भारत सरल नहीं है। अगर हम भारत को निर्धारित करना चाहते हैं वह बिलकुल आसान नहीं होगा। भारत देश नहीं हैं लेकिन उससे कुछ ज्यादा बात हम समझते नहीं, उस के लिए शब्द काफी नहीं है। पसन्द करने का कारण क्या होता है? भारतीय संगीत, नृत्य, हिन्दू धर्म और परंपरा? रंग-बिरंगे कपडे? जो भी हम चुनते हैं भारत पसन्द करने वाले सभी कार्यक्रम साथ-साथ परिवार की तरह मनाते हैं। कुछ महीने पहले मेरे एक अध्यापक ने कहा कि हम फिरंगी लोगों को उसे उसकी सारी अच्छाइयों और बुराइयों के साथ स्वीकार करना चाहिए। क्योंकि वह उतना पेंचदार है कि हमको उसे जानने के लिये बहुत समय जरूरी है। महीने, साल, दशक और उस के बाद भी हमारी विद्या कम है। हमने इस अध्यापक की कक्षा में पढ़ा कि दो जर्मन भारत वैज्ञानिकों ने १८वीं शताब्दी में भारत को योरोप की तुलना में मानसिक रूप से विकसित देश माना था। उन दोनों ने भारत के बारे में बहुत कुछ लिखा था, लेकिन जब उनको समय बीतने के साथ ज्यादा जानकारी पता चली, वह उनकी माँग को नहीं मिली, इसलिए उन्होंने भारत छोड़ दिया। इसके बाद मैंने पूछा कि हम यह बात कैसे त्याग सकते हैं। उसने उत्तर दिया : "आप लोगों को सब जानकारी और सूचना देने कि कोशिश करना और उनको स्वीकार करना पड़ता है। हम वैज्ञानिक हैं, बालीवुड के अभिनेताओं और अभिनेत्रियों की परीक्षा नहीं करते। हमारा काम
यह है कि हम अलग अलग दृग्विषयों की तुलना करके जिग्सॉ से पूरी तस्वीर करें।
मैं सोचती हूँ कि शुरू करने पर इतना काफी है। जब मैं भारत के बारे में बताना चाहती हूँ तो मुझे हमेशा साधारण बातें याद आती हैं। मुझे सिर्फ एक छोटा-मोटा प्रभाव जरूरी है, जैसे आने वाले वसन्त की पहली सुहावानी हवा कैलैन्फोलड ट्रेन अड्डे पर और मैं तुरन्त यादों के सागर में डूब जाती हूँ। मेरा सब से पहला साल विश्वविद्यालय में, जब मैं अंत में अपना ध्यान अपने मनपसन्द विषय पर रखना शुरू कर सकी। और यह विषय भारत था। न जाने मैंने कितना समय भारत के ख्वाबों में बिताया। जब किसी को लगता है कि उसका काम, उसका अपना शौक भी है, तो मेहनत मुश्किल बात नहीं होती। यह सच्चाई भी है : कहा जाता है कि लोग उन बातों में सब से अच्छे होते हैं जो उनके जीवन में महत्वपूर्ण जगह लेती हैं, जिसमें वे समय बीतने का अनुभव नहीं कर पाते। लेकिन आग्रह का नियम भी अलग होता है, जैसे संगीत में - जो संगीतकार विशेष गुणवान है, और मन लगाकर अभ्यास करता रहता है, वह सब से प्रसिद्ध बन जाएगा।
इसके संबंध में कुछ दूसरी बात भी याद आयी। मेरे विचार से दो तरह के लोग होते हैं - जो मेहनत के बिना मशहूर हो सकते हैं, और जो सिर्फ गंभीर काम, लगातार अभ्यास और ध्यान से वही अंजाम प्राप्त कर सकते हैं। इसलिये मैंने इन दोनों गणों के लिये दो कोटियाँ बनायीं : पहले गण सौभाग्य वाले, दूसरे भाग्य वाले। सौभाग्य वाले विद्या बेकार है क्योंकि वे सब मुश्किल हालत से फूलते-फलते हुए आते हैं। मैं इन लोगों को "लकी" कह्ती हूँ। मैं अपने आप को "डेस्टिनी" वाली को