रॉबर्ट वालोसी--
वह धूप से जाग गय। सुबह की पहली किरण दो भारी परदों के बीच से अंदर दौड़ी और सीधी उसकी आँख पर पड़ी। वह अपने स्वप्न में भी इस किरण का खेल देख रहा था। चमक से ऐसे चल-चित्र देखने के कारण उसका स्वप्न और अधिक स्वप्निल सा हो गया था कि तभी उसे जागना पड़ा।
उसने अपनी आँखें खोलीं।
पहले वह नही समझ पाया कि क्या हुआ। कुछ देर टिमटिमाने के बाद ही उसका दिमाग असली दुनिया में आ पाया।
जगना अजीब है, उसने सोचा, पिछली बार एक किरण ने उसे कब जगाया था ? जब से वह इस मकान में रहता है। यकीनन कभी नहीं। तीन साल पहले ! शायद!
सोने से पहले उसका अंतिम काम परदा ठीक करना होता है। जी, इसकी जरूरत नहीं होती। वे परदे अपने आप कभी नही चलते। फिर क्या हुआ?
जी हाँ, उसने सोचा। उसने कल शाम खिड़की से बाहर देखा था।
खिड़की के पास से कोई आवाज़ आयी थी। खटके सी। दो कबूतर खिड़की की पटरी पर बैठ गए थे। वे इधर-उधर चल रहे थे। कुछ
देर तक वह उन्हें देखता रहा था। वे बिना किसी परेशानी खेल रहे थे। पर दो मिनट के बाद ही पक्षी मैले शहर की ओर उड़ गए।
ऐसा हुआ तो हुआ, उसने सोचा। अगली बार वह सचेत रहेगा। आज, कभी न कभी तो उसे उठना ही था। इससे पहले उसे एक छोटी अलार्म-घड़ी की भिनभिनाहट से जगना ही था। वह उससे घृणा करता था। कल उसने घड़ी को फर्श पर दे मारा। घटिया घड़ी थी। सिर्फ एक घड़ी। उसकी अपनी घड़ी नही। उसने सोचा।...
वह ऐसा काम नहीं करेगा, पर सेल फोन अच्छा रहेगा।
शुक्रवार है..., उसने सोचा। हफ्ते का सबसे सुंदर दिन...। वह काम करने नहीं जाएगा, क्योंकि उसने छुट्टी माँगी थी। अगर छुट्टी नहीं मिलती तो भी घर पर ही रहता।
वह बहाने बनाने में कुशल है..। उसे अभ्यास करने में बार-बार कुछ समय लगाना होता है। यह एक अच्छी कला है, अगर वह घर से नहीं निकलना चाहता। आज वह दुकान तक भी नहीं..., उसने सोचा। महत्वपूर्ण दिन है। इसके लिए उसे महीनों भर लंबे समय तक काम करना पड़ा था।
और पैसा बचाना....। हाँ, पैसा बचाना मुश्किल है, पर इस घड़ियाल के लिए क्या मुश्किल है?
