूसरे शब्दों में, सब मिलजुलकर बाहर निकलने को तैयार हो रहे थे। सिर्फ प्रोफेसर यह नहीं समझ पा रहे थे कि अगले पाँच मिनट में सब कुछ समाप्त हो जाएगा। जैसे ही प्रोफेसर की वात्सल्य भरी नज़रें फुसफुसाते किशोर सिरों पर से गुजरी, उन्होंने पूछा-
“ये सब क्या हो रहा है?”
सन्नाटा, मौत का सा सन्नाटा फैल गया। बराबोस ने किताबों पर लगे फीते को ढीला कर दिया। गैरैब ने भी अपने पैर वापस अपने नीचे घुसा लिए। वैइज़ ने अपनी जेबें फिर से अंदर कर लीं और चोनाकोश ने हाथ से कसकर अपना मुँह बंद कर उबासी को छिपा लिया। चैले ने अपने पन्ने गिराए और बोका ने जल्दी से अपनी चेरी रंग का खोल वापस रख दिया। जेब को छूते ही उससे नीली सुंदर नीली स्याही बहने लगी थी।

“ये सब क्या हो रहा है?” अध्यापक ने दोहराया, इस समय तक सब अपनी-अपनी सीटों पर चिपक चुके थे। उन्होंने खिड़की की तरफ नज़र घुमाई। उसमें से चूँ-चूँ का मशीनी संगीत आ रहा था और उनके अध्यापकीय अनुशासन की धज्जियाँ उड़ा रहा था। खिड़की की तरफ प्रोफेसर ने कठोर नज़र डालते हुए ही कहा-
“चेनगैयी, उस खिड़की को बंद कर दो।”
चेनगैयी जिसे सब छोटू चेनगैयी के रूप में जानते थे, कक्षा की ओर से, अपने गंभीर गालों वाले चेहरे की उदासी को कम किए बिना लापरवाही से उठा और खिड़की बंद कर दी।
ठीक इसी समय बरामदे की ओर बैठा चोनाकोश अपनी सीट से बाहर की तरफ झुका और एक छोटे से सुनहरी बालों वाले लड़के से फुसफुसाया, “नैमैचैक सावधान।”

नैमैचैक ने तिरछी नजर पीछे की ओर डाली और फिर फर्श की ओर देखा। कागज़ की एक छोटी सी गेंद लुढ़कती हुई उसके पैरों के पास आ गई। उसने गेंद को उठा लिया और खोला। उस पर एक तरफ लिखा था, “ इसे बोका को दे दो।”
नैमैचैक जानता था कि यह तो सिर्फ पता बताने का एक तरीका है, असली संदेश तो कागज़ की दूसरी तरफ होगा। नैमैचैक निश्चित तौर पर एक दृढ़चरित्र का लड़का था, वह किसी दूसरे की चिट्ठी पढ़ने में विश्वास नहीं रखता था। इस कारण से उसने कागज़ को फिर से गुड़मुड़ किया और एक अच्छे मौके का इंतजार किया। मौका मिलते ही बैंचों की कतारों के बीच में झुककर फुसफुसाया “बोका, सावधान।”

अब फर्श को टटोलने की बारी बोका की थी। यह फर्श ही उनका संदेशों को इधर-उधर करने का नियमित जरिया सिद्ध हुआ था। छोटी सी गेंद लुढ़कती हुई बोका के पास पहुँची। उसकी दूसरी तरफ, उसी तरफ जिसे सुनहरी बालों वाले नैमैचैक ने ईमानदारी के कारण नहीं पढा था। उस ओर ये शब्द लिखे थे: ठीक तीन बजे मैदान में एक आम सभा होगी। अध्यक्ष का चुनाव। घोषणा कर दो।”

बोका ने कागज को जेब के सुपुर्द किया और किताबों वाले फीते को अंतिम बार कसा। ठीक एक बजा था। बिजली की घंटी बजने लगी। अब प्रोफेसर की भी समझ में भी आ गया कि उनकी कक्षा समाप्त हो गई है। उन्होंने बुन्सेन बर्नर को बुझाया, अगले पाठ के बारे में बताया फिर अपनी भरी हुई चिड़ियों की प्रयोगशाला की ओर बढ़ गए। पंख फैलाए ये चिड़ियाँ अलग-अलग खानों में सजी थीं। जब भी कोई दरवाजा खोलता था उनकी शीशे की मूर्ख आँखे बाहर झाँकने लगती थीं। एक कोने में था एक उनका एक अति गुप्त, रोबीला पर महत्वपूर्ण नमूना, जो था रहस्यों का रहस्य- एक पीला हो चुका अस्थिपंजर।