कहती। शायद यही कारण है कि मुझे भारत अच्छा लगने लगे। हम एक जैसे ही हैं, हम दोनों के लिए कोई विकल्प नहीं है। भारतवासी वह कर नहीं सकते जो वे चाहते, उनके परिवार के विचार उनके विकार हैं और परिवार का निर्णय उनका निर्णय है, जिम्मेदारी उन लोगों के लिये जीवन की सब से महत्त्वपूर्ण बात है। जिम्मेदारी के लिये और उसको पूरा करने के लिए जीना गंभीर हैं और प्रशंसनीय। लेकिन यह क्यों होता है? इतना अंतर फिर भी हमारे दिलों के पासवाला? क्या मेरा जवाब है? अभी तक नहीं, कुछ समय लगना है।
लेकिन अब मेरी यादों के पास वापस जाएँ, मैं उस सुन्दर गुलाबी खामोश शाम के बारे में लिख रही थी। कभी-कभी एक ही क्षण खराब घटनाओं की चिंता दूर करने के लिये काफी होता है, मुझे धीरे-धीरे पता चला कि पिछ्ले साल मैं भी ऐसे कंजूस लोगों से मिली जो मेरी हार चाहते थे। लेकिन मेरे ख्वाबों की दुनिया ने सब कुछ भूलने में मेरी मदद की। अकेलापन उपकारी हैं। वह उस तरह हमें सोचना सिखा सकता है जिसमें एक दूसरे वातावरण में हमसे सोचा नहीं जाता।
उन दिनों के दौरान क्या-क्या विशेष चीजें हुईं? विशेष कुछ नहीं। अगर कोई मेरे जीवन के बारे में फिल्म बनाता तो उसको पता चलता कि वह सब से सरल शैली से चलता है। विशेषता है जो कोई और देख नहीं सकता, जो हमारे दिल में होता। जो हमारे मृत्यु के क्षण में वापस आएगा।
डेढ घंटे वाली यात्रा, बुदापैश्त की तरफ, शाम वाली धूप जैसे वह फूलते पेडों के पत्रों पर चमकती है, मेरा छोटा शब्दकोश अपनी रंग-बिरंगी कलमों के साथ और हिन्दी शब्द जो मुझे सबसे पहली बार पसंद आये। और हिन्दी गीत, विशेष रूप से "तुझे देखा तो यह जाना सनम" वाली पंक्ति, पहले मेरा मंपसन्द गीत, भारतीय जीवन का प्रतीक, मेरे लिये। और सप्ताहांत में यात्रा घर के पास, ये सब मुश्किल से, बोर से चले होते पर ऐसे नहीं हुआ। क्योंकि यादें जब उन्हें ताजा किया जाता है तो वे सब से महत्त्वपूर्ण होती हैं, और कोई उन्हें ले नहीं सकता, वे हमेशा हमारी रहेंगी।
ये सब बातें सुनने के बाद कौन सोच सकता है कि मैं भारत के बारे में गुस्से से भी बता सकती हूँ। कहते हैं कि एक अलग दुनिया में मत जाओ, निराशा हाथ लगेगी। क्या होता है अगर हम भारत की अनजान परंपरा, रिवाज अपनी त्वचा पर महसूस करते हैं? अगर हम इंतजार करते रहते हैं कि ख्वाबों के देश में हमारे ख्वाब पूरे किये जाएँ। और पूरा कर नहीं पाते, करना नहीं चाहते। ऐसा होता है कि जो हम दिल से पसन्द करते हैं वही हमको व्यथा देगा। मेरे अध्यापक ने सचमुच बताया, हमें सत्य जानने के लिए भारत में रहना पडता है, बालीवुड की चमक-दमक की दुनिया में नहीं। भारत से प्यार अपने आप पैदा होना चाहिये। मेरे और भारत के संबंध में क्या होगा, मालूम नहीं, समय के साथ साथ सब कुछ ऐसा पुनः हो जाएगा जैसा पहले था।
लेकिन यादें और अपने अध्यापक के वाक्य भूल नहीं पाऊँगी और "तुझे देखा तो यह जाना सनम" हमेशा मेरे दिल में गूँजने रहेगा।
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