वह अपने आप को समझा नहीं सकता। घड़ियाल अब उसके दिलो दिमाग पर छा गया था। उसने इंटरनेट पर देखा या पहले टी. वी. पर? फर्क नहीं पड़ता। पर महत्वपूर्ण यह है कि उसने घड़ियाल देखा। पहली बार उसे अजीब लगा। नया और पुराना भी। आधुनिक दुनिया में कोई अर्थ नहीं था। एक लोलक वाले घड़ियाल को कौन चाहेगा? जी हाँ, एक बड़े महल के लिए उपयुक्त होगा। पर उसके घर जैसे छोटे से मकान में बहुत हास्यास्पद लगेगा। वह बहुत बड़ा... अलंकृत था। पहली बार...। वह टी.वी. में देखा था, उसने सोचा। क्योंकि उसने उसके बारे में सोचने में थोड़ा भी समय नहीं लगाया। आजकल टी.वी. में ऐसी ही चीजें होती हैं। कोई रोचक होती है, कोई नहीं। उसे पहली बार में ही अजीब लगा था। उस पर सोने की सजावट भी थी। बहुत आडंबरी...।
फिर किसी आलस भरी शाम को उसे इंटरनेट पर भी देखा। तब उसे पहली बार से कुछ अलग लगी। वह उसका अभ्यस्त होने लगा। नहीं, यह शब्द ठीक नहीं है, उसने सोचा, अब यह घड़ियाल उसका है।
सपने में भी नहीं सोचा था कि कभी वह कभी ऐसी चीज चाहेगा। यह आने-जाने वाली सनक नहीं थी। वह उसकी जरूरत है, उसने सोचा। यह सभी के लिए जरूरी है। शायद लोगों को इसकी नहीं पर किसी चीज की जरूरत है। उसे इसकी ही....।
बहुत महँगा, यह सच है। एक कॉफी या एक सिगरेट की कीमत उसकी नहीं है। हो सकते हैं तीन-चार महीने...। अच्छा, पाँच महीने, उसने सोचा। इतने समय में वह पूरा पैसा जमा कर सकेगा तो फिर परेशानी कम होगी। अभी तक वह इस बात के बारे में आस्था नहीं रखता था कि एक अदना सा बटन दबाने से इन्सान का जीवन बदल सकता है। जैसे एक लाल बटन दबाकर रॉकेट चला दिया जात है। एक छोटी सी हरकत और रॉकेट लक्ष्य की ओर...। लक्ष्य, उसने सोचा। अब एक लक्ष्य उसका भी है। खैर, यह आम बात है। कुछ पाना...। शायद जीवन की सबसे बुनियादी चीज....।
फिर भी कुछ अजीब....।
उसका शौक नहीं था कभी-कभी वह ऐसा-वैसा कुछ काम करता था जिसे वह अपना शौक कहता था। आदमी का कोई शौक होना चाहिए, उसने सोचा। मगर अब तक कुछ किया था, उनमें से किसी में मन नही रमा। शायद कुछ अलग होगा, उसने सोचा। बिल्कुल अलग...। उसका निर्णय है, इसलिए बिल्कुल अलग । पर नींव अच्छी रखनी होगी।
चार महीने बीत चुके थे, ( पाँच नहीं)। इस दौरान वह तैयारी कर रहा था पैसा कमाना इस काम का नीरस हिस्सा था। इसकी कोई बात नहीं। वह हर सुबह उठता था- उस घटिया घड़ी की कर्कश आवाज से, उसने सोचा- तैयार होकर निकल जाता था। घर लौटते ही वह सोचता कि एक और दिन बीत गया। सिर्फ एक काटे का निशान कलेंडर में ऐसे या वैसे, किसी भी ढंग से, मतलब दिन बीत जाने से है।
तैयारी सिर्फ कमरे की चारों दीवारों के बीच में शुरु हुई। वह दिन भर किताब पढ़ता रहता था इंटरनेट पर लेख खोजता रहता। बहुत थे। आश्चर्य की बात है, मगर किसी में भी कोई काम की जानकारी नहीं मिली। उसका कौतुहल समाप्त होने पर नहीं आ रहा था...।
आदर्श आकार-प्रकार कौन सा होगा? किस तरह की लकड़ी से बना होगा वह घड़ियाल? गहरी या उजली? लोलक कितना बड़ा होना चाहिए?किस धातु का सबसे अच्छा रहेगा? सवालों की शृंखला अनंत थी। संभावित उत्तरों की भी। कहीं भी दो समान विचार नहीं मिले। वह चकरा गया था। वह मध्यमार्ग खोज निकालेगा, उसने सोचा। वह इस घड़ियाल से पार पा लेगा। जिसे वह प्यार करता है वह उसे हरा नहीं सकता।
