शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

उस्ताद अली अकबर खाँ

बोल्दीस्तर कोरोशी--
बदकिस्मती से इस जून में शास्त्रीय संगीत के एक महत्वपूर्ण गुरू का स्वर्गवास हुआ। अली अकबर खाँ सरोद के सबसे उच्च कोटि के उस्ताद थे।
वे चार साल के थे जब उन्होंने शास्त्रीय संगीत की पढ़ाई शुरु की। उनके पिताजी और गुरू बीसवीं शताब्दी के विशालतम गुरू और मैहर घराना के प्रवर्त्तक थे। उनके शिष्यो में से सब प्रसिद्ध कलाकार हो गए। उदाहरण के लिए रविशंकर और निखिल बनर्जी।
अली अकबर खाँ तेईस वर्ष की आयु में पहली बार भारत छोड़ा और कैलिफोर्निया में कन्सर्ट दिया। उस समय वे पूरे भारत में प्रसिद्ध थे, इसके बाद विश्व में लोकप्रिय हो गए।
चौवालीस वर्ष की आयु में खाँ साहिब ने “अली अकबर संगीत विद्यालय” की स्थापना की। यह पहला स्कूल है जो भारत में ही नहीं अमरीका में भी स्थायी है।
वे अपने जीवन के अंतिम चार दशक कैलिफोर्निया में रहे और तबलची स्वप्न चौधुरी के साथ अपना स्कूल चलाया।
पूरे जीवन में उस्ताद अली अकबर खाँ ने बहुत काम किया कि शास्त्रीय संगीत सारे लोक में लोकप्रिय हो।
उनकी मृत्यु सब लोगों के लिए बड़ा घाटा है।

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