पूरी क्लास तुरंत ही खाली हो गई। चौड़े खंभोंवाले बरामदे की सीढ़ियाँ जूतों की भेड़चाल के धमाकों से गूँजने लगीं। यह गूँज तभी धीमी पड़ती थी जब किसी लंबे अध्यापक की छवि इन युवा बच्चों के बीच दिखती थी। वे अपने कदमों को एक क्षण के लिए रोकते थे, जो अपने कदमों को नियंत्रित नहीं करना चाहते थे, वे अध्यापक के कोने में गायब होते ही धड़धड़ा कर सीढ़ियाँ उतरने लगते थे।

ये युवा गेट मे से लुढ़कते-पुढ़कते से गली में घुस जाते थे। उनमें से आधे बाईं ओर मुड़ते और आधे विपरीत दिशा में मुड़ जाते। कुछ प्रोफेसर भी निकलते। उनके आने पर छोटे-छोटे हेट उतर जाते। वे धुपहली गलियों में वे सभी थके-माँदे और भूखे होते। उनके दिमाग कुछ जड़ से होते थे। यह जड़ता गलियों की खुशहाली और जिंदगी को देखकर धीरे-धीरे खत्म हो जाती। वे धूप और ताजी हवा का संपर्क से कैदियों के समान चुँधिया जाते थे। वे उनकी तरह हिलते-डुलते चलते। वे शहर की विविधता, कोलाहल और खुशी में रंगरेलियाँ मनाते। वे बग्घियों, घोड़ा गाड़ियों, गलियों और दुकानों के बीच से अपना रास्ता बनाते अपने घर जाते । उनके लिए ये सारी की सारी चीजें एक ढेर जैसी होतीं।

चैले गेट के पास तुर्की शहद के एक टुकड़े के मोलभाव में चुपचाप जुटा था। हमें यह समझना होगा कि फेरीवाले ने अपनी चीजों के दाम बेशर्मी से बढ़ा दिए थे। ऐसा माना जाता है कि पूरे संसार में तुर्की शहद का रेट एक ही है और वह है एक क्रोयत्सार। तुर्की शहद बेचने वाला अपना हथौड़ा उठाता है और एक बार में मेवे वाली सफेद वस्तु का जितना टुकड़ा टूटकर गिरता है उसका दाम एक क्रोयत्सार होता है। यह भी समझा जाता है कि स्कूल के गेट के पास जो कुछ भी बिकता है, उसकादाम भी एक टुकड़ा एक क्रोयत्सार का ही होना चाहिए। कारण यह ही खरीदारी की इकाई है। एक सींक पर लगे चाशनी में डूबे तीन आलूबुखारों, तीन कटी हुई अँजीरों, तीन आड़ुओ और तीन आधे अखरोट के टुकड़ों के लिए भी आपको एक क्रोयत्सार देना होता है। ऩ तो भालूचीनी के एक बड़े टुकड़े और न ही रॉक कैंडी के एक गुच्छे का दाम एक क्रोयत्सार से ज्यादा होता है। वास्तविकता तो यह है कि एक क्रोयत्सार देकर कोई भी “छात्र चारा” नाम का स्वादिष्ट मिश्रण खरीद सकता है। यह मूँगफली, किशमिश, कैंडी, अखरोट, चीनी, बादाम और मीठी डबलरोटी के टुकड़े, धूल-मिट्टी और मरी हुई मक्खियों का मिश्रण होता है। सिर्फ एक क्रोयत्सार देकर आप यह छात्र चारा खरीद सकते हैं, इसमें सभी उद्योगों के साथ-साथ जीव व पादप जगत के उत्पाद भी शामिल होते हैं। यह कागज़ के लिफाफों में मिलता है।