मनपसंद घड़ियाल खोजने में अधिक समय लग रहा था।
चित्र में तो छोटा ही था पर वह अपने मन में पूरा घड़ियाल देख सकता था। उसके कानों में उसके घंटों की आवाज गूँजती रहती थी। उसकी गंभीर आवाज में खिड़की से आता हुआ शनिवारी शोर डूब गया।
शेष हफ्तों में वह हर दिन उस चित्र को देखता रहा। अंतिम मुश्किल थी घड़ियाल का स्थान। सबसे सुंदर कहाँ होगा? क्या वहाँ, जहाँ सभी देख पाएँ, या कोई गुप्त कोना...।
अगर घड़ियाल मकान में आ जाएगा तो वह जान लेगा।
अंतिम दिन बहुत धीरे-धीरे बीत रहे थे। वह सब जानता है, उसने सोचा। जब सिर्फ पैसे का प्रश्न है...। सिर्फ समय का प्रश्न..। सिर्फ धैर्य का प्रश्न...।
चार महीने और पंद्रह दिन हो चुके थे। वह गर्व कर सकता है – उसने सोचा। बहुत जल्दी ही सफल भी हुआ। वह सब चीज़ें छोड़ देता था। सिर्फ़ खाना। कुछ भी नहीं। सिर्फ़ ऐसा हो सकता है – उसने सोचा।
वह प्रसिद्ध क्षण आ गया। उसने आर्डर दिया। जी, वह ख़ुद उसको लाने के लिए जा नहीं सकता था। पर, वे खुद घर पहुँचाएँगे। शुक्रवार अच्छा रहेगा – उसने सोचा। काम से छुट्टी माँगी। हाँ, उसे छुट्टी भी मिल गई। उसका कोई महत्त्व नहीं है – उसने सोचा। उसने अलार्म-घड़ी लेकर फ़र्श पर दे मारी। टुकडे-टुकड़े हो गये उसके। आज से ही यह घटिया घड़ी उसे जगा नहीं पाएगी – उसने सोचा। खुश कबूतर ख़िड़की में खेल रहे थे। एक दूसरे का कंठ पकड़ने की कोशिश में लगे थे। सिर्फ़ खेल रहे थे। शहर अजीब है – उसने सोचा। यहाँ से देख सकता है।
वह धूप से जाग गया। सुबह भी अजीब है – उसने सोचा। पर यह तो अच्छा है। कम से कम वह तो सबसे अलग है।
घड़ियाल शाम को लाया जाएगा। पर तब तक वह क्या करे ? – उसने सोचा। समय बीतना नहीं चाहता था। आज दुकान तक भी नहीं...- उसने सोचा।
खटखट की आवाज़ आई। वह लाया गया है, आ पहुँचा है ! उसने दरवाज़ा खोला। दो मज़दूरों के बीच घड़ियाल खड़ा था। वह उसे नहीं देख सकता था क्योंकि वह काग़ज़ में बँधा था। पर उसका रूपाकार अच्छी तरह से दिखाई देता था। उसने दीवार के पास रखवाया। उसने अभी तक निश्चय नहीं किया था कि घड़ियाल का स्थान कहाँ होगा।
पूरा सप्ताहांत आ रहा है – उसने सोचा – सोचने-समझने के लिए समय मिलेगा। पैकिंग बहुत मज़बूत थी। वह फाड़ डालना चाहता था पर वह नहीं कर पाया था। इससे अधिक आदर देना चाहिए – उसने सोचा। उसने धीरे-धीरे और सावधानी से पैकिंग खोल ली। वह होशियार बन गया कि घड़ियाल पर एक खरोंच भी नहीं आएगी। पहली कटाई के बाद पौकिंग के अंदर से खुशबू आयी। उसके लिए यह गंध काफ़ी नहीं थी। लकड़ी, लाख, और गोंद की बू अद्भूत ढंग से मिली-जुली थी और सारे कमरे में फैली चुकी थी।
