शनिवार, 1 मई 2010

योरोप में हाथी

वेरोनिका--

योरोप के सब से मशहूर हाथी का जन्म सन १५४० ई.वी. में भारत में हुआ था। वह स्पैन की एक राजकुमारी, योहन्ना ने ऑस्ट्रिया के राजकुमार- मक्सिमिलियन को दिया था। योहन्ना स्पेन के सम्राट चार्ल्स (५) और पुर्तगाल की रानी इसाबेल की बेटी थी। मक्सिमिलियन चार्ल्स (५) का भतीजा था, बाद में वह मक्सिमिलियन (२) के नाम से ऑस्ट्रिया का सम्राट हुआ। वह हाथी सुलेमान- योरोप के बाहर से आया वियेना का सब से पहला जानवर था। उसके बाद राजदूतों के बीच हाथी देने का फैशन हुआ।

सुलेमान भारतीय हाथी था, पुर्तगाल की बस्ती से जहाज़ से लिस्बन पहुँचा, फिर मैड्रिड गया। १५५२ में लिखे गए एक स्रोत से सूचना मिलती है कि उस समय हाथी की उम्र १२ साल थी। १५५१/५२ की सर्दियों में सुलेमान मैड्रिड से वियेना तक गया। उसके साथ सम्राट, उनकी पत्नी मारिया, उनके बच्चे, भारत से आया एक महावत और अनेक सेवक थे। रास्ता सीधा और सरल नहीं था। वे सारे लोग बार्सीलोना पहुँचकर फिर से जहाज़ से इटली गए। इस के बाद गेनौवा और मिलान से होकर पहाड़ों को पार करके ऑस्ट्रिया पहुँचे।

पुर्तगाल के राजा ने एक चिट्ठी में लिखा है कि हाथी का नाम सुलेमान होना चाहिए। उस समय योरोप का एक ही शत्रु था: तुर्की। तुर्की का सुलतान, सुलेमान पूर्वी योरोप पर

शासन करता था और वियेना पर आक्रमण करने वाला था। पुर्तुगाल के राजा ने सोचा कि अगर हाथी का नाम सुलेमान होगा, उसका प्रवेश वियेना में सुलतान के प्रवेश के जैसा ही होगा। विएना के लोग हाथी का वैसे ही अपमान करेंगे, जैसे सुलतान का पराजित होने पर। लेकिन सुलेमान और सुलेमान की हार की उपमा ठीक नहीं हुई। ऑस्ट्रिया के लोगों को वह बहुत ही पसंद आया, उसका धूम-धाम से स्वागत किया गया। सुलेमान के मार्ग पर, सारे बड़े शहरों में आतिशबाजी आयोजित की गई, अनेक स्थानों पर उसकी प्रतिमा स्थापित की गयी। जब सुलेमान ब्रिक्सेन पहुँचा तो उसके मेज़बान ने अपनी सराय का नाम "हेल्लेफान्त" रख दिया। इस होटल का नाम आज भी "एलेफेन्त" है। पस्सौ नामक एक नगर के तिथि-ग्रन्थ में लिखा है, कि "एक अजीब सा बड़ा, सजीव हाथी यहाँ है" फरवरी में हाथी लिंज़ नगर पहुँच गया, वहाँ आज तक मुख्य मैदान की एक इमारत के द्वार के ऊपर हाथी की मूर्ति दिखाई देती है। सन १५५२ के मार्च महीने में सुलेमान वियेना पहुँचा।

शहर में सब से पहले हाथी का प्रवेश जय-जुलूस के रूप में आयोजित किया गया। सम्राट ने इस अवसर पर सुलेमान की तस्वीरवाला नया सिक्का चलवाया। बड़े, धूसर रंग के प्राणी को देखकर लोगों में हैरानी, कुतूहल और भय के मिश्रित भाव उत्पन्न हुए।

सुलेमान की खबरें आज भी सुनाई देती हैं। कहते हैं कि वियेना के बाज़ार की सड़क से गुज़रते समय उसके पेरों के नीचे एक छोटी बच्ची गिर गयी। भीड़ डर से चिल्लाने लगी, लेकिन हाथी ने अपनी कोमल सूँड़ से बच्ची को ज़मीन से उठा लिया। इस सड़क पर आजकल भी "एलेफेंतेन्हौज़" नामक एक इमारत खड़ी है, जिसके अग्रभाग पर हाथी का भित्तिचित्र स्थापित है। इस चित्र को उस छोटी लड़की के पिता ने खुश होकर बनवाया था। सुलेमान के साथ अफ्रीका का एक आदमी भी आया था। उसकी याद में एक दूसरे घर पर लिखा हुआ है "वहशी आदमी का घर" आगे की शताब्दियों में यह घर अफ्रीका से आने वाले लोगों के एक तरह का होटल बन गया।

सुलेमान राजमहल में निवास करता था। लेकिन ढाई साल बाद, सन १५५३ में, अधिक मिठाइयाँ खाने की वजह से मर गया। मृत्यु के बाद सुलेमान की हड्डियों से राजा का तख्त बनाया गया। उसके दाँत और खाल खजाने में सुरक्षित रखे गए। इसके बाद जर्मनी के राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रदर्शित थे। इस संग्रहालय के हिसाब-किताब में पढ़ा जा सकता है कि उसकी खाल से दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जूते बनाये गए।

सुलेमान राजनीतिक उपहार का एक पहला उदाहरण है। यह इतना लोकप्रिय हुआ कि उसके बाद विदेशी पशु देने की आदत बन गई। इसके कारण योरोप के प्रारंभिक चिड़ियाघर स्थापित किए गए।

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