चैले झगड़ रहा था, इसका मतलब है कि फेरीवाले ने दाम बढ़ा दिए थे। जो व्यापार के नियम अच्छी तरह से जानते हैं उन्हें यह पता होता है कि व्यापार का भविष्य खतरे में होने पर प्रायः दाम बढ़ जाते हैं। इस प्रकार, उदाहरण के लिए देखें तो लुटेरों वाले जोखिम भरे रास्तों से पहुँचने वाली एशियाई चाय अमूल्य होती है। इस जोखिम का भुगतान पश्चिमी यूरोप के निवासियों को करना पड़ता है। हमारा यह फेरीवाला इस छोटे से लड़के से खूब व्यापार कर रहा था क्योंकि उसे स्कूल के पास से हटाने की धमकी दी गई थी। वह यह अच्छी तरह से जानता था कि यदि एक बार उससे छुटकारा पाने का निर्णय कर लिया गया तो वह ज्यादा दिन नहीं टिक पाएगा। इसलिए अनेक प्रकार की मिठाइयों होते हुए भी वह अध्यापकों के वहाँ से गुजरने पर भी उनको समझाने के लिए इतनी मीठी मुस्कान नहीं बिखेर पाता था कि अध्यापक ये सोचने लगे थे कि वह युवाओं का दुश्मन नहीं है।

शिक्षा देने वाले ये कठोर अध्यापक कहते थे कि सभी युवा अपना पूरा पैसा इस इटेलियन पर ही खर्च कर देते हैं। फेरीवाला मन से यह जानता था कि उसका व्यवसाय इस स्कूल के पास ज्यादा दिन नहीं टिकेगा। इसी कारण से उसने दाम बढ़ा दिए थे। वह अब यहाँ से अधिक से अधिक कमा लेना चाहता था। उसने साफतौर पर चैले से कहा-
“अबसे पहले सब कुछ एक क्रोयत्सार था। अबसे हर चीज दो क्रोयत्सार।”
उसने ये शब्द बड़ी मुश्किल से हंगेरियन भाषा में कहे। इस दौरान तुनकते हुए उसने अपना हथौड़ा उठाया। गेरैब चैले से फुसफुसाया-
“इसकी शान में अपना हेट हिलाओ।”
चैले ने सोचा यह एक जोरदार बात है। यह उसे कितना रोमांचित करेगा! कैंडी का दाएँ-बाएँ उड़ना! बाकी बच्चे भी इसका कितना मज़ा लेंगे।
शैतान गेरैब ने फिर लुभाने वाली बात कही।
चलो, इसे उसके मुँह पर मार दो। वह इतना मक्खीचूस क्यों है?
चेलै ने अपना हैट उतारा।
“इतना प्यारा हैट?” उसने उदासी भरे स्वर में कहा।
गेरैब ने एक बहुत बड़ी गलती कर दी। उसका सुझाव तो आश्चर्यजनक था पर गलत व्यक्ति को दिया गया था। उसे ध्यान रखना चाहिए था कि चेलै एक छैला था। वह स्कूल केवल “पन्ने” लेकर आता है।
गेरैब ने पूछा, “तुम्हें खतरा उठाने से डर लग रहा है?”

चेलै ने उत्तर दिया, “हाँ पर एक मिनट के लिए भी मुझे डरपोक मत समझना। मैं नहीं हूँ। पर अपने हैट को गंदी तरह से फेंकने का मेरा दिल नहीं है। यदि तुम चाहते हो तो मैं खुशी से तुम्हारा हैट उस पर फैंक कर यह सिद्ध कर सकता हूँ!”
यह गेरैब के लिए बहुत था। यह तो उसकी बेइज्जती जैसा था। वह इस बात से भड़क गया। वह बोला-

“यदि इस काम के लिए मेरा हैट चाहिए तो यह काम मैं खुद कर लूँगा। वह आदमी मक्खीचूस है, मैं तुम्हें बता रहा हूँ। यदि तुम डरते हो तो अच्छा होगा कि तुम चले जाओ।”
इसके साथ ही अपने मन के अनुसार जुझारूपन का भाव लाते हुए स्वादिष्ट वस्तुओं से भरी मेज के पार भेजने के लिए उसने अपना हैट उतार लिया।

