वासिल मिंतशेव--
कुपित न हो सूरज पर
जब वह डूबता है,
जब वह जाता है प्रकाश देने
दुनिया के दूसरे हिस्से को
मुझे सब शाम ऐसा लगता है
जब तू दूसरे के पास जाती है
कुपित न हो बादलों पर
जब बरसने लगते हैं
मेरे बारे में सोच, कैसे पूरे दिन रोता हूँ मैं
और मेरी फैली हुई बाँहों पर अन्धेरे में
जैसे दो मोमबती,
जो जलती हैं, तब भी
जब नहीं है कोई पाने को रोशनी।
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