हय्नाल्का कोवाच--
शिकागो विश्वविद्यालय में २००९ मई में नॉर्मन कुत्लेर (Norman Cutler) की याद में दूसरी बार एक सम्मलेन आयोजित किया गया था. नॉर्मन कुत्लेर तमिल भाषा और साहित्य के विद्वान थे और शिकागो विश्वविद्यालय के दक्षिण एशिया विभाग में पढा़ते थे, लेकिन २००२ में अचानक, बहुत ही कम उम्र में (५३) उनकी मृत्यु हुई. शिकागो विश्वविद्यालय की दक्षिण एशियाई अध्ययन समिति ने उनकी याद में एक द्वैवार्षिक कांफ्रेंस स्थापित की, जिसका उद्देश्य दक्षिण एशियाई साहित्यों का पश्चिमी पाठकों से परिचय कराना है. हर एक कांफ्रेंस के अफसर पर उस भाषा के एक लेखक या लेखिका को निमंत्रण दिया जाता है, जिस भाषा का साहित्य उस कांफ्रेंस का विषय है. पहले कांफ्रेंस (२००७) का विषय तमिल साहित्य था, और विशेष अतिथि तमिल की प्रसिद्ध लेखिका और कवि "सलमा" थी.
इस साल के कांफ्रेंस का विषय हिन्दी और उर्दू साहित्य तथा दोनों का सम्बन्ध था. विशेष अतिथि के तौर पर हिन्दी के मशहूर लेखक मंजूर अहतशाम को निमंत्रित किया, शायद इसलिए कि वे उर्दू बोलनेवाले और मुसलमान होते हुए हिंदी ही में कहानियां और उपन्यास लिखते हैं. उनकी रचनाओं के पात्र ज़्यादातर मध्य प्रदेश के मुसलमान लोग हैं, क्योंकि - जैसे कि हमारे सवाल पर उन्होंने बताया - वे खुद भोपाल के रहनेवाले हैं और उन लोगों को
सब से अच्छी तरह जानते हैं. हालांकि उनको शिकागो बुलाने की दूसरी वजह यह थी कि दक्षिण एशिया विभाग के दो अध्यापक, उल्रीके श्तर्क (Ulrike Stark) और जेसन ग्रुनेबौम (Jason Grunebaum) अहतशाम साहब के उपन्यास "दास्ताने लापता" का अनुवाद करने में व्यस्त हैं. कांफ्रेंस की शायद सब से दिल्कास्प घटना यह हुई जब इह्तिशाम साहब ने अपने उपन्यास का एक हिस्सा पढा़, फिर जेसन ग्रुनेबौम ने अंग्रेजी में उसका अनुवाद नाटकीय अंदाज़ में प्रस्तुत किया.
कांफ्रेंस में अहतशाम साहब और दक्षिण एशिया विभाग के अध्यापकों के अलावा हिन्दी और उर्दू साहित्य के कई विशेषज्ञ ने भी व्याख्यान दिए. कांफ्रेंस के सम्बन्ध में एक उदास घटना यह हुई कि शमीम हनफी साहब, जो कि उर्दू साहित्य के विद्वान और मशहूर रेडियो ड्रामा निगार हैं, और कांफ्रेंस के मुख्य व्याख्यान देने के लिए निमंत्रित हुए थे, वीसा (visa) समय पर न मिलने के कारण आ नहीं पाए.
कांफ्रेंस के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए देखिये: http://cosal.uchicago.edu/index.shtml
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