पर किसी ने पीछे से उसके उठे हुए हाथ को जकड़ लिया। लगभग आदमियों जैसी एक गंभीर आवाज़ ने पूछा “तुम क्या करना चाहते हो?”
गेरैब ने अपना सिर घुमाया, यह बोका था। उसने फिर पूछा- “तुम्हारा क्या करने का इरादा है?”
यह प्रश्न एक गंभीर पर दयालु नजर के साथ किया गया था। इससे गेरैब कुछ झिझका, वह भी शेर के समान अपने प्रशिक्षक से झगड़ने के लिए गुर्राते शेर की तरह गुर्राया। वह थोड़ा शांत हुआ। अपने हैट को वापस रखते हुए उसने अपने कंधे उचकाए। बोका ने शांत स्वर में कहा-
“उस आदमी को अकेला छोड़ दो। मैं साहस की कद्र करता हूँ, पर यह तो मूर्खता है। आओ चलते हैं।”

उसने अपना हाथ गैरेब की ओर बढ़ाया। हाथ पर स्याही का धब्बा था। दवात में से स्याही धीरे-धीरे रिस रही थी। अपनी जेब का ध्यान न करते हुए उसने हाथ पीछे खींच लिया। पर इससे दोनों में से किसी को भी परेशानी नहीं हुई। बोका ने शांत भाव से अपना हाथ पास की एक दीवार पर रगड़ साफ कर लिया। बोका के हाथ के धब्बे पर तो फर्क नहीं पड़ा, पर दीवार पर गहरे धब्बे पड़ गए। बोका ने गेरैब के हाथ में हाथ डाला और वे दोनों ने लंबी गली में अपने घर की ओर मुड़ लिए। छोटा सा साफ-सुथरा चेलै पीछे ही रह गया। वे अभी ज्यादा दूर नहीं पहुँचे थे तब एक हारे हुए विद्रोही के समान उसने इटेलियन फेरीवाले से कहा-

“ठीक है, अब से हरेक चीज दो क्रोयत्सार में बिकेगी तो तुम भी मुझे दो क्रोयत्सार जितना तुर्की शहद दो।”
उन्होंने उसे अपने साफ-सुथरे बटुए में हाथ डालते देखा, जबकि फेरीवाले के चेहरे पर मुस्कराहट झिलमिलाने लगी। वह संभवतः यह सोच रहा था कि तब क्या होगा- यदि कल से- वह दाम बढ़ाकर तीन क्रोयत्सार कर दे। पर तुरंत ही उसने अपने दिमाग से इस विचार को मूर्खता समझकर निकाल फेंका। यह उसे इतना ही मजेदार लगा जितना किसी को सपना आता है कि एक पाउंड सौ के बराबर है। उसकी हथौड़ी जोर से तुर्की शहद पर पड़ी और उसने उसे तीली में लगा दिया।
चेलै ने उसे घूर कर देखा- “यह पहले से छोटा क्यों है!”

सफलता के कारण फेरीवाला बहादुर बन गया था। वह मुस्कराते हुए बोला “अब महँगा है, इसलिए कम है।”
यह कहकर वह नए ग्राहक की ओर मुड़ गया। इस ग्राहक ने बातचीत सुन ली थी इसलिए पहले से ही दो क्रोयत्सार निकाल कर खड़ा था। फेरीवाला अपनी हथौड़ी से सफेद कैंडी को तोड़ने लगा। उसके क्रिया-कलाप मध्ययुगीन कहानियों के उन प्रसिद्ध वधिकों की याद दिलाते थे जो अपनी अपनी छोटी कुल्हाड़ियों से बौनों के सिऱ धड़ से अलग करते थे। उसे तुर्की शहद को काटने पर वैसा ही खूँखार आनंद मिलता था।
चेलै ने नए ग्राहक से कहा, “रुको इससे मत खरीदो यह कंजूस-मक्खीचूस है।”
उसने अचानक सारा का सारा तुर्की शहद मुँह में ठूँस लिया। आधा उसके मुँह में पूरी तरह से चिपक गया. हालाँकि उसे चाटकर अलग करने की आदत नहीं थी।

