अनुवाद विराग कातालीन--
एक शाम बुदापैश्त के एक कब्रिस्तान के सत्ताईसवें भाग की चौदहवीं कब्र का तीन सौ किलोग्राम का ग्रेनाइट पत्थर गड़गड़ाहट के साथ गिर गया और कब्र फट गई।
उसमें आराम करनेवाली स्वर्गीय श्रीमती मिहाय हयदुश्का (1827-1848) पुनर्जीवित हो गई। विवाह से पहले उसका नाम श्तैफानिया नोबैल था।
उसके पति का नाम पत्थर पर लिखा था, पर समय के साथ घिस गया था। वह न जाने क्यों नही जागा।
कुहरे के मारे कब्रिस्तान में कम लोग थे उनमें से जिन्होंने धमाका सुना, वहाँ इकट्ठे हो गए। उस समय उस स्त्री ने अपनी देह से मिट्टी के ढेले हटाए और कंघा माँगकर अपने बाल सँवारे।
मातमी लिबास पहने एक बुढ़िया ने उससे पूछा कि उसकी तबियत कैसी है?
श्रीमती हयदुश्का ने कहा कि ठीक है, धन्यवाद।
एक टैक्सीवाले ने प्रश्न किया कि क्या प्यास नहीं लगी है?
पुनर्जीवित महिला ने उत्तर दिया कि अब मैं पीना नहीं चाहती।
टैक्सी के चालक ने कहा कि पैश्त का पानी इतना खराब है कि उसे भी पीना पसंद नहीं है।
श्रीमती हयदुश्का ने पूछा कि पैश्त के पानी से क्या कष्ट है?
क्लोरीन से साफ किया जाता है।
बुल्गारियन माली अपश्तोल बरन्निकोव ने सुर मिलाते हुए कहा कि हाँ, क्लोरीन से साफ किया जाता है। वह कब्रिस्तान के द्वार पर फूल बेचता है। पानी में क्लोरीन होने के कारण उसे बारिश के पानी से कोमल पौधों को सींचना पड़ता है।
किसी ने कहा कि सारी दुनिया में पानी क्लोरीन से ही साफ किया जाता है।
इसके बाद बातचीत थोड़ी देर के लिए रुकी।
महिला ने पूछा, कोई और खबर है क्या?
उन लोगों ने उससे कहा कि कोई खास नहीं।
फिर खामोशी छा गई। उस समय बारिश होने लगी।
-क्या आप भीग नहीं जाएँगी? दइच दैजो नामक वंशी बनानेवाले ने उस औरत से पूछा।
श्रीमती हयदुश्का ने जवाब दिया कि कोई बात नही। वह बारिश बहुत पसंद करती है।
बुढ़िया ने जिक्र किया कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि बारिश किस तरह की है।
श्रीमती हयदुश्का ने कहा कि वह इस गुनगुनी गर्मी की बारिश की बात कर रही है।
अपश्तोल बरन्निकोव बोला कि उसे बारिश बिल्कुल नहीं चाहिए क्योंकि बारिश कब्रिस्तान के अतिथियों को निराश कर देती है। वंशी बनाने वाले कारीगर ने स्वीकार किया कि वह इस बात को अच्छी तरह समझ सकता है।
इस बार वार्तालाप में पहले से भी लंबा अंतराल था।
खैर आप लोग कुछ समाचार दीजिए। पुनर्जीवित महिला ने उनकी तरफ नज़र घुमाई।
हम कैसी खबर दें? बूढ़ी महिला ने पूछा। हमारे पास इतनी खबरें नहीं हैं।
स्वतंत्रता संग्राम से लेकर अब तक कोई भी खास घटना नहीं घटी है?
कोई बात कभी भी हो जाती है कारीगर ने हाथ हिलाते हुए कहा- पर जैसे जर्मनी के लोग कहते हैं- “कुछ अच्छा तो मुश्किल से ही होता है।”
यही तो बात है। टैक्सी वाला बोला। वह निराश होकर अपनी गाडी में चला गया। वह सिर्फ मुसाफिर झटकना चाहता था।
वे लोग चुप रहे। पुनर्जीवित महिला ने नीचे कब्र पर नज़र डाली। उसमें मिट्टी नहीं थी। उसने कुछ इंतजार किया। उसने देखा कि सभी लोगों की बातें खत्म हो गई हैं।
इसलिए उसने घेर लेनेवाले लोगों से विदा ली।
फिर मिलेंगे, कहकर कब्र में उतरने लगी।
वंशी बनाने वाले कारीगर ने सौम्यता से अपना हाथ दिया ताकि औरत गीली मिट्टी पर न फिसले।
फिर मिलेंगे। उसने महिला से कहा।
क्या हुआ? टैक्सीवाले ने उनसे पूछा, “ वह कब्र में वापस रेंग गई।”
हाँ वह रेंग गई है। बुढ़िया ने सिर हिलाया। “हमने कितनी अच्छी तरह से बातचीत की।”
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