धीरे-धीरे घड़ियाल दिखाई देने लगा। बहुत सुंदर था। ओह ! सुंदर नहीं, ’सटीक’ है – उसने सोचा। कुछ देर तक उसमें घड़ियाल छूने की हिम्मत नहीं हुई। पैकिंग के कचरे को घड़ियाल के आसपास से उठाकर फेंक दिया। क्योंकि ऐसी अनोखी वस्तु के पास किसी प्रकार की रद्दी, कचरा अनुचित होगा। वह घड़ियाल के सामने बैठा, यंत्र के हरेक टुकड़े को निहारता रहा। नख से सिर तक। उसकी रंगत बल्ब की रोशनी में रत्न जैसी चमक रही थी। वह अपनी आँखें उससे हटा नहीं सकता था। वह नहीं जानता कि आश्चर्य में डूबे-डूबे कितना समय बीत गया। वह एकाग्र हुआ, उसके आस-पास की सारी दुनिया गायब हो गयी। दोपहर है ? या शाम? – उसने सोचा। शायद वह चला सकता है – उसने सोचा। सूइयाँ उनके सही स्थान पर लाकर चला दीं। वह ऐसा सावधान था जैसे कि घड़ियाल कोई पवित्र चीज़ हो। 7:30 थे। पूरा दिन बीत चुका है – उसने सोचा। पर कोई बात नहीं। उसने लोलक हिला दिया। उसके जीवन का सब से सुंदर क्षण था यह। पिछले महीनों का विरह और आतुर इंतज़ार, अब सब-कुछ अपने स्थान पर था। इस से ऊपर नहीं हो सकता है – उसने सोचा। सचमुच।
दिल की धक-धक जैसी घड़ियाल की आवाज़ उसके कमरे के कोनों में गूँजने लगी। उसके दिल की आवाज़? अंततः वह खुश है – उसने सोचा। ग्यारह बज चुके थे जब वह सोने के बारे में सोचने लगा। घड़ियाल को पलंग के सामने घसीटा। यहाँ ठीक रहेगा आज के लिए। वह जल्दी से पलंग पर लेट गया। बिजली बुझाने से पहले कुछ देर तक उसे निहारता रहा था। आज से सब-कुछ बदल जाएगा। इसका जीवन अलग होगा – उसने सोचा।
वह लोलक का टनटनाना सुन रहा था। टन-टन-टन। सो जाने के लिए अधिक समय ज़रूरी नहीं था।
टन-टन-टन !
वह पलंग में उठ बैठा। शंकित होकर अपने पास रखे हुए फ़ोन को देखा। नींद के सिर्फ़ दस मिनट बीते थे। इस आवाज़ की आदत डालती होगी – उसने सोचा।
वह तो सोने की कोशिश कर रहा था पर घड़ियाल की आवाज़ से उसके मन को अशांत कर रही थी।
टन-टन-टन।
अचानक आवाज़ आनी बंद हो गयी, अंततः – उसने पहले सोचा। उसकी आँखें खुलीं। वह एक क्षण के लिए सुनसान कमरे का अंधेरा देख रहा था। उसने बल्ब के बटन पर हाथ लगाया। रोशनी कमरे में फैलते ही वह घड़ियाल के पास दौड़ा। 11:59 थे और उसका लोलक शांत था। अजीब है – उसने सोचा। लोलक को चला दिया। बोझिल यंत्र चालू हो गया।
यंत्र तो चला पर सूइयाँ एक स्थान अटक गयीं। वे 11:59 पर अटकी थीं।
अब क्या करूँ ? – उसने सोचा। यह क्या हो गया है? कुछ बिगड़ गया है? क्यों उसका घड़ियाल... ?
वह मकान में इधर से उधर घूम रहा था। कभी-कभी घड़ियाल के पास पहुँचता पर उसको छूने की हिम्मत नहीं कर पाया था। शायद दो घंटे बीत गये। वह निराशा में डूब गया था। पर सूइयों का चलना नहीं देख पाया था। अंत में उसने सोचना छोड़ दिया। शायद थकान या विवशता के कारण। उसने सूई को हाथ लगाया और उसे ठीक स्थान पर फिराया। 02:23 – उसने सोचा। क्या शुक्रवार ! क्या रात ! उसने जल्दी तकियों पर अपना सिर वापस रखा और लोलक की आवाज़ सुनने लगा। बाएँ से दाएँ तक। दाएँ से बाएँ तक। उसका पेट काँपने लगा। तथापि वह बहुत थका था। उसकी आँखें में स्वप्न नहीं थे। वह बिजली जलाकर घड़ियाल को देखने लगा। 02:32। ओह, तो यह चलता है – उसने सोचा। वह मुस्कराते हुए सो गया।
इसके बाद दो दिन तक ऐसा ही घटना-क्रम चला। सोमवार वह ऐसा भयभीत हुआ कि उसे काम से घर आना पड़ा। वह किसी की भी आदत नहीं डाल सकता था, उसके दिमाग से सब-कुछ गायब था। वह कुछ भी करता पर घड़ियाल वैसा नहीं चला कि लगे की ठीक है। घड़ियाल उसपर जादू चलाता था, जैसे एक सम्मोहन करनेवाला यंत्र। उस के कारण उसे बहुत डर लगा था कि यंत्र वैसे नहीं चलता जैसा चलना था।