“मेरा इंतजार करो!” वह बोका और गैरेब के पीछे से उनकी ओर दौड़ता हुआ चिल्लाया। पहले ही कोने पर वह उनसे आगे निकल गया। अब वे तीनों सरोश्कार गली की ओर जानेवाली पिपा गली में मुड़ गए। बीच में बोका, एक-दूसरे की बाँहों में बाँहें डाले वे दोनों आगे निकल मटरगश्ती करने लगे। बोका अपनी आदत के अनुसार शांत व गंभीर सबकी रुचि के विषय पर विचार कर रहा था। वह चौदह साल का था। उसके चेहरे पर पौरुष का शायद ही कोई चिह्न था। जैसे ही वह मुँह खोलता था वह अपनी उम्र से बड़ा हो जाता था। उसका स्वर कोमल, गूँजनेवाला और आज्ञात्मक होता था। वह भूले-भटके ही मूर्खता की कोई बात करता था। उसका मन शरारत करने को जरा सा भी नहीं करता था। वह बेकार की बातों में कभी दखलंदाजी नहीं करता था।

बीच-बचाव करने के लिए तो वह बिल्कुल ही मना कर देता था। वह यह अच्छी तरह से जानता था कि इस तरह के निर्णय लोगों के मन में बीच-बचाव करनेवाले के प्रति कड़वाहट भर देते हैं। जब कभी भी स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती थी, और जब समझदारी भरा बीच-बचाव जरूरी हो जाता था, तब बोका बीच-बचाव करता था। इस बीच-बचाव से कोई भी उसे कफन ओढ़ाने की नहीं सोचता था। ऐसा भी कह सकते हैं कि बोका एक समझदार लड़का था। वह कोई बहुत बड़ा काम कर पाए या नहीं पर जीवन में उसका आदरणीय और सामंजस्य स्थापित करने वाला मनुष्य बनना तय था।

घर जाने के लिए इस युवा त्रिमूर्ति के लिए कोस्तेलेक गली में मुड़ना जरूरी था। यह छोटी सी गली बसंती धूप से नहाई हुई थी। इस गली की एक तरफ फैली तंबाकू की भट्टी दबी आवाज में अपना संगीत बिखेरती रहती थी, पर गली पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा था। कोस्तेलेक गली के इन नए आगंतुकों को उसमें मात्र दो अकेले आदमी ही दिखाई पड़ रहे थे। ये गली के बीचोंबीच खड़े थे और कुछ खोजने का नाटक कर रहे थे। उनमें से एक अपनी ताकत के लिए प्रसिद्ध चोनाकोश था और दूसरा छोटू नैमैचैक।

इन तीनों युवाओँ को बाहों में बाहें डाले देखकर चोनाकोश इतना खुश हुआ कि उसने उँगलियाँ मुँह में डालकर स्टीम इंजिन की तरह की जोरदार सीटी बजाई। यह विस्फोटक सीटी उसकी अपनी ही खोज थी। कोई भी उसकी नकल नहीं कर पाता था। न ही पूरे स्कूल में कोई भी इतनी जोरदार सीटी बजा सकता था। यह सीटी कैब चालकों के बीच अधिक चलती थी। पाठन क्लब का अध्यक्ष किंडर ही एक ऐसा लड़का था जो इस तरह की सीटी बजा सकता था। परंतु किंडर यह काम तब करता था जब वह क्लब का अध्यक्ष था। इसके बाद से मुँह में उँगली डालना अपनी शान के खिलाफ समझता था। वह हर बुधवार को दोपहर के बाद मंच पर साहित्य अध्यापक के साथ बैठता था। इस तरह की सीटी बजाना प्रतिष्ठा के खिलाफ होता।

चाहे जो भी हो, चोनाकोश ने कानफोड़ू ध्वनि निकाली। तीनों लड़के इस जोड़े के पास पहुँचे। वे झुंड बनाकर कर गली के बीचोंबीच खड़े हो गए। चोनाकोश छोटू नैमैचैक की ओर यह कहते हुए मुड़ा
“क्या तुमने अभी तक इन्हें नहीं बताया?”
तिगुड्डे ने एक स्वर में पूछा “क्या?”
नैमैचैक की जगह चोनाकोश ने उत्तर दिया।
कल, म्यूजियम में उन्होंने आइनस्टेंड का स्टंट फिर से किया।
“किसने किया?”
“क्यों, वे पास्जतर बंधुओं ने?”
इसके बाद जो चुप्पी फैली वह अपशकुन जैसी थी।

