बुधवार, 12 मई 2010

कविताएँ- पैटोफि शान्दौर

अनुवाद-बाकोश बैतिना--

एक
एक बूँद,
दो बूँद,
पाँच बूँद
और दस।
बर्फ गली,
टपकन लटकी,
बूँदे टपकीं- टप, टप।

दो
नीला क्या
आकाश है,
हरा क्या
पृथ्वी है
हरी पृथ्वी पर, नीले आकाश के नीचे...
लवा जोर से गाती
सूरज को ललचाती,
सम्मोहित सूरज डालता नज़र।
नीला क्या
आकाश है,
हरा क्या
पृथ्वी है
हरी पृथ्वी पर, नीले आकाश के नीचे..
बसंत आया...
और मैं हूँ पागल कि परेशान
बैठा अपने छोटे कमरे में
करता तुकबंदी।

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