ओह, कितनी रात, उसने उसके बारे में सपना देखा था– उसने सोचा। और अब यह है।
उसने कंपनी को भी फोन किया। पर वे एक दूसरा नया घड़ियाल नहीं देना चाहते थे। एक कारीगर बुलाइए ! – उन्होंने कहा। उसने बुलाया, एक बूढ़ा पर बहुत अनुभवी कारीगर उसके घर आया। इस घड़ियात में कोई त्रुटि नहीं है – उसने कहा। उसकी संरचना ठीक है। पता नहीं क्या है। सब अच्छा दिखाई देता है। दंत-चक्र सुंदर हैं और अपने स्थान पर हैं। संतुलन भी अच्छा है। सूइयाँ नहीं अटकतीं।
वह अब अपने काम की भी उपेक्षा करने लगा। वह हर दिन घड़ियाल के पास खड़ा रहता था, कोशिश करता रहता था। एक टॉर्च से उसके हर हिस्से की परीक्षा करता था। शायद कोई चीज़ मिले जो गलती का कारण हो।
और हाँ, उसने कुछ चीज़ें खोज निकालीं। पर वे गड़बड़ी का स्पष्ट उत्तर नहीं दे सकीं। कई खरोंचें और रंग-रोगन की गलतियाँ, जिन्हें उसने पहली बार में नहीं देखा था। सिर्फ़ गहरी खोजबीन से प्रकट हुआ कि रोग़न भी ठीक नहीं था। कई जगहों पर लाख खुरदरा था या लाख ही नहीं था। शुरू में उसने ऐसी कल्पना नहीं की थी। चित्रों और वर्णनों में ऐसा नहीं दिखता था। क्या हुआ – उसने सोचा – ऐसा उसके साथ ही क्यों होता है ?
बहुत लंबे समय तक देखा स्वप्न था, अब उसके प्रत्यक्ष में खड़ा है : चलता नहीं है और कुरूप भी है।
उसके दिन इसी ढंग से बीतते जाने लगे। चिंता ने उसके मन में डेरा डाल लिया था। उसकी सराहना धीरे-धीरे गुस्से में बदल गयी। इसमें कोई ज़्यादा समय नहीं लगा था। जब उसका हर दिन और हफ़्ता सूइयों को देखने और इंतज़ार करने में बीतने लगा तो उसका मन कुछ टूटा सा गया। उसने दराज़ से एक छुरा निकाला। घड़ियाल को चीर दिया। एक और बार। और एक और बार। वह खुश हुआ। उसने शीशे का दरवाज़ा भी तोड़ दिया।
उसका असली रूप यही है – उसने सोचा।
कुछ दिन बाद कचरे डिब्बे के साथ घड़ियाल को रास्ते के किनारे पर खड़ा कर दिया। लोलक तब भी इधर-उधर झूल रहा था। चारों ओर देखा, घड़ियाल को लतिया दिया। रास्ता बहुत शांत था। सुबह का कोहरा अभी तक शहर के ऊपर ऊड़ रहा था। हवा ताज़ी और सुखकर थी। शहर को पिछली बार कब देखा ? – उसने सोचा। हाँ, जब कबूतर खिड़की में खेल रहे थे। सच है कि वह इस के बाद कई बार काम करने जाता था। पर यह अलग है – उसने सोचा। वह किसी पर ध्यान नहीं देता था, जैसे वह दुनिया में ही नहीं रहता था। लोलक के जैसे। एक ही रास्ते पर हिलता-डुलता था। एक रास्ता जिससे वह बाहर निकल नहीं पाता था। सिर्फ़ इधर से उधर। उधर से इधर। भारों की ऊर्जा से चलने वाला। आवश्यकता की ऊर्जा।
अब देखने का समय आया है – उसने सोचा। वह अपने हाथ जेब में डालकर निकल गया। निरुद्देश्य ! उसने एकबार भी मुड़कर नहीं देखा।
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घंटे बीत रहे थे। एक के बाद दूसरा। 11:59 थे। अचानक सूई आगे बढ़ी। वहीं, रास्ते के किनारे पर। एक नया दिन शुरू हुआ।
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