यहाँ आइनस्टेंड का मतलब समझाना अच्छा रहेगा। यह एक विशेष शब्द है जिसका प्रयोग बुदापेश्त के बच्चे करते हैं। जब कभी भी कोई थोड़ा सा बहादुर बच्चा देखता है कि उससे कमजोर बच्चे कंचे या इनसे मिलता-जुलता कोई मैदानी खेल खेल रहे हैं, तब यदि वह इस खेल को बिगाड़ना चाहता है तो चीखता है- आइनस्टेंड। इस भद्दे से जर्मन शब्द का मतलब है कि कोई भी ताकतवर दूसरे कमजोर बच्चों के कंचों को लूटना अपना अधिकार समझता है। यदि विरोध होने पर ताकत की आजमाइश करने को तैयार होता है। इस तरह आ इ न स्टें ड का मतलब है युद्ध की घोषणा। इस प्रकार यह राहजनी या लूट मचाने का जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला तरीका है।

चैले सबसे पहले बोला। जब वह बोला कि “तुम्हारा मतलब है आइनस्टेंड:” तो उसके शरीर में झुरझुरी दौड़ गई।
“हाँ,” नैमैचैक ने दोहराया, अपनी सूचना के गहरे प्रभाव को देखकर नैमैचैक का साहस बढ़ गया।
तब गेरैब चिल्लाया.
“अब हम इसे और लंबे समय के लिए नहीं टाल सकते! मैं बहुत पहले से ही इस बारे में कुछ करना चाहता हूँ, पर बोका मेरे हरेक सुझाव को धता बता देता है। यदि हम कुछ नहीं करेंगे तो वे हमारे साथ मारपीट भी करेंगे।”
चोनाकोश ने दो उंगलियाँ मुँह में रखकर संकेत किया कि वह खुशी से सीटी बजाने ही वाला है। वह प्रत्येक हर उथल-पुथल का सहयोगी बनना चाहता था। पर बोका ने उसका हाथ पकड़ लिया।
“मुझे बहरा मत करो,” उसने विरोध किया। फिर पूरी गंभीरता से सुनहरी बालों वाले छोटू से पूछा- “यह सब कैसे हुआ ?”
“आइनस्टेंड, तुम्हारा मतलब?”
“हाँ, कब और कहाँ?”
“कल दोपहर बाद म्यूजियम में।”
“म्यूजियम” का मतलब था उस सरकारी भवन के आसपास की खुली जगह।
“अच्छा तो, तुम पूरी कहानी सुनाओ, बिल्कुल वैसे जैसे सारी घटना घटी थी। यदि हमें इसके बारे में कुछ करना है तो हमें सच्चाई का पता होना चाहिए। ...”

एक महत्वपूर्ण घटना का मुख्य पात्र बनने के विचार से ही नैमैचैक उत्तेजित हो गया। ऐसा उसके साथ कभी-कभी ही होता था। सब लोगों के लिए नैमैचैक की बातों का कोई महत्व नहीं होता था। वह अंकगणित के अंक एक जैसा था जिससे किसी संख्या को गुणा करने या भाग देने पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। कोई भी उस पर अधिक ध्यान नहीं देता था। वह दुबले-पतले घुटनों वाला महत्वहीन किशोर था। संभव है कि उसकी यही हीन भावना उसे आसानी से शिकार बना देती थी। अब उसने अपनी कहानी सुनानी शुरु की। सब लोग कान लगाकर उसकी बात सुनने लगे।

