मंगलवार, 11 मई 2010

कपुएरा

(पेटैर नेमैथ्) अनुवाद-अत्तिला सबो--

कपुएरा एक ब्राज़ीली युद्धकला है जिसमें संगीत और नृत्य का भी बहुत महत्त्वपूर्ण भाग है। कपुएरा के प्रारंभ के बारे में अलग-अलग कहानियाँ हैं क्योंकि पहले ब्राज़ील गणराज्य की मेहनत के कारण कपुएरा के इतिहास के पहले दो शताब्दियों के संबंध कोई लिखित स्मृति नहीं है। इसलिए इस युद्धकला के प्रारंभ के बारे में सिर्फ़ मैखिक पौराणिक कथाएँ और कल्पनाएँ हैं।

तारीख़ २२ अप्रैल, १५०० को पुर्तगाली नाविक ब्राज़ील के उत्तर-पूर्वी किनारे पर पहुँचे थे। यह समय और जगह ब्राज़ील का आधिकारिक अनुसंधान माना जाता है। पुर्तगालियों को अगले अस्सी वर्ष ब्राज़ील के क्षेत्र के खोज करने के लिए चाहिए थे। शुरू में क्षेत्र की एकल चल-संपत्ति ब्राज़ीली जंगलों का ‘ब्राज़ील पेड़’ नामक पेड़ था लेकिन कुछ देर बाद भूमि में सोना, चाँदी तथा रत्न भी खोजे जाते थे। इसके कारण ब्राज़ीली क्षेत्र १५३० से पुर्तगाल की कॉलोनी हुए थे। यहाँ १५८० के आस-पास पुर्तगाली लोगों ने गन्ना और कॉफ़ी के खेत बनाये थे।

उस समय में ब्राज़ील की आदिमजाति में लगभग दस लाख लोग थे, जो एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से अलग-अलग कुटुम्बों में रहते थे। पुर्तगालियों के पहुँचने लगभग दस दिन के बाद उन्हें आदिवासी मिले। आदिवासी बहुत मित्रवत तथा उपकारी थे। उन्होंने पुर्तगालियों की मदद की थी। कुछ समय के बाद कॉलोनियों और मातृभूमि के बीच में व्यापार शुरू हो गया। सोने, चाँदी और रत्न की खदान जल्दी ही निकाल लिये जाते थे, इसलिए पुर्तगाली ब्राज़ील के खेतों में कृषि करने लगे थे। बाद में पुर्तगाल के लोगों को अधिक कृषि फल चाहिए थे, इसके कारण कॉलोनियों में रहकर पुर्तगालियों ने आदिवासी लोगों से खेतों में काम कराया। उनका वेतन मूल्यहीन तुच्छ वस्तुएँ होती थीं। कुछ समय के बाद आदिवासियों ने विद्रोह किया था क्योंकि उनका वेतन कम था।

आदिवासियों के नियंत्रण के लिए पुर्तगालियों ने सख्ती प्रयोग की थी। वे आदिवासियों को उजाड़ने लगे थे तथा उनसे ज़बरदस्ती से ईसाई धर्म स्वीकार करावाया था। अतः ब्राज़ीली आदिवासी पुर्तगालियों के दास हो जाते थे। मगर कुछ अलग-थलग, जंगल की गहराई में रहनेवाले कुटुम्बों ने पुर्तगालियों की व्यवस्था नहीं मानी। शुरू में पुर्तगालियों ने उन्हें परेशान नहीं किया था लेकिन जब वे आदिवासियों से डरने लगे थे, तब जंगल में आदिवासियों के बचे हुए कुटुम्बों के हराने के लिए जलयात्रा के दल भेजने लगे थे। कुछ साल में तीन लाख से अधिक आदिवासी मार डाले गए थे जो ब्राज़ील के अंतिम आदिवासी थे।

१५४९ में ब्राज़ील की पहली राजधानी सालवादोर बनायी गई थी। उस समय यूरोप में गन्ना विलासिता की चीज़ होती थी इसलिए ब्राज़ीली गन्ने के खेत बहुत महत्त्वपूर्ण थे। पुर्तगालियों ने ब्राज़ील के खेतों पर काम करने के लिए अफ़्रीका से जहाज़ से अफ़्रीकी लोग को देश निकाला दिया था। इस क्रिया में असंख्य लोग मर जाते थे। वे दासों के बाज़ारों से एक पुर्तगाली आदमी के खेत में पहुँचाये जाते थे वहाँ उनको दासों के ज़िले की छोटी झोंपड़ियों में रहना पड़ता था। रक्षक, ताड़ने और यंत्रणा के विपरीत कई आफ़्रीकी दास बच जाते थे तथा जंगल में भाग जाते थे। जंगल में रहनेवाले अफ़्रीकियों ने कुछ अप्रकट जंगली गाँव बनाये थे। ब्राज़ील में दस मुख्य गाँव ऐसे ही थे।

दासों के ज़िले में बड़े अलग-अलग अफ़्रीकी थे जिनकी एक दूसरे से भिन्न संस्कृति थी जो मिश्रण होते जा रहे थे। कपुएरा भी ऐसे ही संस्कृतिक मिश्रण का फल है। अफ़्रीकी दासों ने अपने ज़िलों से बच जाने तथा अपनी रक्षा करने के कारण आत्मरक्षा करने का नया तरीक़ा बनाया और मिलकर अभ्यास करते थे। उन्होंने बच जाने के बाद जंगली गाँव में दूसरे गाँव वालों के साथ कपुएरा अभ्यास किया था। प्रशिक्षण उस समय में भी आज के दिन के प्रशिक्षण जैसा था। कपुएरा वालों ने बड़े चक्कर के रूप में खड़ाकर, ताली बजाकर लोकगीत गाते थे और संगीत बजाते थे। दो लड़ाई करनेवाले गोल-चक्कर के बीच में एक दूसरे से लड़ाई करते थे।

