अतिल्ला योजैफ़--
भारत में, जहाँ रात को जंगली जानवरों
की हरी आँखें दूर से चमकती हैं जंगल में,
छोटे थे परनाना जी भी जब,
महाराजा एक शासन करते थे तब।
हुकुम दिया उन्होंने गंभीरताभरा, घमंड से,
" थाम लो सब लोग साधन अपने!
नाचता है चाँद, पत्तियों के संगीत पर जहाँ,
बनाइए सात सौ अलंकृत महल वहां!"
उन सात सौ अलंकृत भवनों के मध्य
बनवाया उसने लौहे का एक कोषागार।
लगाना चाहता था उस पर सूरज का आगभरा ताला
हुई प्रजा भयाकुल, ऋषिओँ, साधुओं की प्रार्थना हुई बेकार
" मत लाओ ज़मीन पर उसे, दिव्य है वह!"
छड़ को द्वार की चाहिए था रवि ही।
छोर पर जोर से बादल के लगाई गयी सीढ़ी,
हिली, फिर गिरी।
जोते गए बाज, हलके रथों में,
छीन ले गए कूँकनेवाले पक्षी उनके जुए।
फिर भयातुर, मेहनती, व्यस्त लोग
घृणा से परिश्रम करते रहे जब तक,
फसलें जलती रहीं,
शहर में भी लगती रही आग तब तक।
सूरज की रोशनी से प्रलय उभरने लगी,
झरने सा सूर्य बरसने, टपकने लगा।
सूख गए खड़े-खड़े महाराज,
आई एक शीतल रात,
हो गया, सात सौ महलों की जगह
जंगल का राज ।
(अनुवाद-वेरोनिका)
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