उसने कहा, “कुछ ऐसे घटी यह घटना, दोपहर को अपना खाना समाप्त करके हम म्यूजियम की ओर निकल गए। मेरा मतलब है वैईज़, रेख्तर, कोलनय, बरोबास और मैं। पहले हमने सोचा कि एस्तरहाज़्य गली में बेसबाल खेलें। पर बाल रीयल स्कूल के छात्रों की थी और वे हमें देनेवाले नहीं थे। तब बरोबास ने सुझाव दिया कि ‘हम म्यूजियम में जाकर दीवार के पास कंचे क्यों न खेलें’। हम सबने ऐसा ही किया। सबको कंचे फेंकने की बारी मिली, और जिसने पहले फेंके कंचे को निशाना बनाया उसे सारे कंचे मिल जाते। यह खेल कई बार तक चलता रहा। अब दीवार के पास लगभग 15 कंचे थे। मेरे विचार से उनमें से दो कबूतरियाँ थीं। अचानक रेक्टर चिल्लाया, “अब खेल खत्म, पास्तजर बंधु आ गए हैं!’ अपने सिर नीचे किए जेब में हाथ डाले पास्तजर बंधु एक तरफ से आ रहे थे। वे इतनी चुपचाप आए कि हम सब डर गए। वे दो थे और हम पाँच पर इसका कोई मतलब नहीं था? वे हम जैसे दस लोगों को भी धूल चटाने के लिए भी काफी थे। एक बात यह भी है कि हम पाँच थे भी कहाँ, हमेशा पलक झपकते ही कोलनय गायब हो जाता है। ऐसा ही बरोबास भी करता है। इस प्रकार बचे केवल हम तीन। मैं भी भागने के बारे में सोच सकता था। इस तरह केवल दो ही बचते। यदि हम पाँचों वहाँ से भागने की कोशिश भी करते तो कोई फायदा नहीं होता, पास्तजर बंधु म्यूजियम में सबसे अच्छे दौड़ने वाले हैं। वे हमें तुरंत ही पकड़ लेते। तो, जैसा कि मैं बता रहा हूँ वे हरदम कंचों पर निगाहें टिकाए हमारे पास और पास आते गए। मैंने कोलनय से कहा- ‘उनकी रुचि हमारे कंचों में है।’ वैईज़ हम लोगों में सबसे चतुर था क्योंकि उसने तुरंत ही घोषणा कर दी थी- ‘सच है, वे आ रहे हैं। मुझे आइनस्टेंड की गंध आ रही है!’ सच बताऊँ, मुझे नहीं लगता कि वे हमारे साथ मारपीट करेंगे क्योंकि हमने कभी उन्हें परेशान नहीं किया है। हुआ भी ऐसा ही, उन्होंने हमारे साथ कोई हरकत नहीं कि। वे हमारा खेल देखते रहे। तब कोलनोय मुझसे फुसफुसाया ‘अब खेल बंद कर देते हैं।’

मैंने कहा- ‘मैं नहीं बंद करूँगा, खासकर तब जब तुम्हारा निशाना सही नहीं लगा है! अब मेरी बारी है। मैं जीत गया तो हम खेल बंद कर देंगे।’ इस दौरान रेख्तर की बारी थी, कंचे फेंकने की। मैंने देखा उसका हाथ डर के मारे काँप रहा था। उसकी एक आँख पास्तजर बंधुओं पर लगी थी। उसका निशाना भी चूक गया। पर पास्तजर बंधु हिल-डुल भी नहीं रहे थे। वे अपनी जेबों में हाथ डाले वहाँ खड़े थे। अब मेरी बारी आई। मैंने सही निशाना लगाया और मैं सारे कंचे जीत गया। मैं कंचे इकट्ठे करने के लिए जाने ही वाला था। उस समय लगभग 30 कंचों का खेल चल रहा था। तभी उन दोनों पास्तजर बंधुओं में से एक कूदकर मेरे सामने आ गया। यह छोटा वाला था। वह चीखा ‘आ इ ऩ्स टें ड!’ मैंने देखा कोलनय और बरोबास भाग गए थे वैईज़ दीवार के पास खड़ा था। वह एकदम पीला हो गया था। रेख्तर सोच रहा था कि क्या करे? मैंने उन्हें बहस करने की कोशिश की। मुझे याद है कि मैंने कहा था- ‘माफ करें, आपको यह करने का कोई अधिकार नहीं है।’ तब तक बड़ा पास्तजर कंचों को उठाकर उन्हें जेब में ढूँसने का काम लगभग पूरा कर चुका था। छोटे ने सामने से मेरी जैकेट पकड़ी और चिल्लाया- ‘क्या तुमने मुझे >>आ इ ऩ्स टें ड<< कहते नहीं सुना?’ उसके बाद तो मैंने कोई शब्द नहीं कहा। वैईज़ चिल्लाने लगा। कोलनय और केंदे ने म्यूजियम के कोने के पास से झाँककर देखा कि क्या चल रहा है। पास्तजर बंधुओं ने सारे कंचे उठा लिए थे। इसके बाद वे बिना कुछ कहे चुपचाप निकल गए। बस यही सब हुआ था।”
“ऐसा तो कभी नहीं सुना,” गेरेब ने गुस्से से कहा।
“यह तो दिन-दहाड़े की लूटपाट है!”

