बुधवार, 14 अप्रैल 2010

पकड़ लोमड़ी और मछली की (नाटक)

--दानिश बिशोफ

पात्र- 1. सूत्रधार, 2. किसान, 3. राजा, 4. दो द्वारपाल 5. दो सिपाही 6. हंटर मारनेवाला

सूत्रधार- (एक बार एक लोमड़ी किसी नदी के पास गई। जब पानी पीने लगी, एक मूँछवाली मछली की पूँछ देखी। इसी समय मूँछवाली मछली ने लोमड़ी की पानी में डूबी पूँछ देखी। जब लोमड़ी ने मूँछवाली मछली की पूँछ पकड़ी तभी मूँछवाली मछली ने लोमड़ी की पूँछ पकड़ ली। दोनों शिकारी जानवर हैं, दोनों एक-दूसरे की पूँछ छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। यह बहुत देर तक होता रहा तब एक किसान वहॉँ आया। किसान को आश्चर्य हुआ कि दोनों एक दूसरे को छोड़ नहीं रही थीं। उसने सोचा अच्छा मौका है दोनों को पकड़ेगा और महाराज के पास ले जाएगा। अगर उन्हे पसंद आ गया तो उसे कुछ भेंट देंगे। उसने दोनों को पकड़ लिया और दरबार पहुँच गया।)
किसान- (द्वारपाल से) नमस्कार, मुझे अंदर जाने दो। महाराजा से मिलने आया। उनके लिए एक भेंट लाया।
द्वारपाल- सुन, तब अंदर जाने दूँगा, अगर महाराज तुम्हें जो इसके बदले देंगे, उसका आधा हिस्सा मुझे दोगे। मंजूर है।
किसान- क्या करूँ, मंजूर।
द्वारपाल2- रुक जा ऐसे कहाँ जा रहा है?
किसान- जी, मुझे अंदर जाने दो। महाराजा से मिलने आया। उनके लिए एक भेंट लाया।
द्वारपाल- अच्छा, यह बात है। ठीक है अंदर जाने देता हूँ। लेकिन महाराजा तुम्हें जो इसके बदले देंगे, उसका आधा हिस्सा मुझे देना। मंजूर है।
किसान- क्या करूँ, मंजूर है।
द्वारपाल2- (अंदर जाकर महाराज से) महाराज की जय।
महाराज- बोलो क्या बात है?
द्वारपाल2- एक किसान आया आपसे मिलने। आपके लिए एक भेंट लाया।
महाराज- बुला दो उसे। (द्वारपाल किसान को अंदर ले जाता है और अपनी जगह लौट आता है।)
किसान- महाराज की जय।
महाराज- उठो मुझसे मिलने आए हो। बोलो क्या बात है?
किसान- (आगे बढ़के महाराज को भेंट दिखाकर) महाराज यह भेंट लाया आपके लिए। पकड़ लोमड़ी और मछली की।
महाराज- हँसते हुए राज सिंहासन से उठकर, किसान के पास जाकर, भेंट देखकर) अरे!!! वाह! वाह! कितना अच्छा उपहार! हा-हा-हा-हा! जकड़ा लोमड़ी और मछली की। ऐ किसान! यह सचमुच बहुत अच्छा लगा! बहुत मजा आया। इसके बदले में हम तुम्हें एक पूरा थैली सोना देते हैं।
किसान- क्षमा कीजिए महाराज, मुझे यह सोने की थैली मत दीजिए। मुझे कुछ और चाहिए।
महाराज- तो बोलो न! क्या दे सकते हैं, हम तुम्हें।
किसान- महाराज मुझे बस पचास कौड़े मारने की सजा दीजिए।
महाराज- (आश्चर्य से) पचास कौड़े मारने की सजा !!!???
किसान- जी महाराज, मुझे बस पचास कौड़े लगवा दीजिए।
महाराज- (अपने पास वाले सिपाहियों से)- इसे पचास कौड़े लगाओ।
सिपाही- जी महाराज।
सूत्रधार- (दोनों सिपाही किसान को पकड़ के बाहर ले जाते हैं। महाराज, सब लोग उत्सुकता से देख रहे हैं। अब क्या होगा? एक द्वार में पहुँच कर द्वारपाल किसान के कान में कुछ कहता है। गड़रिया इशारा करता है, साथ आने के लिए। तब सिपाहियों को भी। महाराज को भी कुछ समझ में आता है। सब मुस्कराने लगे। दूसरे द्वार में सब कुछ इसी तरह से होता है। तब सब हँसने लगते हैं। मैदान में पहुँचकर सिपाही दोनों द्वारपालों को पच्चीस-पच्चीस कौड़े मारते हैं। तब तक महाराज स्वयं वहाँ पहुँच जाते हैं।)
महाराज- (किसान से) हा, हा, हा, तुम बड़े बुद्धिमान हो, तुम हा, हा, हा। अब सब समझ में आया। लेकिन अब तुम वह थैली सोना हमसे लेते हो?
किसान- जी महाराज! बहुत-बहुत धन्यवाद! आप अमर रहें।
(प्रणाम करके विदा लेता है, सब चले जाते हैं।

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