कपुएरा में प्रायः सब प्रस्ताव पैर के तरीक़े हैं, उसमें बहुत कम घूँसे होते हैं। हाथ आम तौर पर प्रतिरक्षा में प्रयोग किये जाते हैं। कभी कपुएरा वालों की वास्तविक लड़ाई में उनके पैरों पर धार से घाव भी लग सकते हैं। उच्च और कलाबाजी करना, लात सिर्फ़ पिछले दस साल में कपुएरा का भाग हुआ है। लड़ाई में दो लड़ाई करनेवालों के अलावा सब कपुएरा वाले ‘रोदा’ नामक चक्कर के रूप में खड़े होते हैं। कपुएरा में ‘रोदा’ लड़ाई का क्षेत्र मतलब रिंग है। लड़ाई में चक्कर में खड़े होने वाले लड़ाई करनेवालों की हिम्मत बढ़ाने के लिए ताली बजाते हैं तथा गीत गाते हैं। फिर दो-चार मिनट के बाद नया युगल चक्कर के बीच में लड़ाई करने लगता है। बजाना वादक और गायक का उत्तरदायित्व है जो अपने संगीत वाद्य से बजाते हैं। उनका संगीत तथा चक्कर में खड़े होनेवालों का गीत कपुएरा करने की ज़रूरी विशिष्ट मनोदशा बनाते हैं।

यह युद्धकला दासों की आज़ादी की इच्छा के कारण पैदा हुई थी। वे कपुएरा की वजह से आज़ाद हो गये थे। १७०० के मध्य में डच लोगों ने पुर्तगालियों की कॉलोनी आक्रमण किया था। उन्होंने खेत और शहर अचानक नष्ट कर दिए थे। आक्रमण के समय दासों का रक्षक कमजोर हो जाता था इसलिए दास जंगल में भाग कर बच सकते थे और वहाँ छिप जाते थे। दासों ने कपुएरा के कारण काटने वाले शास्त्रों का मुकाबला किया तथा वे बन्दूकों से भी स्वयं संरक्षित कर पाये थे। जब कॉलोनी वालों और डच लोगों ने खोज-खोजकर दासों के जंगली गाँव उजाड़े थे तो कपुएरा वाले दूसरी-दूसरी जगह गये। इसलिए कपुएरा जल्दी से पूरे ब्राज़ील में फैला था।

दूसरी तलाश के अनुसार कपुएरा का मूल अफ़्रीकी प्रारंभ है। अफ़्रीका में दक्षिण अंगोला में एक अफ़्रीकी कुटुम्ब है जिसका नृत्य कपुएरा जैसा है। तलाश के अनुरूप जब अफ़्रीकी लोगों को ब्राज़ील से निकाल दिया जाता था तब उस परंपरा का विस्तार हुआ था।

‘कपुएरा’ शब्द की उत्पत्ति की एक तलाश है। ‘कपुएरा’ शब्द दासों के व्यापार के शुरू के बाद दो सौ वर्ष पहले सामने आया था। ‘कपुएरा’ पहली बार अठारहवीं शताब्दी में लिखा जाता था। बाहीआ – ब्राज़ील की एक ज़िला – और रीओ में रहनेवाले सब दास सुबह बड़े काठ के पिंजड़े मंडी में लाते थे जिन पिंजड़े में पक्षी रखे जाते थे। उन्होंने मंडी के खुलने से पहले चक्कर के रूप में खड़ाकरके कपुएरा करते थे। कहा जाता है कि पक्षी के पिंजड़े का नाम ‘कपुएरा’ था इसके कारण दासों की युद्धकला का नाम ‘कपुएरा’ हुआ था। यह कल्पना शायद सत्य हो सकती है क्योंकि ‘कपुएरा’ शब्द का अनुवाद ‘मुर्गियों का गज़’ है। दूसरी कल्पना के अनुरूप ब्राज़ील में साओ पाओलो, सान्ता कात्रिना और बाहीआ के पास एक छोटा सा, पर लड़ाका पक्षी रहता है जिसका अक्रियात्मक नाम ‘ओदोन्तोफ़ोन्स् कपुएरा स्पिक्स्’ है। इस पक्षी की लड़ाई कपुएरा वालों की लड़ाई की हरकत जैसी है।

कपुएरा और ‘कपुएरा’ शब्द के पैदा होने के बारे में बहुत कल्पनाएँ हैं। किसी लिखित स्मृति के बिना कपुएरा के प्रारंभ से संबंधित आधिकारिक दृष्टिकोण नहीं है। अलग-अलग कहानियों तथा कल्पनाओं में बड़े विरोधाभास हैं जैसे कपुएरा के जंगली गाँव में पैदा होने के लिए कोई गवाही नहीं है। दूसरा प्रश्न अफ़्रीकियों ने क्यों ब्राज़ील में कपुएरा बनाया था। अर्थात अफ़्रीकी दास पुर्तगाल, यू एस ए और कैरिबियन के द्वीप में भी थे लेकिन यह युद्धकला सिर्फ़ ब्राज़ील में बनाया जाता था। अंत में दासों ने बच जाने के लिए क्यों ख़ाली हाथ का युद्धकला बनाया था जब पुर्तगाली और डच की सेना के बहुत इधर-उधर के शास्त्र थे। एक बार इसके बारे में कपुएरा के गुरू बिम्बा जी पूछे जाते थे –
- गुरू जी, आप उस समय सशस्त्र लोगों के मुकाबला क्या करते होते?
- मैं मर जाता होता, बेटा। – उनका जवाब यही था।

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