यह राय थी चैले की। सारनोक ने एक बार फिर कानफोड़ू सीटी बजाई। मतलब था कि स्थिति विस्फोटक है। बोका गहरे सोच में डूबा निश्चल खड़ा था। सबकी निगाहें उसपर टिकी थीं। सब यह जानना चाहते थे कि बोका इन परेशानियों के बारे में क्या कहना चाहता है। ये कई महीने से इसी तरह चल रही थीं। बोका ने इनको गंभीर मानने से इंकार कर दिया था। पर इस अवसर पर, जैसा कि नैमैचैक ने बताया, इसमें छिपे अन्याय ने बोका को भी हिला दिया था। उसने शांत स्वर में कहा-
“मुझे लगता है अब हमें घर जाकर खाना खाना चाहिए। आज दोपहर के बाद हम अपने ठिकाने- मैदान पर मिलेंगे। वहाँ हम इन सब पर बात करेंगे। अब मैं भी मानता हूँ कि अब सिर से पानी उतर गया है !”

इस घोषणा सब संतुष्ट हो गए। बोका भी दयालुता भरा दिख रहा था। सब लड़कों ने प्यार भरी नजरों से उसे देखा। वे सभी उसके छोटे पर परिपक्व मस्तिष्क, उसकी सैन्य चमक से दमक रही चमकती काली आँखें जो इस समय युद्ध के लिए तैयार सैनिक के समान दमक रही थीं। वे सभी बोका को चूमना चाहते थे, अंतत वह भी उनके इस अपच का भागीदार बन गया था।
एक बार फिर वे अपने-अपने घर की ओर चलने लगे। योसेफ जिले में कहीं बजती हुई घंटी उनकी खुशी में शामिल थी। सूरज अपनी पूरी चमक बिखेर रहा था और सारा वातावरण एक खुशी से भर गया था। ये लड़के कुछ बड़ा करने के कगार पर थे। कुछ कर गुज़रने की इच्छा की लौ उनके मन में कही गहरी लगी हुई थी। अब वे सब अगली चाल के इंतजार में अपना समय बिता रहे थे। सबको विश्वास था कि बोका ने यदि घोषणा कर दी है कि कुछ करना होगा, इसका मतलब है कुछ न कुछ अवश्य होगा।

वे ऊलोई एवेन्यू की ओर आगे और आगे बढ़ते ही चले गए। चोनाकोश और नैमैचैक पीछे ही रह गए। जब कुछ कहने के लिए बोका उनकी तरफ मुड़ा तो वे एक तंबाकू की एक फैक्टरी के तहखाने की खिड़की के पास खड़े थे। यह खिड़की तंबाकू के चूरे की मोटी तह से पुती थी।

चोनाकोश जोर से चिल्लाया, “जोर से साँस खींचो!” उसने जोर से सीटी बजाई और अपनी नाक को पीली धूल से भर लिया।
छोटा बंदर नैमैचैक, खुलकर हँसा। उसने भी अपना दुबला पतला हाथ शीशे पर रखा और अपनी उँगली की पोर पर से जोर से सूँघा। वे दोनों छींकते हुए कोजतेलेक गली को पार कर गए। वे अपनी इस खोज से बहुत प्रसन्न थे। चोनाकोश छींकते हुए तोप के गोले सी आवाज़ निकाल रहा था। छोटा बच्चा उस तरह सुड़क रहा था जैसे कि कोई गिन्नी पिग परेशान हो गया हो। इस प्रकार वे दोनों छींके, सुड़के, हँसे और उछलकूद करते रहे। उस समय उनकी खुशी का कोई पारावार न था। वे यह भी भूल गए कि शांत और गंभीर स्वभाव वाले बोका ने कुछ ऐसा कहा था जैसा कि किसी ने नहीं सुना था।

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